मुस्लिम हलाल का मांस ही क्यों खाते हैं?

दोस्तो, नमस्कार। हाल ही ईद के मौके पर मेरे एक मुस्लिम मित्र ने सुझाव दिया कि बकरे को हलाल तरीके से काटे जाने पर जानकारीपूर्ण वीडियो बनाइये, क्यों कि कई लोगों को इसकी पूरी जानकारी नहीं है। आम तौर पर लगभग सभी को पता है कि बकरे को दो तरह से जबह यानि काटा जाता है। मुसलमान हलाल तरीके से काटे हुए बकरे का सेवन करते हैं, जबकि राजपूत व सिख झटके से काटा गया बकरा ही खाते हैं।
बकरे के हलाल और झटके में मुख्य अंतर मृत्यु की प्रक्रिया और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा होता है। हलाल तरीके में बकरे के गर्दन की ष्वास नली या ग्रास नली काटी जाती है, जिससे खून धीरे धीरे निकलता है। झटके में बकरे को एक ही झटके में रीढ़ की हड्डी सहित काटा जाता है, सिर को एक बार में धड से अलग कर दिया जाता है, ताकि तुरंत मौत हो जाए। सोच है कि इससे बकरे को दर्दनाक मौत नहीं गुजरना होता है। कुछ लोग मानते हैं कि झटके वाले मांस के सेवन से आदमी में षौर्य आता है।
हलाल में बकरे का खून धीरे धीरे बाहर निकलता है, जिससे मांस ज्यादा साफ होता है। बकरा कुछ समय तक जीवित रहता है, जिससे मांस में तनाव बढ़ सकता है। झटके में खून एकदम में नहीं निकल पाता, कुछ खून अंदर रह सकता है। बकरे की तुरंत मृत्यु होती है, जिससे कम तनाव होता है।
सवाल उठता है कि इस्लाम में बकरे को हलाल क्यों किया जाता है? इस बारे में मान्यता है कि बकरे का खून त्याज्य है। इस्लाम में कुछ विशिष्ट अंगों का सेवन हराम यानि (निषिद्ध) माना गया है, भले ही जानवर हलाल तरीके से जिबह (काटा) किया गया हो। बकरे या किसी भी हलाल जानवर के शरीर के पाँच अंगों को विशेष रूप से हराम बताया गया है। पहला है खून, चाहे वो जमा हुआ हो या बहता हुआ, उसका सेवन हराम है। इसके अतिरिक्त मूत्राशय यानि ब्लेडर और पित्ताशय यानि गालब्लेडर, इसमें मूत्र और पित्त भरा होता है, जिसे शरीर से विषैले तत्वों को निकालने के लिए बनाया गया है। ये अशुद्ध माने जाते हैं। इसके अलावा गुदा यानि एनस भी नापाक और घृणित अंग माना जाता है, इसका सेवन बिल्कुल हराम है। नर जानवरों के अंडकोष यानि टेस्टिकल्स यह शरीअत के अनुसार हराम है क्योंकि यह गंदगी का अंग माना जाता है। मस्तिश्क व रीढ की हड्डी के बीच स्थित मज्जा को लेकर तनिक मतभेद है। कुछ अंगों में विभिन्न इस्लामी फिरकों (हानाफी, शाफेई, हंबली, मालेकी) में अलग-अलग राय हो सकती है, लेकिन ऊपर दिए गए अंगों को अधिकांश विद्वानों ने हराम या मकरूह (अवांछनीय) माना है।

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