भौम प्रदोष व्रत आज

साध्य एवं द्विपुष्कर योग में है भौम प्रदोष व्रत

राजेन्द्र गुप्ता
हर माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस समय चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि है। चैत्र माह का प्रदोष व्रत आने वाला है, जो 29 मार्च दिन मंगलवार को है। मंगलवार का प्रदोष व्रत भौम प्रदोष व्रत कहलाता है। इस बार का भौम प्रदोष व्रत साध्य एवं त्रिपुष्कर योग में है। इस दिन साध्य योग दोपहर 03:14 बजे तक है, फिर शुभ योग है।द्विपुष्कर योग 29 मार्च को प्रात: 06:15 से ही बन रहा है, जो दिन में 11:28 बजे खत्म होगा। ये सभी योग मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माने जाते हैं।

भौम प्रदोष व्रत 2022 मुहूर्त
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चैत्र कृष्ण त्रयोदशी तिथि का शुभारंभ: 29 मार्च, दिन मंगलवार, दोपहर 02 बजकर 38 मिनट सेचैत्र कृष्ण त्रयोदशी तिथि का समापन: 30 मार्च, दिन बुधवार, दोपहर 01 बजकर 19 मिनट तकप्रदोष काल में पूजा का शुभ मुहूर्त: शाम 06:37 बजे से रात 08:57 बजे तक

प्रदोष व्रत पूजा विधि
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प्रदोष व्रत के प्रात: स्नान के ​बाद ​प्रदोष पूजा का संकल्प करें। यदि आप सुबह ही पूजा करना चाहते हैं, तो सु​बह में कर लें। हालांकि प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय में करते हैं। प्रदोष पूजा के शुभ मुहूर्त में भगवान शिव का गंगाजल एवं गाय के दूध से अभिषेक करें। फिर उनको चंदन का लेप लगाएं। उसके बाद बेलपत्र, भांग, धतूरा, अक्षत्, शक्कर, शहद, फूल, फल, मिठाई, वस्त्र आदि चढ़ाएं।

इसके दौरान ओम नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करें। फिर शिव चालीसा और प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें। पूजा के अंत में शिव जी की आरती करें। शिव जी की पूजा और प्रदोष व्रत के पुण्य प्रभाव से सभी दोष एवं रोग दूर होते हैं।

चंद्र देव को जब कुष्ठ रोग हुआ था, तब उन्होंने भगवान शिव की आराधना की थी। भगवान शिव की कृपा से उनका दोष दूर हो गया। इस वजह से प्रदोष व्रत रखा जाता हैं।

भौम प्रदोष व्रत कथा
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एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी। एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची।

हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे?

पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज।

हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे।

वृद्धा दुविधा में पड़ गई। अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज। लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी।

साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।

यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया।

वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई।

इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले।

इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ।

लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी।

हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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