वियानक चतुर्थी आज

राजेन्द्र गुप्ता
ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी व्रत रखते हैं। इस दिन गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। ज्येष्ठ माह की आमवस्या के बाद से शुक्ल पक्ष प्रारंभ होगा। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी व्रत रखते हैं। विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा करते हैं और नियमपूर्वक व्रत रखते हैं। इस व्रत को करने से मनोकामना सिद्ध होती है, दुख, पाप, कष्ट आदि सब मिट जाते हैं। विनायक चतुर्थी की पूजा दोपहर तक पूर्ण कर लेते हैं। इसमें चंद्रमा की पूजा और दर्शन दोनों ही वर्जित माना जाता है।

विनायक चतुर्थी तिथि
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पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 02 जून दिन गुरुवार को देर रात 12 बजकर 17 मिनट पर हो रहा है। चतुर्थी तिथि का समापन अगले दिन 03 जून शुक्रवार को देर रात 02 बजकर 41 मिनट पर होगा। ऐसे में विनायक चतुर्थी व्रत 03 जून को रखा जाएगा।

विनायक चतुर्थी पूजा मुहूर्त
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03 जून को विनायक चतुर्थी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 56 मिनट से दोपहर 01 बजकर 43 मिनट तक है। ऐसे में इस दिन आपको गणेश जी की पूजा के लिए 02 घंटे 46 मिनट का समय मिलेगा।

इस दिन चंद्रमा का दर्शन और पूजा करना वर्जित है। विनायक चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगता है। इससे अपयश का भागी बनना पड़ता है।

सर्वार्थ सिद्धि योग में विनायक चतुर्थी व्रत
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ज्येष्ठ माह की विनायक चतुर्थी व्रत सर्वार्थ सिद्धि योग में है। सर्वार्थ सिद्धि योग में व्रत और पूजा पाठ करने से मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं और कार्य सफल होते हैं। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात: 05 बजकर 23 मिनट से शाम 07 बजकर 05 मिनट तक है।

विनायक चतुर्थी वाले दिन वृद्धि योग सुबह से लेकर अगले दिन 04 जून को प्रात: 03 बजकर 34 मिनट तक है। वृद्धि योग भी शुभ एवं मांगलिक कार्यों के लिए अच्छा माना जाता है।

विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व
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विनायक चतुर्थी व्रत करने से कार्यों में सफलता मिलती है, सुख एवं सौभाग्य बढ़ता है। गणेश जी की कृपा से बिजनेस और नौकरी में तरक्की मिलती है। सभी कष्ट, रोग और दोष दूर हो जाते हैं।

विनायकी चतुर्थी पौराणिक कथा
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एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिये चौपड़ खेलने को कहा।

शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- ‘बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?’

उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया।

यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया।

बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- ‘यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।’ यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं।

एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेशजी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से गणेशजी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा।

उस पर उस बालक ने कहा- ‘हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों।’

तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई।

चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई।

तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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