गांधीजी को जब मिली बोस से शिकस्त

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानायक मोहनदास करम चंद्र गांधी उर्फ महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी गई। नाथूराम गोडसे ने उस समय गोली मारकर गांधी की हत्या कर दी जब वे नई दिल्ली के बिड़ला भवन में टहल रहे थे। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच के संबंध से जुड़ी ये कहानी बहुत कुछ बयां कर रही है।
सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी की इच्छा के विरुद्ध जब कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिए गए, तो कांग्रेस में बवाल हो गया था। 1939 में कांग्रेस में पहली बार ऐसा देखने को मिला जब दो शीर्ष नेताओं में अध्यक्ष पद के लिए संघर्ष छिड़ गया। कई साल बाद ऐसा हुआ जब कांग्रेस अध्यक्ष सर्वसम्मति से नहीं, चुनाव के द्वारा चुना गया।

सुभाष चंद्र बोस के काम से महात्मा गांधी संतुष्ट नहीं थे। इस वजह से अध्यक्ष पद के लिए महात्मा गांधी ने पट्टाभी सितारमैय्या को खड़ा किया। सुभाष चन्द्र बोस ने गांधीजी के उम्मीदवार को हरा दिया। जहां बोस को 1580 वोट मिले वहीं सितारमैय्या को 1377 ही वोट मिले।

इसके बाद दुखी महात्मा गांधी ने सितारमैय्या की हार को अपनी हार बताया और अपने साथियों को संबोधित करते हुए कहा कि वे यदि सुभाष चंद्र बोस के काम से संतुष्ट नहीं हैं तो कांग्रेस छोड़ सकते हैं। इसके बाद कार्यकारिणी के 14 सदस्यों में से 12 ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। इससे दुखी होकर कुछ दिनों बाद सुभाष चंद्र बोस से खुद ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा सौंप दिया। इसमें बोस की नैतिक जीत और गांधी की नैतिक हार हुई। बताते हैं कि लोकतांत्रिक ढंग से विजयी एक कांग्रेस अध्यक्ष को गांधी जी ने काम नहीं करने दिया। बाद में सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लाक बना लिया। सुभाष चंद्र बोस की विमान दुर्घटना में निधन की जब खबर आई तो महात्मा गांधी ने कहा कि हिंदुस्तान का सबसे बहादुर व्यक्ति आज नहीं रहा। इतने गहरे मतभेद के बाद दोनों के दिलों में एक दूसरे को लेकर असीम स्नेह और प्यार था।
जागरण से साभार 

error: Content is protected !!