बुराई पर अच्छाई अंधकार पर प्रकाश अहंकार पर विनम्रता और अज्ञानता पर ज्ञान के विजय का पर्व दिवाली

j k garg
दुनिया भर में कौन होगा जो अपने परिवार कारोबार और घर में सुख- समृद्धि धन संपदा, ज्ञान, ऐश्‍वर्या और मानसिक शांति नहीं चाहता हो? शायद कोई नहीं ? है | सुख समृद्धि धन संपदा, ज्ञान, ऐश्‍वर्या और मानसिक शांति को प्राप्त करने के लिये भारतवासी विशेषकर सनातनधर्मी हिन्दूओं के दूवारा दीपावली पर धन-धान्य-सम्पन्नता की देवी लक्ष्मी की पूजा-उपासना अर्चना की जाती हैं| मान्यताओं के मुताबिक असुरों का वध करने के बाद भी मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ तब भगवान शिव माता के चरणों में लेट गये जिससे माता काली का क्रोध शांत हो गया | इसी मान्यता के अनुरूप पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में इस अवसर पर मां काली की पूजा होती है। यह पूजा अर्धरात्रि में की जाती है। दीपावली भारत के साथ अन्य देशों यानी ब्रिटेन नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, सूरीनाम, कनाडा, गुयाना, केन्या, मॉरीशस, फिजी, जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया,म्यांमार, सिंगापुर, श्रीलंका, अमेरिका, दक्षिणअफ्रीका, तंजानिया, त्रिनिडाड, टोबैगो, जमैका, थाईलैंड, आस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात आदि में हर्षोल्लास एवं उत्साह से मनाया जाता है जिसमे जिसमें भारतीयों के साथ वहां के मूलनिवासी भी भाग लेते हैं हमारे देश हिन्दू ,सिख, जैन और अन्य धर्मावलम्बी दीपोत्सव को धूमधाम हर्षोल्लास उत्साह के साथ बनाते है | वहीं बच्चे भी दीपावली का बेसब्री से इंतजार करते हैं | दीपावली मनाने के पीछे भी यही तर्क है कि अपनी जिंदगी को एक उत्सव के रूप में जिया जाये, जीवन का हर पल सुखमय और आनंदमय हो इसलिए इस दिन आतिशबाजी भी की जाती है | दीपावली का महामंत्र“ है असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय, दारिद्र्यात समृद्धि समय |दीपावली का संदेश पूरी दुनिया से दारिद्र्य, अज्ञान, अनाचार, कुंठा क्रोध अहंकार ईगो एवं वैरभाव को मिटा कर उसकी जगह समृद्धि, सुख सम्पन्नता सुविधा, ज्ञान, सदाचार,स्वास्थ्य, भ्रातृत्व एवं सर्वत्र आनंद की स्थापना करने का ही है |“दीपावली का शाब्दिक अर्थ है प्रकाश की पंक्तियाँ। जीवन में अनेक पक्ष एवं पहलू आते हैं और जीवन को पूरी तरह से अभिव्यक्त करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम उन सब पर प्रकाश डालें। स्मरणीय है कि प्रकाश दीपक की ये पंक्तियाँ हमें याद दिलाती हैं कि जीवन के हर पहलू पर ध्यान देने और ज्ञान का प्रकाश डालने की जरूरत है। अज्ञानता के अंधकार को दूर करने के लिए हमें अनेक दीपक जलाने की आवश्यकता है। अपने अंतर्मन के ज्ञान को दीपक से जला कर हम ज्ञान को अर्जित कर के हम अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं को जागृत कर सकते हैं। निसंदेह हमारे दिल के अंदर जब यह ज्ञान का दीपक प्रकाशित और जागृत हो तभी सही मायनों में “दिवाली” है। “दिवाली” का अर्थ है वर्तमान क्षण में रहना, इसीलिए भूतकाल के पश्चाताप और भविष्य की चिंताओं को छोड़ कर इस वर्तमान क्षण में रहें और उसका आनन्द लें। यही समय है कि हम साल भर की आपसी कलह कडवी बातो और नकारात्मकताओं को भूल जाएँ। यही समय है कि जो ज्ञान हमने प्राप्त किया है उस पर प्रकाश डाला जाए और एक नई शुरुआत की जाए। जब इंसान के हृदय के अंदर सच्चे ज्ञान का उदय होता है, तो दीवाली के पर्व एवं उत्सव से और भी ज्यादा खुशी और आनंद मिलता है।अमावस्या का अँधेरा अज्ञानता और विकारों का प्रतीक है, इसी अंधकार को दूर करने के लिए घर-घर में अंदर और बाहर अधिकाधिक संख्याओं में दीपमालाएं आदि लगाने की होड़ लग जाती हैं | सच्चाई तो यही है कि भगवान की श्रेष्ट्म रचना मनुष्य ही है | अत आदमी ही इस संसार में अविनाशी निरंतर प्रकाशित होने वाला दीपक है | इसलिए सच्ची दीपावली मनाने के लिए घरों में मिट्टी के दिये जलाने के साथ मन के दीप को जलाना और उसके प्रकाश को चारों ओर फैलाना ज्यादा जरूरी है | अत आईये हम दीपावली पर स्थूल रोशनी करने के बजाय अज्ञान रुपी अंधकार को मिटाकर अंतर्मन में आत्मज्ञान की ज्योति जलाने की प्रतिज्ञा लेकर उसे मूर्तरूप भी दें |दिवाली” में पटाखे जलाने के पीछे भी एक वैज्ञानिक और मनो वैज्ञानिक रहस्य निहित है। जीवन में अक्सर अनेक बार हम भावनाओं, निराशा एवं क्रोघ से भरे पड़े होते हैं जो पटाखों की तरह फटने को तैयार। जब हम अपनी भावनाओं, लालसाओं विद्वेष को दबाते रहते हैं तब ये एक विस्फोट बिंदु तक पहुच जाते हैं। पटाखों को जलाना विस्फोट करना, दमित भावनाओं को मुक्त करने के लिए हमारे पूर्वजों द्वारा बनाया गया एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास है। जब हम बाहरी दुनिया में एक विस्फोट देखते हैं तो अपने भीतर भी एक इसी प्रकार की, समान संवेदना महसूस करते हैं। विस्फोट के साथ ही बहुत सा प्रकाश फ़ैल जाता है। जब हम अपनी इन भावनाओं से मुक्त होते हैं तो गहन शांति का उदय होता है। दीपावली के दौरान आतिशबाजी करने और पटाखें जलाने पीछे वैज्ञानिक आधार है। इसका मुख्य उद्देश्य मोसम परिवर्तन से उत्पन्न कीट कीड़े मकोड़े वायरस विशेष तया मच्छर से होने वाली जान लेवा खतरों का मुकाबला करना है, जो गीले से सर्दियों के मौसम में इन खतरनाक कीटों परजीवियों के लिए प्रजनन स्थल के रूप में कामकरता है।दीयों को जलाने और उनसे रोशनी करने के पीछे विज्ञान है। जब हम घी या तेल का दिया जलाते हैं तो तेल या घी में मौजूद फैटी एसिड जलते हैं। इस प्रक्रिया में फैटी एसिड का एक अणु जलने से 56 कार्बन के अणु निकलते हैं और 52 पानी के अणु निकलते हैं।“दिवाली” के दौरान एक और परंपरा है, मिठाइयों और उपहारों का आदान-प्रदान। एक-दूसरे को मीठा और उपहार देने का अर्थ है, भूतकाल के सभी खटास को मिटा कर आने वाले समय के लिए मित्रता दोस्ती सोहार्द सामाजिक सद्दभाव को नवजीवन देकर पुनर्जीवित करना। एकता में अन्केता का भाव जाग्रत करना |आदमी की आत्मा का स्वाभाव है उत्सव। प्राचीन काल में साधू संत प्रतेयक उत्सव में पवित्रता का समावेश कर देते थे ताकि विभिन्न क्रिया-कलापों की भाग-दौड़ में हम अपनी एकाग्रता बनाये रक्खें । रीति-रिवाज़ एवं धार्मिक अनुष्ठान परमात्मा के प्रति कृतज्ञता और आभार धन्यवाद परिचायक हैं। “दिवाली पर हमको यह भी समझना होगा कि हमने जितनी भी धन-संपदा कमाई है उसे अपने सामने रख कर तृप्ति और संतोष का अनुभव करें। जब हम अभाव का अनुभव करते हैं तो अभाव बढ़ता है, परन्तु जब हम अपना ध्यान संतोष रखते हैं तो प्रचुरता बढ़ती है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में कहा है, “धर्मस्य मूलं अर्थः” यानि “सम्पन्नता धर्म का आधार होती है।यजुर्वेद में कहा गया है, “तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु” यानि“हमारे इस मन से सद इच्छा प्रकट हो। हम “दिवाली” को ज्ञान के साथ मनाएँ और मानवता की सेवा करने का संकल्प लें। अपने ह्रदय में प्रेम का दूसरों की सेवा के लिए करुणा का ; अज्ञानता को दूर करने के लिए ज्ञान का और ईश्वर द्वारा हमें प्रदत्त उस प्रचुरता के लिए कृतज्ञता का दीपक जलाएं।कोई भी उत्सव सेवा भावना के बिना अधूरा है। ईश्वर से हमें जो भी मिला है, वह हमें दूसरों के साथ भी बांटना चाहिए | नानक देव जी भी कहते थे कि आदमी को अपनी नेकी की कमी का एक भाग निर्धनों को देना चाहिए क्योंकि जो बाँटना है, वह हमें भी तो कहीं से मिला ही है, और यही सच्चा उत्सव या पर्व है। आनंद ज्ञान सज्जनता करुणा को सर्वत्र फैलाना ही चाहिए | आईये दीपावली के पावन पर्व पर हम अपने परिवार घर पर खुशियों के दीपक को जलाये साथ ही सात दूसरों के परिवार को भी अपार खुशियाँ प्रदान करें | अपने अंतर्मन के अंदर राम के आदर्शों और रान ताजी को स्थापित करने सतत प्रयास करे |

डा जे के गर्गपूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर

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