कैसे कहें कि अब आजाद हैं हम?

indiaआशीष वशिष्ठ– सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है, दिल पे रखके हाथ कहिए देश आजाद है। जनकवि अदम गोंडवी का ये शेर आजादी की तस्वीर का जो खाका खींचता है उसकी सच्चाई से शायद ही किसी को इंकार हो। आजादी मिले भले ही 66 साल बीत गए हों लेकिन आम आदम की ङ्क्षजदगी में राई के दाने जितना फर्क ही शायद आ पाया है। बड़े दुर्भाग्य की बात है की आज भी करोड़ों देशवासी दो वक्त की रोटी, कपड़ा और मकान के लिए तरस रहे हैं। औद्योगिक विकास, आर्थिक उन्नति, हरी-नीली और श्वेत क्रांतिया, अंतरिक्ष की उड़ान, सामरिक क्षमता में वृद्धि और प्रत्येक क्षेत्र में विकास और उन्नयन की लंबी-चैड़ी बातें की जा रही है लेकिन इन सबके बीच आम आदमी सरकारी कागजों और फाइलों में भले ही सुविधा-संपन्न और सुखी हो गया हो जमीनी हकीकत तो इतनी बदतर है कि पूछिए मत।

बेरोजगारी, मंहगाई, अशिक्षा नासूर बन चुके हैं तो वहीं सरकार आम आदमी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने में नाकाम साबित हो रही है। 66 साल की आजादी के बावजूद आज भी देश में करोड़ों लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीते हैं। उनकी आमदनी नब्बे रुपये भी रोज नहीं हो पा रही है। वे आज भी भूखे सोते हैं। उन्हें अपने शरीर पर लपेटने के लिए चिथड़े भी नहीं हैं। बेरोजगारी के कारण देश के करोड़ों नौजवानों के सामने भविष्य का कोई विकल्प नहीं है, देश के लाखों बच्चे हर साल कुपोषण या चिकित्सा के अभाव में मर जाते हैं, खुले ठेकाकरण के चलते करोड़ों मजदूर अमानवीय स्थितियों में 12 से 16 घण्टे काम करने के लिये मजबूर हैं और हजारों किसान हर साल गरीबी और कर्ज के बोझ के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। मुश्किल से तीस-चालीस प्रतिशत लोग को छोड़कर शेष भारत की जनता का जीवन अनिश्चित, असुरक्षित और अनियमित है।

आजादी के समय जो जीप घोटाले से देश को लूटने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वो आज भी  बदस्तूर जारी है। कभी आईपीएल के नाम पर तो कभी कॉमनवेल्थ गेम्स और कभी 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के नाम पर। देश के गोदामों में लाखों टन अनाज सड़ रहा है वहीं दूसरी और देश के करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर है। आज शासक विदेशी नहीं अपने ही बीच के लोग दिल्ली या सूबे की राजधानियों की गद्दियों पर बैठे हैं। आज हम किसे कहें गद्दी छोड़ो और हम कहते भी हैं तो सुनता कौन है। आजादी के साढ़े छरू दशकों  बाद भी देश में विकास  न के बराबर हुआ है। 1947 मे जब आजादी मिली तो देश में 4 करोड़ गरीब थे, जनसंख्या उस समय करीब 33 करोड़ थी आज ये आंकड़ा दोगुने से ज्यादा है। सच्चाई यह है कि आजादी के बाद देश में गरीबी बहुत तेजी से बढ़ी है लेकिन सरकार आंकड़ेबाजी से जनता का दिल बहला रही है।

भ्रष्टाचार इतना बेलगाम हो चुका है कि आम जनता, अब इसे सुविधा शुल्क मान चुकी है। देश की आर्थिक स्थिति इन भ्रष्टाचारियों के चलते, शर्मदिंगी की कगार पर पहुंच गई है। आम आदमी को दबाने, कुचलने के प्रयास हर समय जारी रहते हैं इसलिए जनता चुप रहने में ही अपनी भलाई समझती है, जिसका नतीजा आज भ्रष्टाचार करोड़ों में नहीं, अरबों में होने लगा है। इन्हीं भ्रष्टाचारियों के चलते आज देश के एक हिस्से के दो फीसदी लोगों को दो जून की रोटी तक उपलब्ध नहीं होती, कपड़े और मकान तो दूर की बात है। लोग खुले आकाश के नीचे, अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ जीवन व्यतीत करने का मजबूर हैं।  ये सभी समस्याएं  सत्ता पर काबिज कुछ लोगों की भ्रष्ट नीतियों का फल है । सरकारी सर्वे हर साल बताते हैं, इस साल सौ लाख टन अनाज मंडी में आएगा, जो कि बीते साल की तुलना में दोगुना होगा। लेकिन  ढाक के फिर वही तीन पात, हमारे देश की एक तिहाई अबादी का फिर वही जलाहार। हमारे देश में भ्रष्टाचार के लिए कड़े कानून का न होना भी एक बड़ा कारण है। हत्या, नशीली दवाओं का कारोबार, अवैध हथियार रखने जैसे जघन्य अपराध करने के बावजूद, ये लोग बेल पर छूट जाते हैं या फिर, कुछ समय जेल में रहकर बाहर निकल आते हैं। बाहर आकर, फिर से वे उसी धंधे में संलग्न हो जाते हैं य क्योंकि उन्हें मालूम है, यहां जिसके पास घूस देने के पैसे हैं, उन्हें डर किस बात का, ऊपर से नीचे तक ,सब को खरीद लूंगा ।

आम आदमी को पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। देश में करोड़ों लोग रोज प्रदूषित और गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। गंदे पानी पीने के कारण लाखों लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की फटी हालत किसी से छिपी नहीं है। इलाज और दवा के अभाव में सैंकड़ों जिंदगियां रोज दम तोड़ रही हैं, औरतें सड़क पर बच्चा जनने को विवश हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर रोज तकरीबन नौ हजार बच्चे भूख और कुपोषण के कारण अपनी जान गंवा बैठते हैं, तथा 45 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। शर्मसार कर देने वाले ये आंकड़े उस देश के हैं जो खुद को अगली महाशक्ति के रुप में प्रचारित करता है। ऐसा नहीं है कि हर साल होने वाली इन मौतों को रोका नहीं जा सकता है ज्यादातर मामलों में इन मौतों के मुख्य कारण हैजा, निमोनिया, मलेरिया जैसी बीमारियां हैं जो लाइलाज बीमारियां नहीं हैं तथा अगर सरकार चाहे तो इन सभी बीमारियों की रोकथाम तथा पूर्ण इलाज संभव है। परंतु इस देश की तमाम राजनीतिक दल और उनके नेताओं को गरीब मेहनतकश जनता से ज्यादा टाटा, बिड़ला, अंबानी और कुछ चंद अमीर लोगों की चिंता है जो इस देश की कुल आबादी का केवल 10-15 फीसदी हिस्सा हैं। इतनी गंभीर और संकटमय स्थिति होने के बावजूद सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगती है।

प्राथमिक पाठशालाओं में हर साल 11 करोड़ बच्चे प्रवेश लेते हैं और बीए तक पहुंचते-पहुंचते वे सिर्फ 70 लाख रह जाते हैं। यानी 96 प्रतिशत बच्चे शिक्षा की दौड़ से बाहर हो जाते हैं। किसी भी देश में शिक्षा के नाम पर इतना बड़ा खिलवाड़ नहीं होता है। देश में आज भी पोबारी जैसे गांव मौजूद है जहां शिक्षा का उजाला आज तक नहीं पहुंच पाया है। यदि हम महिलाओं के बारे में सरकार की मंशा को देखें तो उसकी नीति दोरंगी  है। सत्ता के शीर्ष पर किसी महिला को बैठा दीजिए, फिर देश की सारी औरतों पर अत्याचार करते रहिए। वास्तव में भारत की संसद, सरकार और अदालतों में महिलाओं का प्रतिशत कम से कम 3३ फीसदी होना चाहिए, पर ऐसा नहीं है। राजनीतिक दलों में भी उनकी घोर उपेक्षा होती है। दामिनी रेप कांड के बाद हालात सुधरने नहीं बल्कि बिगड़ी है, एसिड अटैक की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है।

यहां आर्थिक विषमता अत्यंत विकराल होती जा रही है। एक तरफ लाखों रुपये रोज कमाने वालों की मंडली है तो वहीं दूसरी तरफ दाने-दाने को मोहताज लोगों की भीड़ लगी है। सरकार गरीबी के नित नए आंकड़ें पेशकर गरीबी के जख्मों पर मरहम लगाने की बजाय गरीब और गरीबी का मजाक उड़ा रही है। विकास तो आजादी के बाद हुआ है लेकिन उसका लाभ आबादी के एक बड़े हिस्से को मिल नहीं पा रहा है। मंहगाई, गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा का घेरा लगातार बड़ा होता जा रहा है। आम आदमी की सुरक्षा भगवान भरोसे है। महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे सर्वाधिक असुरक्षित है। सरकार की नीतियों से उपजी हताशा और आक्रोश नक्सलवाद को पोषित कर रही है। हालात दिन ब दिन बिगड़ते जा रहे हैं और कोढ़ में खाज यह है कि राजनीतिक दल और नेता हालात सुधारने और आम आदमी की सुध लेने की बजाय स्वार्थसिद्धि में लगे हुए हैं। जिस देश में करोड़ों लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध न हो, लाखों बच्चे इलाज के  अभाव में दम तोड़ देते हों, करोड़ों शिक्षा के प्रकाश से वंचित हो, महिलाएं घर और बाहर असुरक्षित हों, भूख और गरीबी शरीर बेचने को मजबूर करती हो, किसान आत्महत्या को विवश हों, करोड़ों खुले आसमान के खालीपेट सोते हों उस देश में यह कहना कि देश आजाद है और अपनी चुनी हुई सरकार है तो यह खुशी की बजाय दुख की बात लगती है। http://visfot.com

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