j k garg1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय सुरक्षा कारणों से हवाई हमले की घंटी बज सकती थी | उन दिनों सुरक्षा के लिये प्रधान मंत्री भवन मे भी खाई बनवाई गई थी। सुरक्षा कर्मियों ने प्रधान मंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री से अनुरोध किया ”आज हमले की आशंका अधिक है आप घंटी बजते ही तुरंत खाई में चले जायें।” किंतु दैवयोग से हमला नहीं हुआ। अगले दिन सुबह देखा गया कि बिना बमबारी के खाई गिरकर पट गई है। खाई बनाने वालों तथा उसे पास करने वालों की यह अक्षम्य लापरवाही थी। यदि वे उस रात खाई के अंदर होते तो क्या होता सुनकर रौंगटे खडे हो जाते हैं। देश के प्रधानमंत्री का जीवन कितना मूल्यवान होता है? वह भी युद्धकाल में? अन्य व्यवस्था अधिकारियों ने भले ही इस प्रसंग पर कोई कार्यवाही की हो, किन्तु शास्त्री जी ने संबंधित व्यक्तियों के प्रति कोई कठोरता नहीं बरती अपितु बालकों की भाँति क्षमा कर दिया।
ना क्रोध और ना ही शिकायत
साधारणतया लोग घर में तो वजह-बेवजह अपने अधिकार एवं डांट-फटकार से काम करवाते हैं किन्तु घर के बाहर सज्जनता तथा उदारता के प्रतीक बने रहने का स्वागं करते हैं, किन्तु शास्त्रीजी इसके अपवाद थे। वे स्वभाव से ही उदार तथा सहिष्णु थे। ताशकंद जाने के एक दिन पूर्व वे भोजन कर रहे थे। ललिता ने उस दिन उनकी पसंद का खिचडी तथा आलू का भरता बनाया था। ये दोनों वस्तुएं उन्हें सर्वाधिक प्रिय थीं। बडे़ प्रेम से खाते रहे। जब खा चुके उसके थोड़ी देर बाद उन्होंने वह प्रसंग आने पर बड़े ही सहज भाव से श्रीमती ललिता जी से पूछा-क्या आज आपने खिचड़ी में नमक डाला था ? ललिता जी को अपनी गलती पर बडा दुःख हुआ किन्तु शास्त्री जी ने न कोई शिकायत की और ना ही गुस्सा, वेतो फीकी खिचड़ी खाकर भी मुस्कुराते रहे ।