dr. j k gargघटना 1965 की है,एक दिन प्रधानमंत्री शास्त्रीजी एक कपड़े की मिल देखने मिल के मालिक, मिल के उच्चअधिकारीयों तथा कई विशिष्ट लोगों के साथ मिल को देखने गये थे। मिल देखने के बाद शास्त्रीजी मिल के गोदाम मेंपहुंचे तो उन्होंने मालिक को कुछ साड़ियां दिखलाने को कहा। मिल मालिक ने एक से एकखूबसूरत साड़ियां उनके सामने फैला दीं। शास्त्रीजी ने साड़ियां देखकर कहा- ‘साड़ियां तो बहुत अच्छी हैं”, पर इनकी कीमत क्या है?’ मिलमालिकबोला ‘जी, यह साड़ी 800 रुपए की है और यह वाली साड़ी 1000 की है’ | शास्त्रीजी बोले यह तो मेरेबजट से बहुत ज्यादा है, सस्तीसाड़ीयां बताओं | दूसरी साड़ियां दिखलाते हुये मिलमालिक बोले देखिये यह साड़ी 500 रुपए की है और यह 400 रुपए की’। ‘अरे भाई, यहभी बहुत महंगी हैं। मुझ जैसे गरीब के लिए कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए, जिन्हें मैं खरीद सकूं।’ शास्त्रीजीबोले। मिल मालिक कहने लगा, ‘वाहसरकार, आप तो हमारे प्रधानमंत्री हैं, आप गरीब कैसे हो सकते हैं ? आप से कीमतकोन मांग रहा है,हम तो ये साड़ियां आपको भेंट कर रहेहैं।’ ‘नहीं भाई, मैंसाड़ियाँ भेंट में नहीं लूंगा’, शास्त्रीजीस्पष्ट बोले। ‘क्यों साहब? हमें यह अधिकार है कि हम अपने प्रधानमंत्री कोभेंट दें’ | ‘हां, मैंप्रधानमंत्री हूं’, शास्त्रीजी ने बड़ी शांति सेजवाब दिया- ‘पर इसकाअर्थ यह तो नहीं कि जो चीजें मैं खरीद नहीं सकता, वहभेंट में लेकर अपनी पत्नी को पहनाऊं। भाई, मैंप्रधानमंत्री हूं पर हूं तो गरीब ही। आप मुझे सस्ते दाम की साड़ियां ही दिखलाएं।मैं तो अपनी हैसियत की साड़ियां ही खरीदना चाहता हूं।’ मिलमालिक की सारी अनुनय-विनय बेकार गई। देश के प्रधानमंत्री ने कम मूल्य की साड़ियांही दाम देकर अपने परिवार के लिए खरीदीं। ऐसे महान थे हमारे शास्त्रीजी जिन्हें कोई लालच था और ना ही पद का अभिमान,उन्होंने जीवन पर्यन्त अपने पद का कोई फायदा नहीं उठाया ।