नंदी के कान में क्यों बताते हैं मनोकामना?

आपने देखा होगा कि कई श्रद्धालु षिवजी के मंदिर में दर्षन को जाते हैं तो मंदिर के गर्भगृह के ठीक बाहर सामने स्थित नंदी की प्रतिमा के कान में कुछ फुसफुसाते हैं। असल वे नंदी को अपनी मनोकामना बताते हैं। विष्वास यह कि नंदी उनकी मनोकामना की जानकारी षिवजी को देंगे और षिवजी उसे पूरा करेंगे। असल में मान्यता है कि नंदी षिवजी के परमभक्त व उनके वाहन हैं। उसके सबसे करीब। अतः अर्जी ठीक मुकाम पर पहुंचेगी। यह ठीक वैसे ही है, जैसे श्रद्धालु दरगाह ख्वाजा साहब में हाजिरी के वक्त ख्वाजा साहब से दुआ मांगते हैं, मगर हाजिरी अर्थात जियारत की रस्म खुद्दाम साहेबान अदा करते हैं। इसी प्रकार तीर्थराज पुश्कर में स्नान के दौरान पूजा अर्चना किसी पुरोहित के माध्यम से करवाते है। बेषक अपने ईश्ट से सीधे भी संपर्क साधा जा सकता है, मगर माध्यम की जरूरत होती ही है। जैसे मुवक्किल को वकील की जरूरत होती है। किसी सज्जन ने इंटरनेट पर लिखा है कि नंदी के कान में मनोकामना बताने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह आस्था मात्र है। बिलकुल यह प्रथा विज्ञान द्वारा प्रमाणित नहीं है। मगर वैज्ञानिक आधार तलाषना भी तो अर्थहीन है। क्या खादिम व पुरोहित की भूमिका का कोई वैज्ञानिक आधार है। नहीं। तो नंदी की अहमियत पर सवाल करना उचित कैसे हो सकता है?
पौराणिक कथा के अनुसार, शिलाद नाम के मुनि ने संतान प्राप्ति की कामना के साथ भगवान इंद्रदेव को रिझाने के लिए तपस्या की। परंतु, इंद्रदेव ने संतान का वरदान देने में असर्मथता जताते हुए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनुरोध किया। इसके बाद शिलाद मुनि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। जिसके बाद शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने शिलाद को स्वयं के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। महादेव के वरदान के बाद शिलाद मुनि को नंदी के रूप में संतान प्राप्त हुई। शिवजी के आशीर्वाद के कारण नंदी अजर अमर हो गए। उन्होंने संपूर्ण गणों, गणेश व वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक कराया। जिसके बाद नंदी नंदीश्वर कहलाए। भगवान शिव ने नंदी को वरदान दिया कि जहां उनका निवास होगा, वहां स्वयं भी निवास करेंगे। मान्यता है कि तब से ही शिव मंदिर में भगवान शिव के सामने नंदी विराजमान रहते हैं।

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