सरकार दरगाह कमेटी व नाजिम को लेकर गंभीर नहीं

तेजवानी गिरधर
तेजवानी गिरधर
ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह की अंदरूनी व्यवस्थाओं को देखने वाली दरगाह कमेटी के प्रशासनिक मुखिया नाजिम को लेकर गंभीर नहीं है। दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के तहत गठित इस कमेटी को एक ढर्ऱे की तरह चलाया जा रहा है, जबकि इसमें सदस्यों से लेकर नाजिम तक की नियुक्ति में अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है।
सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कमेटी के प्रशासनिक मुखिया की नियुक्ति अत्यधिक लेटलतीफी बरती जाती है। ऐसे अनेक मौके रहे हैं, जबकि नाजिम की अनुपस्थिति में कार्यवाहक नाजिम से ही काम चलाया गया है। हाल ही गुजरात के रिटायर्ड आईएएस आई बी पीरजादा को नाजिम नियुक्त किया गया है। सरकार की मनमर्जी देखिए कि जब अब तक यहांं नौकरी कर रहे सरकारी अधिकारी की नियुक्ति का नियम है और यही परंपरा भी रही है, उसके बावजूद इस पद पर सेवानिवृत्त आईएएस को नियुक्त कर दिया है। नियुक्ति में किस प्रकार राजनीतिक दखल रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे देश में उसे केवल गुजरात का ही अधिकारी इस पद के योग्य मिला है। इससे स्पष्ट है कि सरकार इस पद को ईनाम का जरिया बना रही है, जबकि यहां पूर्णकालिक अधिकारी की जरूरत है। जरूरत इसलिए है कि यह उस दरगाह का प्रबंध देखने वाली कमेटी का प्रशासनिक मुखिया है, जो पूरी दुनिया में सूफी मत मानने वालों का सबसे बड़ा मरकज है। इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के चलते अत्यंत संवेदनशील स्थान है। आतंकियों के निशाने पर है और एक बार तो यहां बम ब्लास्ट तक हो चुका है।
बेशक प्रतिदिन आने वाले जायरीन की सुविधा के मद्देनजर सरकार गंभीर रहती है, उसके लिए बजट भी आवंटित होता है, मगर दरगाह कमेटी व नाजिम को लेकर सरकार एक ढर्ऱे पर ही चल रही है। वस्तुस्थिति ये है कि यह कमेटी, विशेष रूप से नाजिम न केवल दरगाह की दैनिक व्यवस्थाओं को अंजाम देते हैं, अपितु खादिमों व दरगाह दीवान के बीच आए दिन होने वाले विवाद में भी मध्यस्थ की भूमिका उन्हें निभानी होती है। यह काम कोई पूर्णकालिक अधिकारी ही कर सकता है। होना तो यह चाहिए कि इस पद पर नियुक्ति ठीक उसी तरह से की जाए, जिस तरह आरएएस व आईएएस अधिकारियों तबादला नीति के तहत की जाती है। उसमें विशेष रूप से यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि वह दबंग हो।
अफसोसनाक बात है कि इस ओर केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय कत्तई गंभीर नहीं है। यही वजह है कि जब भी कोई नाजिम अपना कार्यकाल पूरा करके जाता है या इस्तीफा दे देता है तो लंबे समय तक यह पद खाली ही पड़ा रहता है। कार्यवाहक नाजिम से काम चलाया जाता है, जिसके पास न तो प्रशासनिक अनुभव होता है और न ही उतने अधिकार होते हैं। मंत्रालय इस पद को लेकर कितना लापरवाह है, इसका अनुमान इसी बात से लग रहा है कि उसने नियमों के विपरीत जा कर एक सेवानिवृत्त अधिकारी को नाजिम बना दिया। एक सेवानिवृत्त अधिकारी में कितनी ऊर्जा होती है, यह बताने की जरूरत नहीं है, जबकि यहां ऊर्जावान अधिकारी की जरूरत है, जैसे जिला कलेक्टर गौरव गोयल। ऐसा अधिकारी ही यहां की व्यवस्थाओं को ठीक ढ़ंग से अंजाम दे सकता है।
एक सवाल ये भी उठा है कि यदि सरकार को नियम बदल कर सेवानिवृत्त अधिकारी हो ही यहां लगाना था तो काहे को सेवारत अधिकारियों के इंटरव्यू आहूत किए गए। यह पहले से स्पष्ट होता कि इस पद के लिए सेवानिवृत्त अधिकारी भी आवेदन कर सकता है, तो संभव अन्य सेवानिवृत्त अधिकारी भी आवेदन करते।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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