गुरूत्व ही है देश का मूल आधार

अजमेर दिनांक 19 जुलाई सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय, अजमेर में राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) के तत्वावधान में गुरूवन्दन कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता शिक्षाविद् विचारक एवं लेखक श्री हनुमान सिंह जी राठौड़ थे। कार्यक्रम अध्यक्षता महाविद्यालय के उपाचार्य डॉ. एस. के. श्रीवास्तव ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में रूक्टा राष्ट्रीय के महामंत्री डॉ. नारायण लाल गुप्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम की विधिवत शुरूआत माँ सरस्वती एवं महर्षि वेदव्यास के समक्ष दीप प्रज्जवलन एवं पुष्पअर्पण से हुई। रूक्टा (राष्ट्रीय) के महामं़त्री ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि का परिचय दिया। डॉ. गुप्ता ने गुरू-शिष्य परम्परा के वास्तविक अर्थ को समझने की आवश्यकता पर जोर देते हुए विषय प्रवेश प्रस्तुत किया। डॉ. गुप्ता ने श्री गुरूपूर्णिमा के महत्व को उच्च शिक्षा के सन्दर्भ में प्रस्तुत करते हुए गुरू-शिष्य परम्परा पर चिन्तन की बात कही।
इसके पश्चात् कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री हनुमान सिंह राठौड़ ने भारत के गुरूत्व की व्याख्या करते हुए कहा कि यह हमारा गुरूत्व ही था। जिसके कारण हमारा सामाजिक, सांस्कृतिक ढाँचा सर्वश्रेष्ठ था। श्री राठौड़ ने कहा कि गुरू-परम्परा में जो भोगवाद विकसित हुआ उसकी पराकाष्ठा हम आज देख रहे है। जीवन-दर्शन में व्यक्ति अपने गुरूत्व को भुला रहा है। श्री राठौड़ ने कहा कि अब गुरूत्व ही है जो व्यक्ति को अव्यवस्था से सुव्यवस्था की ओर ले जाता है। श्री राठौड़ ने ही हमें प्राचीन काल में विश्व को जीवन- दर्शन व आध्यात्म देने वाला सबसे श्रेष्ठ राष्ट्र बनाया था। श्री राठौड़ ने कहा कि भारत कर्म भूमि है ना कि भोग भूमि यह गुरूत्व का ही परिणाम है। उन्होंने कहा कि साधन महत्वपूर्ण नही है केवल साध्य महत्वपूर्ण है ऐसी भोगवादी विचारधारा गुरूत्व की अवहेलना का परिणाम है। श्री राठौड़ ने कहा कि कर्म भूमि बनाने वाले गुरूत्व की उपेक्षा के कारण ही आज विकसित राष्ट्र संसाधनो का शोषण कर रहे है। अपनी बढ़ती आवश्यकताओं को पुरा करने एंव आधुनीकता की अंधी दौड़ में सामाजिक कल्याण की बलि चढ़ाई जा रही है। श्री राठौड़ ने कहा कि गुरू वह है जो संयम का जीवन जीता है। हमारा मूल गुरूत्व जिससे संसार का कल्याण हो सकता है। आर्थिक समृद्धि एंव ज्ञान दोनों का सन्तुलन गुरूत्व से ही आ सकता है। आवश्यकता है आत्मशक्ति निर्माण की, सद्गुण विकसित करने की, कर्म प्रधान बनने की जिसका मूल आधार गुरूत्व ही होगा। श्री राठौड़ ने कहा कि शिक्षको का यह मौलिक कर्तव्य है कि देश के मूल आधार हमारे गुरूत्व हमारे जीवन दर्शन का चिन्तन मनन अपने विद्यार्थियों के साथ करे।
कार्यक्रम के अन्त में ईकाई सचिव डॉ ़ लीलाधर सोनी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनिल दाधीच ने किया।

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