तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा पार्ट 4

dr. j k garg
21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्छेको और आयरलैंड समेत 11 देशों ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया। 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं | इस भाषण के दौरान नेताजी ने गांधीजी को राष्ट्रपिता कहा तभी गांधीजी ने भी उन्हे नेताजी कहा, तभी से उन्हें नेताजी कहा जाने लगा । नेताजी ने कहा था कि हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं | हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए | सुभाष बाबू ने कहा था “याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है |नेताजी कहा करते थे कि एक सैनिक के रूप में उनको आपको हमेशा सच्चाई, कर्तव्य और बलिदान जेसे तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा |
23 अगस्त 1945 को टोक्यो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदाई, पायलट तथा कुछ अन्य लोग मारे गये। नेताजी गम्भीर रूप से जल गये थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्होंने अंतिम श्वास ली और नेताजी पंच महाभूतों में विलीन हो गये। सितम्बर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोक्यो के रेगोंजी मंदिर में रख दी गयी भारतीय महालेखाकार से प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि ग्यारह बजे हुई थी।

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