अन्याय पर न्याय, कटुता पर मधुरता, झूठ फरेब पर सद्दभावना और मजबूत इच्छा शक्ति की जीत का पर्व होली Part A
सनातन धर्म में सात्विक, राजसी और तामसी तामसी प्रवर्तीयों में तामसी को निक्रष्ट एवं ताज्य माना गया है क्योंकि तामसी आदतों का मतलब है कुसंस्कार यानि ईर्ष्या,अनाचार,दुर्भावना एवं, अभिमान, असहिष्णुता,अविश्वास आदि इन्हीं सारी आदतों को होली की दिव्य अग्नि में भस्म कर देना ही सच्चा ‘होलिका दहन’ है। होलिकादहन दहन का मतलब है कि आप की मजबूत इच्छा शक्ति आपको सारी बुराईयों से बचा सकती है | होली खेलने की सार्थकता तभी होगी जब हम परमात्मा में श्रदा रखते हुए सात्विक विचार, सकारात्मकता,स्नेह, प्रेम, सोहार्द, सहिष्णुता,सह्रदयता और करुणा के रंग में अपनी अंतरात्मा को रँग लेगें |
यों तो होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे,पशु-पक्षी एवं सभी नर-नारी उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है। होली का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है | यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन तक मनाया जाता है। इस वर्ष होलिका दहन 20 मार्च 2019 को मनाया जायगा |
फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं । इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी होली पर्व का प्रचलन था | वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। होली के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत के आरंभ का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनुका जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादि तिथि भी कहते हैं। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है।
सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनीने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। होलिकोत्सव को केवल हिंदू ही नहीं वरन मुसलमान भी हर्षोउल्लास के साथ मनाते हैं। सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरें हैं मुगलकाल की हैं, इसी काल में अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। अंतिम मुगल बाद शाहबहादुर शाह ज़फ़रके बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे। होली दहन के दूसरे दिन को धुरड्डी,धुलेंडी,धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, इसदिन बच्चे-बूढ़े,स्त्री पुरुष संकोच और रूढ़ियों को भूलकर ढोलक, मंजीरे और नाचते गाते हुये टोलियां बना कर आसपास के घरों और दोस्तों तथा रिस्तेदारों के घर पर जाकर उन्हें रगं गुलाल लगाते हैं पुरानी कटुता एवं दुश्मनी को भूला कर आपस में प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक ही लोग स्नान करते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने बजाने का प्रोग्राम करते हैं |
Dr. J. K.Garg,
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