क्या तकनीकी पेच में उलझ जाएगा डॉ. गोखरू का मामला?

dr. r k gokharuअजमेर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय के कार्डियोलॉजी विभाग में हुए दवाओं के गोरखधंधे के मामले में विभाग के प्रमुख डॉ आर के गोखरू पर लगे आरोप तकनीकी पेच में उलझते दिखाई दे रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि निशुल्क दवा योजना के लिए जो नियम बने हुए हैं, उसमें और इस योजना का संचालन व निगरानी करने वाले राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कार्पोरेशन को दिए गए अधिकारों में कुछ अस्पष्टता है।
हालांकि इस सिलसिले में गठित हाईपावर कमेटी ने जांच कर रिपोर्ट राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कार्पोरेशन के एमडी डॉ. समित शर्मा को भेज दी है, जिस पर कार्यवाही होना बाकी है, मगर इस मामले में डॉ. गोखरू को जो रवैया रहा है, उससे अहसास होता है कि कहीं न कहीं उनके बचने का ग्राउंड है। तभी तो उन्होंने जेएलएन मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य एवं नियंत्रक डॉ पी के सारस्वत की ओर से दिए गए कारण बताओ नोटिस का जवाब देना जरूरी नहीं समझा। इतना ही नहीं उन्होंने प्राचार्य डॉ. सारस्वत पर ही विभिन्न आरोप लगाते हुए इन्हें जांच कमेटी से ही बेदखल करने की मांग कर दी। उनका कहना था कि डॉ. सारस्वत उनके व्यक्तिगत द्वेष रखते हैं, क्योंकि उन्होंने प्राचार्य पद के आवेदन कर रखा है। अत: डॉ. सारस्वत के स्थान पर किसी अन्य मेडिकल कॉलेज प्राचार्य के नेतृत्व में हृदयरोगियों के विशेषज्ञों को जांच कमेटी में शामिल किया जाए, ताकि निष्पक्ष और न्यायपूर्ण जांच संपादित हो सके। ऐसा प्रतीत होता है कि डॉ. गोखरू अपने कदम के प्रति इतने आश्वस्त हैं कि उन्होंने अनुशासनात्मक कार्यवाही तक की परवाह किए बिना नोटिस का जवाब देने से इंकार कर दिया। उन्होंने एक और पेच भी फंसाया, वो यह कि उनके खिलाफ जिस मामले में जांच की जा रही है, उसमें एक सामान्य फिजीशियन सही निर्णय नहीं कर सकता। इसके लिए हृदयरोग का विशेषज्ञ होना जरूरी है। अर्थात उन्हें इस बात का अंदाजा है कि यदि कमेटी में हृदयरोग विशेषज्ञ होंगे तो वे डॉ. गोखरू की ओर से सुझाए गए इंजेक्शन की अहमियत को स्वीकार करेंगे। इससे यह भी आभास होता है कि डॉ. गोखरू के पास अपनी ओर से सुझाये हुए इंजैक्शन को ही लगाने के दमदार तकनीकी आधार हैं, जिसके बारे में कार्पोरेशन के पास स्पष्ट नीति-निर्देश नहीं बनाए हुए होंगे। उनका यह तर्क तो कम से कम बेहद तकनीकी है ही कि सरकार की ओर से निर्धारित इंजैक्शन की सक्सैस रेट कम है और देर से असर करता है, जबकि वे जो इंजैक्शन लिखते हैं, वही कारगर है। अर्थात वे यह कहना चाहते हैं कि एक विशेषज्ञ ही यह बेहतर निर्णय कर सकता है कि मरीज की जान बचाने के लिए तुरत-फुरत में कौन सा इंजैक्शन लगाया जाना चाहिए।
एक बात और। जिन पुष्कर नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष सूरजनारायण शर्मा की पर्ची पर तीस हजार रुपए का इंजैक्शन लिखा पकड़ा गया, वे जांच कमेटी के सामने उपस्थित ही नहीं हुए। कदाचित वे इस मामले को आगे बढ़ाना ही नहीं चाहते हों। ऐसे में डॉ. गोखरू के खिलाफ बनाया गया मामला कुछ तो कमजोर हुआ ही है।
अब बात करते हैं डॉ. गोखरू पर खड़े किए गए सवालों की, जो कि काफी गंभीर हैं। प्राचार्य एवं नियंत्रक डॉ सारस्वत ने कारण बताओ नोटिस इन सवालों के जवाब मांगे गए थे:-
इंजेक्शन टीपीए इलेक्सिम-40 जो एमआई के मरीजों में थ्रॉम्बोलाइसिस के लिए लगाया जाता है, का विकल्प इंजेक्शन स्ट्रेप्टोकिनेस मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत ईडीएल में उपलब्ध होने के बाद भी महंगा इंजेक्शन टीपीए इलेक्सिम-40 क्यों मंगवाया गया?
पूर्व में दी गई चेतावनी के बावजूद महंगे इंजेक्शन लिखने के कृत्य की पुनरावृत्ति इस बात को प्रमाणित करती है कि वे जनहित से जुड़ी मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के सफल क्रियान्वयन में सहयोग नहीं कर रहे हैं।
सीएच मेडी फार्मा के मालिक आपके भाई हैं, जिनका नाम परम चंद गोखरू हैं।
किसी भी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर का किसी भी फर्म/ फार्मास्युटिकल से जुड़ा होना अनैतिक कृत्य की श्रेणी में आता है, जबकि सीएच मेडी फार्मा स्वयं आपके सगे भाई की होना बताई गई है। यह फर्म को अनुचित लाभ पहुंचाने की श्रेणी में आता है।
हार्ट सेंटर से भी आप संबद्ध रहे हैं। इस सेंटर के संचालन से संबंधित एक शिकायत प्राप्त हुई थी। इस कार्यालय द्वारा 17 सितंबर 2012 के द्वारा एक शपथ पत्र मांगा गया था। इसके बाद भी 4 अक्टूबर 2012 और 20 अप्रेल 13 को स्मरण पत्र प्रेषित किए गए। लेकिन आज तक आप द्वारा कोई शपथ पत्र नहीं दिया गया, जो इस तथ्य को सत्यापित करता है कि आप प्राइवेट हार्ट सेंटर इंदिरा कॉम्पलेक्स से नि:संदेह जुड़े हैं।
राज्य सेवा में रहते हुए निजी संस्थान हार्ट सेंटर से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े होना भी राज्य सेवा नियमों का उल्लंघन है।
स्टॉकिस्ट सीएच मेडी फार्मा का इंजेक्शन टी पीए इलेक्सिम-40 कब से एवं किसके आदेशों से कार्डियोलोजी विभाग के लाइफ लाइन स्टोर पर रखवाया गया।
स्टेंट सीधे ही कैथलैब से मरीजों को लगाया जाता है तथा इन्हें लाइफ लाइन स्टोर में फर्म द्वारा सप्लाई नहीं किया जाता। ऐसा कब से एवं किसके आदेश पर किया जा रहा है।
इन आरोपों से साफ है कि वे हैं तो गंभीर मगर उनसे निकलने की कई गलियां हो सकती हैं, जैसा कि आम तौर पर सरकारी जांचों में होता है।
कुल मिला कर अब यह देखना होगा कि डॉ. गोखरू के खिलाफ क्या कार्यवाही होती है? होती भी है या नहीं?
-तेजवानी गिरधर

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