सिंधी माह 15 दिन बाद क्यों शुरू होता है?

दोस्तो, नमस्कार। क्या आपको ख्याल है कि सिंधी समुदाय हिंदू धर्म का ही पालन करता है, फिर भी सिंधी माह अक्सर हिंदू माह की तुलना में लगभग 15 दिन बाद आरंभ होता है। आखिर इसकी वजह क्या है? स्वयं सिंधी भाई-बहिनों तक को कौतुहल होता है। वस्तुतः हिंदू अमांत मास अमावस्या से शुरू होता है और सिंधी मास पूर्णिमा के बाद शुरू होता है, इसलिए दोनों में लगभग 15 दिन का अंतर होता है।
जरा विस्तार से समझने की कोषिष करते हैं। हिंदू चंद्र कैलेंडर में एक माह दो प्रकार से गिना जा सकता है। अमांत पद्धति के अनुसार माह अमावस्या से शुरू होकर अगली अमावस्या तक चलता है। यह पद्धति महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश में प्रचलित है। दूसरी पद्धति है पूर्णिमांत, इसमें माह पूर्णिमा से शुरू होकर अगली पूर्णिमा तक चलता है। यह पद्धति उत्तर भारत में अधिक प्रचलित है, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब आदि।
सिंधी चंद्र कैलेंडर पूर्णिमांत प्रणाली का अनुसरण करता है, लेकिन माह की शुरुआत पूर्णिमा के तुरंत बाद यानि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है, और वह कई बार हिंदू कैलेंडर से लगभग 14 या 15 दिन बाद पड़ती है।
सिंधी संस्कृति और इस्लामिक संस्कृति में तिथियों को लेकर कुछ रोचक समानताएं और भिन्नताएं दोनों हैं, खासकर इस वजह से कि सिंध क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से दोनों सभ्यताओं का संगम रहा है। दोनों संस्कृतियां चंद्रमा के आधार पर तिथियों की गणना करती हैं। इस्लामिक कैलेंडर पूरी तरह से चंद्र आधारित है।
सिंधी संस्कृति, सनातन पंचांग का अनुसरण करती है, जो लूनी-सोलर यानि (चंद्र-सौर मिश्रित) प्रणाली पर आधारित है, लेकिन पर्व व्रत चंद्र तिथियों पर आधारित होते हैं। दोनों में पर्वों की तिथियां हर वर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार बदलती रहती हैं। जैसे रमजान, ईद, मुहर्रम आदि इस्लामी त्यौहार हर साल 10-11 दिन पहले आते हैं। सिंधी पर्व चेटी चंड भी अंग्रेजी कैलेंडर में हर साल अलग तारीख को आता है।
वस्तुतः सिंध क्षेत्र में 8वीं सदी में इस्लाम का आगमन हुआ। इसके बाद कई सदियों तक वहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय साथ-साथ रहे, जिससे सांस्कृतिक संवाद हुआ। सिंधी मुस्लिम और सिंधी हिंदू दोनों ने चंद्र माहों और तिथियों के आधार पर अपने-अपने धार्मिक पर्व बनाए रखे, लेकिन सामाजिक ढाँचा और भाषा साझा रही। सिंधी भाषा दोनों समुदायों द्वारा बोली जाती है, जिससे तिथियों और सांस्कृतिक प्रतीकों को साझा करने की परंपरा रही है।

Leave a Comment

This site is protected by reCAPTCHA and the Google Privacy Policy and Terms of Service apply.

error: Content is protected !!