आज हम फिर उसी मोड़ पर खड़े है. साल मे सिर्फ एक बार महिला दिवस, उसी चोखट पर जहा नारी को किसी भाषा या रूप मे सम्बोधित किया जाता है. नारी जिसे युगों युगों से सिर्फ उसे उसके देह से पहचाना जाता है, सदियों से उसकी प्रखरता, सुघड़ता, कुशलता से परे रखते हुए. नारी आज भी जिसे माँ, बहन, पत्नी के रूप मे पहचाना जाता है, सही मायनो मे इन शब्दों के अर्थ वो ना जान सकी.
“माँ” के रूप मे बच्चो से छली,
“बहन” के रूप मे भाई से,
और
“पत्नी” के रूप मे पति से जीवन भर छली नारी,
हमेशा से ही अपने अधिकारों से लडती झूझती नारी, ना जाने क्यों सदियों से षडयन्त्र रचे गए है नारी को दबाने के, प्रताड़ित करने के. पुरुषो ने महिलाओ को इतना डरा दिया की उनके बिना महिलाओ का अस्तित्व ही नहीं, जिस से वो अपने आप को बिना पुरुष के असुरखषित, कमजोर और निर्बल ही समझती रही.
यह सदियों पुरानी परम्परा रही,पर आज की नारी ने खुद अपने आप अपनी पहचान बनायीं, उसने खुद की शक्ति को पहचाना, काफी हद तक अपने अधिकारों से लड़ना सीख लिया, उसने ये सिद्द किया की वो दुश्मन नहीं ममता की दुलारी है, हर एक के लिए सहयोगी है आज उसने पुरष के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चलना सीख लिया है, फिर चाहे कल्पना चावला हो या सुनीता विलियम्स, किरण बेदी हो या प्रतिभा पाटिल, या फिर पी.टी. उषा, हर जगह, हर फिल्ड मे उसने अपना परचम फहराया, साबित कर दिखाया की घर परिवार को वह एक पुरुष से ज्यादा बेहतर चला सकती है, अपने बच्चो की सही प्रकार से परवरिश कर सकती है, वो घर और बहार की जिमेदारी भली प्रकार से निभा सकती है. अंत मे मै यही कहना चाहूंगी कि
“हंस कर दर्द सह जाती है नारी, घर-घर को स्वर्ग बनती है नारी,
जमीन हो या खुला आसमा, हिम्मत के परचम फहराती है नारी”
-वनिता जैमन, भाजपा नेत्री व समाजसेविका
बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ..
हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर