गोपाष्टमी का महत्व
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गोपाष्टमी का ये पर्व गौधन से जुड़ा है। भारत में इस पर्व का अपना ही महत्व है। गाय सनातन धर्म की आत्मा मानी जाती है। हिन्दू धर्म में गाय का महत्व होने के पीछे एक कारण ये भी है कि गाय को दिवयगुणों का स्वामी कहा गया है। गाय में देवी-देवता का निवास माना गया है। पौराणिक ग्रंथों में कामधेनु का जिक्र भी मिलता है। मान्यता है कि गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय की पूजा करने वाले लोगों को सुख समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है।
गोपाष्टमी की पूजा विधि
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गोपाष्टमी को प्रातः उठकर गायों को स्नान कराएं फिर गौमाता का आकर्षक श्रृंगार करें। गंध-पुष्प आदि से गायों की पूजा करें और ग्वालों को उपहार आदि देकर उनका सम्मान करें। गायों को भोजन कराएं तथा उनकी परिक्रमा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ जाएं। संध्या को जब गायें वापस आएं तो उनका पंचोपचार पूजन करके कुछ खाने को दें। अंत में गौमाता के चरणों की मिट्टी को मस्तक पर लगाएं। ऐसा करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।
गोपाष्टमी की कथा
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भगवान कृष्ण से जुडी हुई हैं। कहा जाता है कि जब कन्हैया छः वर्ष के हो गये तब अपनी माँ यशोदा को कहने लगे- माँ अब मैं बड़ा हो गया हूँ तथा गायों को चारने के लिए वन में जाउगा। उनकी हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी तथा नन्दबाबा के साथ कृष्ण जी को वन में गायें चराने के लिए भेज दिया।
वह गोपाष्टमी का दिन ही था, इसके अतिरिक्त अगले बारह महीनों तक गायें चराने के लिए जाने का कोई और मुहूर्त नही था। अतः नन्दबाबा तथा माँ जसोदा को अपने पुत्र कृष्ण जी को इसी दिन वन में गाये चराने के लिए जाने की अनुमतियो देनी पड़ी। मौर मुकुट हाथों में बांसुरी तथा पैरों में घुंघरू बंधे श्याम बिना खड़ताल या चप्पल पहिने नग्न पैरों से गौ चरण के लिए गोपाष्टमी के दिन घर से रवाना हुए थे। अतः इस दिन को आज भी ब्रज तथा सम्पूर्ण उत्तर भारत में एक पर्व की तरह मनाया जाता हैं।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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