जी नहीं । ये तो हमारे घर के सामने पिछले 25 साल से लगने वाला लेबर recruitment camp यानि दिहाड़ी मजदूरों का रोजी रोटी का मेला है जिसमे दो तीन सौ मजदूर तीन चार घंटे यहां इकट्ठे होकर एम्प्लॉयर का इंतज़ार करते हैं । कारों और स्कूटरों पर आकर ठेकेदार और निर्माण कार्यों के मालिक ऑन द स्पॉट इंटरव्यू और सैलरी negotiation कर मजदूर ले जाते हैं।
साथ में मालवाहक टेम्पो और चना मूंगफली के ठेले भी यहीं रुक कर बिज़नस करते हैं । कोढ़ में खाज के रूप में हर तीसरे महीने किसी किसी न किसी विकास कार्य की खुदाई या बारिश/लीकेज/अवरुद्ध ड्रेनेज की झील जैसे करतब भी साथ साथ चलते हैं । यागी गौरव पथ की गौरवमयी गाथा है ।
जाने माने इंजीनियार अनिल जैन की फेसबुक वाल से साभार