पुष्कर में तैंतीस करोड़ देवी-देवता

पद्म पुराण के अनुसार कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवता पुष्कर में ही निवास करते हैं और यहां के पांच दिन के स्नान को पंचतीर्थ स्नान कहा जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुष्कर की पवित्र धरती पर आना ही सौभाग्य माना जाता है।
वेद पुराणों में कहा गया है कि-पर्वतानां यथा मेरू, पक्षिणाम् गरुड़: यथा: तदवत समस्त तीर्थाणाम् आदि पुष्कर मिष्यते ।
अर्थात जिस प्रकार पर्वतों में सुमेरू पर्वत और पक्षियों में गरुड़़ का शिरोमणि महत्व है, उसी प्रकार समस्त तीर्थ स्थलों में पुष्कर तीर्थ सर्वोपरि तीर्थ है।
पुराणों में उल्लेख है कि पृथ्वी के तीन नेत्र हैं, इनमें प्रथम और प्रमुख नेत्र पुष्कर है। दूसरा नेत्र पंजाब प्रान्त के झेलम जिले में है और तीसरा नेत्र अभी पाकिस्तान की सीमा में है। पुष्कर नगरी को पृथ्वी का प्रथम नेत्र कहलाने का सौभाग्य प्रजापति ब्रह्मा के आशीर्वाद से प्राप्त हुआ है, जिन्होंने इसी नगरी से सम्पूर्ण बह्मांड की रचना की। प्रजापिता ब्रह्मा का एक मात्र प्राचीन मंदिर पुष्कर में ही स्थित है, जिसकी स्थापना के वास्तविक समय का कोई उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन यह जरूर उल्लेखित है कि प्रथम जगदगुरू शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। बिरले ही लोग जानते हंै कि पुष्कर सरोवर के मध्य से ही सरस्वती नदी का प्रवाह है, जिसके पवित्र जल में स्नान करने से श्रद्धालु जहां कष्टों से मुक्ति पाते हैं, वहीं ये श्रद्धालु बौद्धिक चातुर्य प्राप्त करते हंै।

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