दोस्तो, नमस्कार। आपने एक मारवाडी कहावत सुनी होगी कि राई का भाव तो रात्यूं ही गिया। इसका अर्थ है कि राई के भाव तो रात को ही गये। यह कहावत कैसे बनी, इसको लेकर दो किंवदंतियां हैं। एक तो राजषाही के जमाने की है। इसके अनुसार एक बार अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर किले पर हमला कर दिया तो जालौर के राजा ने किले के गेट सहित पूरी दीवार को गोबर व मिट्टी से बंद कर दिया। अलाउद्दीन को किले के अंदर जाने का रास्ता नहीं मिल रहा था तो किसी ने उपाय बताया कि राई को मंगवा कर दीवार पर छिडकवा दीजिए। जहां राई उग जाए, समझ जाना कि वहीं पर किले का गेट है, क्योंकि राई रात भर में उग जाती है। अलाउद्दीन ने रात को बहुत महंगे भाव में बडी मात्रा में राई मंगवाई और किले की दीवारों पर फेंकी। जिन्हें सुबह पता चला वे सुबह राई लेकर आए, मगर खिलजी के आदमियों ने खरीदने से मना कर दिया, चूंकि राई की जरूरत तो रात को थी, उन्होंने राई लाने वालों से कहा कि राई का भाव रात्यूं ही गिया।
दूसरी किंवदंती यह है। एक बार किसी गांव में चोर एक सेठ सेठानी के घर में चोर घुस गया। जैसे ही चोर की आहट हुई तो सेठ जी की आंख खुल गई। सेठ बहुत चतुर था। उसने सेठानी को जगा कर धीरे से कहा कि अपने घर में चोर घुस गया है, इसलिए चतुराई से काम लेना। सेठजी ने जो से चिल्ला कर कहा कि ओ नाथ्या की मां, मैं राई की बोरी लेकर आया था, वह कहां रखी है? सेठानी ने कहा कि वो तो बरामदे में रखी है। इस पर सेठ ने कहा कि राई के भाव आसमान को छू गए हैं। सोने से भी ज्यादा महंगी हो गई है। बोरी का मुंह ठीक से बंद कर दिया है ना। यह बात चोर ने सुनी। उसने सोचा कि सोने चांदी के गहनों में क्या उलझना, यह एक बोरी ही उठा कर चलो, रातों रात करोडपति हो जाएंगे। वह राई की बोरी उठा कर ले गया। सेठ ने सोचा की चलो अपनी स्कीम काम कर गई है। वे सुबह अपनी दुकान पर गए। अगरबत्ती कर के बैठ गए। संयोग से चोर उनकी ही दुकान पर आया। उसे अंदाजा नहीं था कि वह जिस सेठ के यहां से राई की बोरी चुरा कर लाया है, यह उनकी ही दुकान है। चोर ने कहा कि राई लोगे क्या? सेठ ने कहा कि जरूर क्यों नहीं। चोर ने पूछा कि राई का भाव क्या है तो सेठ ने कहा कि यही कोई पांच छह रूपये किलो है। चोर ने कहा कि मैने तो सुना है कि राई के भाव तो सोने से भी ज्यादा हैं। इस पर सेठ ने कहा कि राई का भाव तो रात्यों ही गिया। सेठ ने चोर को पकड कर घुनाई की और पुलिस के हवाले कर दिया।