सबकी झोली भरती है ख्वाजा के दर पर

Astana 1 aयूं तो दर पे ख्वाजा के सबकी झोली भरती है,
पर यह खबर नहीं होती कि कौन देने वाला है।
ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती गरीब नवाज के रहमों करम से अजमेर को दुनिया में अजमेर शरीफ के नाम से जाना जाता है, और दुनिया का कोई भी मुल्क हो, वहां का वाशिंदा इस सूफी संत की मजार पर अपनी अकीदत पेश करने के लिए लालायित रहता है। रजब की पहली से 6 तारीख तक तो कोई भी व्यक्ति ख्वाजा साहब के सालाना उर्स के मुबारक मौके पर अपनी हाजरी देने की तमन्ना रखते हैं।
ख्वाजा साहब के दरबार में हाजरी देने के लिए कई जायरीन तो सैंकड़ों मील चलकर आते हैं। कई हिन्दु-मुस्लिम कव्वाल हिन्दी, उर्दू,ब्रज भाषा में ख्वाजा साहब की शान में कव्वालियां पेश कर अपनी हाजरी देते हैं।

प्यारे मोहन त्रिपाठी
प्यारे मोहन त्रिपाठी

ख्वाजा की शान में देश के मशहूर व चुनिंदा कव्वालों न अपने-अपने जज्बात कव्वाली के माध्यम से बहुत ही खूबसूरत तरीके से पेश किए। चूंकि ख्वाजा साहब कव्वाली को आध्यात्म व मेडीटेशन के रूप में मानते थे इसीलिए उनके आस्ताने पर हाजरी देने वाले कव्वालों की भी भीड़ रहती है।
अजमेर के ही एक मशहूर कव्वाल बब्बन दीवाना कव्वाली में अपने जज्बात यूं पेश करते हैं-
चलो अजमेर में मंगतों की सुनी जाती है
बात बिगड़ी हुई दुनिया की बनी जाती है।

उन्होंने अपनी कव्वाली की शुरूआत इस प्रकार की-
ये ख्वाजा ए अजमेर है शंहशाहे हिन्द का दर
ये वो दर है कि जहां बन जाती है तकदीरें।
मेरी बिगड़ी बना दो तुमने लाखों की बनाई है।
भर दो-भर दो ख्वाजा मेरी झोली भर दो।
मांगने वालों में बदनामी हुई जाती है।
ये तेरी मस्त निगाहों का करम है ख्वाजा,
भीड़ मस्तों की तेरे दर पर लगी जाती है।
अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह मुस्लिम समुदाय ही नहीं अपितु हिन्दू-सिक्ख-ईसाई फारसी आदि सभी वर्ग के लोगों के लिए आस्था का तीर्थ स्थल है। यह कौमी एकता का सदा बहार चश्मा है, जिसके आंचल से इंसानियत, मुहब्बत व एकता का पानी बहता है । इसी चौखट पर अमीर, गरीब, फकीर एक साथ सजदा करते हैं व हाजरी देते हैं और उर्स के दौरान तो इस चौखट पर जायरीनों का तांता लगा रहता है।
ख्वाजा की चौखट पर ही रहने के लिए एक कव्वाल ने तो अपनी रचना में यहां तक कह दिया है-बेच डाली मुझे अजमेर के बाजारों में। इन्होंने अपने जज्बात पेश करते हुए कहा है कि –
यूं तो दर पे ख्वाजा के सबकी झोली भरती है
पर यह खबर नहीं होती कि कौन देने वाला है
जब तक बिका न था तो कोई पूछता न था
ख्वाजा ने तो खरीद के अनमोल कर दिया
मैंने राहे ख्वाजा में खुद को बेच डाला है
मुझको मिल गए ख्वाजा और मेरा कमली वाला है
सच तो ये है आलम में तेरा बोल बाला है
जा रहां हूं मैं का दिल ख्वाजा के दर पर
मेरा खुश नसीबी का दिन निकलने वाला है।

ख्वाजा साहब के दरबार में हाजरी देने वाले कव्वालों का तांता लगा रहता है। महफिल खाने में तो एक से छह रजब तक हाजरी देकर कव्वाली पेश करना कव्वाल अपनी शान समझते हैं। इसी क्रम में एक कव्वाली इस प्रकार पेश होती है-
ख्वाजा तुमरे रूठने मोरी आदर करे न कोय
दुर्र-दुर्र करें सहेलियां तो मुड़-मुड़ देखूं तोय
जोगन खड़ी तोरे द्वार ख्वाजा अजमेरी सरकार
करदो-करदो बेड़ा पार ख्वाजा अजमेरी सरकार
तुम हो अल्लाह के दिलदार ख्वाजा अजमेरी सरकार
दर पर तुम्हारे जो भी आए मन की मुरादें पाये
दया नजर की डार के सबके भाग्य जगाये
सुनलो हमरी भी पुकार ख्वाजा अजमेरी सरकार
बिन मांगे दिया और इतना दिया कि दामन में 
हमारे समाया नहीं।
मैं तो नादान था गालिश का भी क्या-क्या न किया,
लाज रख लो मेरे सरकार ने रूसवा न किया

कुल की रस्म पर भी दरगाह की शाही चौकी के कव्वाल ब्रज भाषा में ही यह गीत प्रस्तुत करते हैं-
हरियाला बन्ना आया मोरा ख्वाजा बन्ना आया।
-प्यारे मोहन त्रिपाठी

लेखक श्री प्यारे मोहन त्रिपाठी सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के उप निदेशक हैं। ख्वाजा साहब व उर्स पर उनके अनेकानेक आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। तीर्थराज पुष्कर पर भी उनकी विशेषज्ञता है।
उनका संपर्क सूत्र है:- 9414002324

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