बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में उनके लाखों अनुयायीयों नेदीप जलाकर दीपावली मनाई थी।
जैन धर्म में दीवाली :–
दीपोत्सव का वर्णन प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है । कल्पसूत्र में कहा गया है कि महावीर-निर्वाण के साथ जो अंतरज्योति सदा के लिए बुझ गई है, आओ हम उसकी क्षतिपूर्ति के लिए बहिर्ज्योति के प्रतीक दीप जलाएं। 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामीजी को इस दिन बिहार के पावापुरी मै निर्वाण की प्राप्ति हुई थी जिसके उपलक्ष्य में जैनियों में यह दिन दीवाली के रूप में मनाया जाता है। महावीर-निर्वाण संवत् इसके दूसरे दिन से शुरू होता है इसलिए अनेक प्रांतों में इसे वर्ष के आरंभ की शुरुआत मानते हैं।
सिक्ख धर्म में दिवाली:—-अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की स्थापना भी वर्ष 1577 में दीवाली के मौके पर की गयी थी। तीसरे गुरु अमरदासजी ने दिवाली को लाल-पत्र दिन के पारंम्परिक रुप में बदल दिया जिस पर सभी सिख अपने गुरुजनों का आशार्वाद पाने के लिये एक साथ मिलते है। सिख धर्म में इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रुप में जाना जाता है, इस दिन सन् 1619 में सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद सिंह 52 अन्य हिंदू राजकुमारों के साथ ग्वालियर के किले से रिहा हुए थे। सिखों की मांग पर जब शहंशाह जहांगीर, गुरु हरगोविंद सिंह को छोड़ने के लिए राजी हुए तो गुरु ने एलान किया कि वह अन्य बंदी राजकुमारों के बिना नहीं जाएंगे। यह जानते हुए कि सारे राजकुमार गुरु को एक साथ एक ही समय पर नहीं पकड़ सकते, चालाक जहांगीर ने एलान किया कि सिर्फ उन्हीं राजकुमारों को गुरु के साथ छोड़ा जाएगा जिन्होंने गुरु को पकड़ रखा होगा। गुरु ने तब एक ऐसा वस्त्र बनवाया जिसमें 52 डोरियां थी। हर युवराज ने एक डोरी पकड़ी और इस तरह गुरु ने सफलता से सभी को मुक्त करवाया। इस दिन स्वर्ण मंदिर को रोशनी से सजाया जाता है। गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई की स्मृति में दीवाली मनायी जाती है।
आर्य समाजियों में दिवाली:– महर्षि दयानंद ने वर्ष 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी | महान समाज सुधारक महर्षि दयानंद सरस्वती ने कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अजमेर में निर्वाण प्राप्त किया। उसी दिन से इस दिन को दीवाली के रूप में मनाया जा रहा है।
प्रस्तुतिकरण—-डा.जे. के. गर्ग