लालबहादुर शास्त्रीजी के जीवन के प्रेरणादायक संस्मरण पार्ट 1

dr. j k garg
जय जवान जय किसान के नारे को अमली जामा मनाने वाले शास्त्रीजी ने मात्र 6 वर्ष की अल्पायु में ही तय कर लिया था कि वो कोई ऐसा काम नहीं करेगें जिससे दुसरो को नुकसान हो | नाटे कद के हमारे प्रधानमंत्री सही मायनों में आत्मसम्मान के धनी और आजादी के दिवाने भी थे | आज के राज नेताओं की आत्म वंचना बडबोलेपन सुर्खियों में बने रहने की आदत के उल्ट शास्त्रीजी नहीं चाहते थे कि उनका नाम अख़बारों में छपे और लोग उनकी प्रशंसा करें उन्होंने अपने जीवन में कभी भी कायदे कानून की अवेहलना नहीं होने दी थी | उन्हें ना कोई लालच और ना ही पद का अभिमान था वे वो इंसान थे जिसने नैतिकता के आधार पर पर अपना मंत्री पद छोड़ दिया था | उनकी सहनशीलता में महानता सन्निहित होती थी | लालबहादुरजी ने ना कभी क्रोध किया और ना ही कभी कोइ शिकायत की थी | उनका मानना था कि “ अगर हम भष्टाचार को गम्भीरता से लें तो हम जरुर अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकेंगें | उन्होंने कहा था कि लोगों को सच्चा लोकतंत्र और स्वराज कभी भी हिंसा और असत्य से प्राप्त नहीं हो सकता है |2 अक्तूबर 2019 को जननायक शाष्त्रीजी के 115 वें जन्म दिन पर 132 करोड़ भारतियों का उनके श्री चरणों में नमन करके उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते है |

बचपन में ही नन्हें लालबहादुर ने तय कर लिया कि वो कोई ऐसा काम नहीं करेगें जिससे दुसरो को नुकसान हो

छः साल का एक नाटे कद का मासूम लड़का अपने दोस्तों के साथ एक बगीचे में फूल तोड़ने के लिए घुस गया, उसके दोस्तों ने बहुत सारे फूल तोड़कर अपनी अपनी झोलियाँ भर लीं वहीं वह लड़का जो सबसे छोटा और कमज़ोर भी था सबसे पिछे रह गया और ज्योंहि उसने फूल तोडना चालू किया उसी वक्त बगीचे का माली आ पहुँचा। माली को देख कर दूसरे लड़के भाग गये किन्तु छोटा और नाटा बालक माली के हत्थे चढ़ गया। माली ने सारा गुस्सा छः साल के बालक पर निकाला और उसे बुरी तरह पीट दिया।नन्हे बच्चे ने माली से कहा – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं क्योकि मेरे पिता नहीं हैं!” यह सुनकर माली का क्रोध जाता रहा। वह बोला – “बेटे, पिता के न होने पर तो तुम्हारी जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है।” माली की मार खाने पर तो उस बच्चे ने एक आंसू भी नहीं बहाया था लेकिन यह सुनकर बच्चा बिलखकर रो पड़ा। यह बात उसके दिल में घर कर गई और उसने इसे जीवन भर नहीं भुलाया। उसी दिन से बच्चे ने अपने ह्रदय में यह निश्चय कर लिया कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे किसी का कोई नुकसान हो। बड़ा होने पर वही बालक भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के आन्दोलन में कूद पड़ा। एक दिन इसी मासूम बालक ने लालबहादुर शास्त्री के नाम से देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया।

प्रस्तुतिकरण—-डा.जे.के.गर्ग

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