सुरेंद्र चतुर्वेदी
दोस्तों मैं इन दिनों बहुत दुखी हूँ। अखबार वाले अजमेर की पुलिस पर जिस तरह छीटा कशी कर रहे हैं उसे देख कर लगता है कि वह अजमेर की पुलिस को द्रोपदी बनाकर छोड़ेंगे। जिस तरह से हर हाथ उनका चीर हरण में बिजी है वह घोर चिंता का विषय है।
एक वक्त था जब मामूली सिपाही को भी सम्मान से देखा जाता था। अब तो पुलिस कप्तान तक को बच्चे ठुल्या कह देते हैं।बता नहीं सकता कितना दुःख होता है।।
शहर में आए दिन अपराध हो रहे हैं ।थानों के पास चोरियां हो रही है ।मगर इसका ये मतलब नहीं कि ये सब काम पुलिस वाले कर रहे हैं या करवा रहे हैं।ये काम तो हरामी बदमाश करते हैं।
अब कल एक बन्दा पूछ रहा था कि शहर में चोर ज्यादा हैं या पुलिसवाले ।ज़ाहिर है कि कम तो पुलिस वाले ही होंगे।ज्यादा तो अपराधी ही हैं।बेचारे पुलिस वाले तो गिनती के ही हैं ।मेरे हिसाब से 7लाख की आबादी में 25 हज़ार हरामी तो होंगे ही।बाहर से आने वाले अलग हैं।उनकी तुलना में बेचारे पुलिसवाले हैं कितने? जितना उन से हो सकता है करते हैं। हेलमेट नहीं होता तो चालान बनाते ही न?शराब की दुकानों के बाहर खड़े होकर शराबियों के बारह बजाते ही हैं।ध्यान भी रखते हैं कि दारू की दुकान ठीक 8 बजे बंद हो जाएं।रात में किसकी हिम्मत जो चलता वाहन रुकवा कर लोगों के मुँह सूँगे।मगर वे शौक़ से सूँघ लेते है। चौराहों पर सिटी बजाकर कौन वाहनों को रोकता है ?जाम हो जाये तो कौन माँ बहन याद दिलाता है?उर्स और पुष्कर मेले में कौन ड्यूटी देता है? VIP आने पर सलामी कौन देता है।
रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड के आस पास वही तो मूंगफली वालों औरऑमलेट वालो के पास खड़े नज़र आते हैं। थानों और चौकियों में राइफल उठाकर वही तो संतरी ड्यूटी देते हैं। आप जरा गलत पार्किंग कर देखें फिर देखें कैसे आपका वाहन वहां से उठवा दिया जाता है।ये सब पुलिस वाले ही तो पसीने बहा कर करते हैं।
लोग कहते हैं कि पुलिस वाले रिश्वत लेते हैं। हाँ,मानता हूँ कि थोड़ा-बहुत जेब खर्च निकल लेते होंगे मगर जब सारे विभागों में ये हो रहा है तो बेचारे इस डिपार्टमेंट में ही रोक क्यों ? मगर यह बताओ आज तक अजमेर की पुलिस ने करोड़ों का घोटाला किया क्या?थाने में किसी का चीयर हरण किया क्या?तो फिर उनकी कुत्ता फ़ज़ीति क्यों?
दोस्तों मैं इन दिनों बहुत दुखी हूँ।अखबार वाले अजमेर की पुलिस पर जिस तरह छीटा कशी कर रहे हैं उसे देख कर लगता है कि वह अजमेर की पुलिस को द्रोपदी बनाकर ही छोड़ेंगे ।जिस तरह से हर हाथ उनका चीर हरण कर रहा है चिंता का विषय है।
अजमेर के पुलिस कप्तान राजेंद्र सिंह को नमन करता हूं। मैं उनकी तारीफ करता हूं उनके आने के बाद शहर में अपराधियों के हौसले पस्त हुए हैं। पुलिस वालों के हौसले बढे हैं। अपराध तो पूरे देश में हो रहे हैं तो अजमेर में भी होंगे ही ।शहर के राजनेता खुद चुन कर पुलिस वालों का ट्रांसफर अजमेर में करवाते हैं ।कौन सा हैआई जी, एस पी, यहां तक कि आई जी और सिपाही भी राजनेताओं की डिजायर पर आते हैं तो ऐसे में राजनेताओं पर कोई सवाल क्यों नहीं उठाता? बिचारी पुलिस की ही सब घोड़ी क्यों बनाते हैं ।पुलिस वालों तुम लोग जो चाहो करो। जैसे चाहो करो ।गस्त पर जाओ या ना जाओ। अपराधियों पर लगाम लगाओ या ना लगाओ। इलायची बाई की गद्दी के नीचे सब चलता है।।

बहुत सुंदर आलेख. विद्वान लेखक ने नगर में कानून और व्यवस्था की समस्या की जड़ तक पहुँचने का प्रयास किया है. लेकिन सवाल वही कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?