‘व्यापम’ भ्रष्टाचार और घोटालों पर भी न्यायिक सक्रियता अपेक्षित

bjp logo-श्रीराम तिवारी- कांग्रेस की जन-विरोधी नीतियों और उस के तत्कालीन नेतृत्व के कुशासन, महंगाई, भ्रष्टाचार तथा शीर्ष नेतृत्व की जड़ता से आजिज आकर ही मध्यप्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को तथा उस की शिवराज सरकार को दुबारा सत्ता के सिंहासन पर बिठाया। हालांकि इससे पूर्व 2003 में भी ‘संघ परिवार’ के तथाकथित राष्ट्रवादी-चाल-चेहरा और चरित्र के नाम पर, कुछ ‘राम लला’ मंदिर के नाम पर, कुछ हिंदुत्व के नाम पर, कुछ तत्कालीन स्टार प्रचारक सुश्री उमा भारती की ‘ताण्डवी’ वक्तृता शैली के नाम पर, कुछ तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह जी की हठधर्मिता और उनको ‘मिस्टर बंटाढार’ निरूपित किये जाने के नाम पर- भाजपा को मध्यप्रदेश की सत्ता का सुख-सहज ही प्राप्त हो गया था। चूँकि मध्यप्रदेश में तीसरे मोर्चे की हालात दयनीय है, इसलिए विगत 2013 में विधान सभा के चुनाव में और मई-2014 में लोक सभा के चुनाव में मध्यप्रदेश की जनता ने यूपीए-2 के खिलाफ अपने आक्रोश को व्यक्त करते हुए भाजपा को तरजीह दी। लेकिन अब जनता अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रही है।

बहरहाल फिलहाल तो मध्यप्रदेश की जनता को चौतरफा संकट ने घेर रखा है। पहले केंद्र में यूपीए की मनमोहन सरकार ने इसलिए कोई तवज्जो नहीं दी कि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार थी। जब शिवराज जैसे घोषणावीर हैं तो वे ही भुगतें। उनकी घोषणाओं की पूर्ति कांग्रेस या यूपीए क्यों करे ? अब चूँकि केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार है और यह जगत प्रसिद्ध है कि शिवराजसिंह चौहान ने कभी भी श्री नरेंद्र मोदी का दिल से साथ नहीं दिया। वे कभी आडवाणी के खड़ाऊँ उठाऊ बने रहे, तो कभी खुद भी भारत का प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोते रहे। हालाँकि यह कोई गुनाह नहीं है किन्तु जब इसी वजह से वर्तमान केंद्र सरकार यानी एनडीए या यों कहें कि ‘नमो सरकार‘ की ओर से मध्यप्रदेश को न तो रेल बजट में और न ही आम बजट में कोई खास तवज्जो दी गई। तब तो फिर शिवराज पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है। सभी को विदित है कि शिवराज द्वारा की गई किसी भी आर्थिक मांग पर मोदी सरकार ने कोई ठोस आश्वाशन नहीं दिया। उलटे मोदी सरकार की ओर से मध्य प्रदेश के किसानों को सब्सिडी- बोनस छीनने तथा प्रादेशिक इंफ्रास्ट्रक्चर की किसी भी मद के लिए, निवेश का कोई सकारात्मक सहयोग नहीं मिल पा रहा है। इधर मानसून ने भी इस बार किसानों को अधमरा कर दिया है। जबकि दूसरी ओर भ्रष्ट अधिकारी, खनन माफिया और कुछ स्वार्थी नेता इस बीमारू राज्य को कांग्रेस और यूपीए से भी ज्यादा बुरी तरह लूट रहे हैं।

प्रदेश की जनता, जिसने भारी बहुमत से भाजपा को या ‘संघ परिवार’ को वोट दिया, वो अब मौजूदा महाभ्रष्ट प्रदेश सरकार का असहनीय भार ढोते रहने को सदैव अभिशप्त नहीं रह सकती।

हालाँकि यह भरम कोई मूरख ही पाल सकता है कि वर्तमान ‘व्यवस्था’ यानी मौजूदा ‘सिस्टम’ यानी इसी भ्रष्ट ‘प्रशासन तंत्र’ के रहते ही सत्ता परिवर्तन कर देने मात्र से- न्याय,शुचिता, सुशासन तथा विकास की गंगा बहाना सम्भव है ! पूर्ववर्ती सत्ताच्युत कांग्रेसी सरकार तथा वर्तमान सत्तारूढ़ भाजपा नेताओं का अनैतिक आचरण बिलकुल एक जैसा है। भाई- भतीजावाद, माफियावाद, दुष्प्रचार तथा चुनावी कथनी-करनी में दोनों एक समान हैं। जब शिवराजसिंह पर अंगुली उठती है तो वे अपने पूर्ववर्तियों के काले कारनामों की जांच की धौंस देने लगते हैं। कोई भी पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री भी दूध का धुला नहीं रहा। मान भी लें कि मौजूदा शिवराजसिंह सरकार ने अपने रिश्तेदारों को-सालों को, भांजियों को, ‘संघियों ‘को वास्तव में उपकृत किया है, तो भी कोई बेजा बात नहीं। क्योंकि स्वर्गीय अर्जुनसिंह जी ने तो न केवल विंध्य क्षेत्र अपितु पूरे मध्यप्रदेश, छग और पूरे भारत के अन्य राज्यों में भी अपने हजारों लाखों अनुयाईओं और कांग्रेसियों को इसी तर्ज पर उपकृत किया ही था। उनके कार्यकाल में ‘भोपाल गैस काण्ड हुआ और हजारों मारे गए। लाखों बर्बाद हो गए। उनके ही कार्यकाल के दौरान ‘एंडरसन’ को भगाने की बात लोग भूले नहीं हैं। इसी तरह ‘दिग्गी राजा’  जी ने भी अनेक पार्टी कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों का उद्धार किया। भले ही वे आजकल शिवराज की मुश्कें बाँध रहे हैं, किन्तु उनके द्वारा उपकृतों की सूची भी छोटी नहीं हैं। इसी तरह शुक्ल बंधू, सेठी जी, पटवाजी, सकलेचा जी, जोगी जी, जितने भी महानुभाव मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने, सभी ने जी भरकर जनता की ‘सेवा’ की है। मेवा भी पाया ही होगा। लेकिन कांग्रेस को उसके किये-धरे का फल मिल चुका है। जनता ने भरपूर सजा दी है। उसके किये का दंड इतना भयावह है कि आज कांग्रेस इस लायक भी नहीं रही कि संसद में विपक्ष की हैसियत याने दर्जा [10% सीटें भी नहीं हैं ] हासिल कर सके। किन्तु क्या भाजपा, क्या शिवराज सरकार और क्या, मोदी सरकार भी इसी तरह के हश्र या दंड के लिए लालायित है ?

वास्तव में तो शिवराज सिंह चौहान को या भाजपा को जो प्रचंड बहुमत मिला है वो कुछ कर दिखाने के लिए ही मिला है। किन्तु सत्ता पाने के बाद वे भी उस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं कि “प्रभुता पाय काहि मद नाहीं।”

इन दिनों मध्यप्रदेश में ‘कांग्रेस बनाम भाजपा ‘यानी’ नागनाथ बनाम साँपनाथ’ वाला जुमला ही सही साबित होता जा रहा है! तब कांग्रेस यदि चोर सिद्ध हुई थी तो अब भाजपा ‘डाकू’ सिद्ध हो रही है। इस दौर में एक फर्क जरूर नज़र आ रहा है कि कांग्रेसी शासन में आलोचकों या विरोधियों को अपनी बात रखने की पूरी आजादी थी किन्तु भाजपा शासन में फासिस्टवाद का वीभत्स चेहरा भी धीरे-धीरे सामने आने लगा है। इन दिनों भाजपा नेतृत्व की असहिष्णुता और अलोकतांत्रिकता का नंगा नाच मध्यप्रदेश में देखने को आसानी से मिल सकता है। शिवराज पर लगे आरोपों को वे तर्क से नहीं ताकत से नकार रहे हैं। शक्ल सूरत में बदलाव के बजाय आइना फोड़ने पर आमादा हैं। जिस मीडिया ने सर आँखों पर बिठाया, विजय दिलवाई उसे अब आँखें दिखाएँ जा रहीं हैं। शिव सेना के “सामना” की तर्ज पर मध्यप्रदेश में भी ‘आग उगलु’ भाजपाई अखबार निकालने की जुगत बन चुकी है। सच्ची आलोचना भी सहने को तैयार नहीं हैं शिवराज !

ग्वालियर के एक सामाजिक कार्यकर्ता और ‘व्यापम’ घोटाले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भांजी सहित सात अन्य ‘भांजे-भांजियों’ के प्रकरण में किये गए भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले आशीष चतुर्वेदी को जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं। जबकि सम्पूर्ण भारत में व्याप्त भयानक भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी और परिवारवाद की लूटखोरी के सापेक्ष मध्यप्रदेश में भाई-भतीजावाद, माफियावाद, भ्रष्टाचार, हत्याएं, लूट और रिश्वतखोरी चरम पर है। शासन-प्रशासन में जोंक की तरह चिपके कुछ स्वार्थियों अफसरों ने अकूत धन अर्जित किया है। शिवराजसिंह सरकार के 10 सालाना कार्यकाल में जितने घोटाले हुए हैं, उनके सामने कांग्रेसियों के घोटाले तो बहुत बौने और क्षुद्र लगते हैं।

आशीष चतुर्वेदी पर तीन जानलेवा हमले हो चुके हैं। जब उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस में की तो उनसे सुरक्षा के एवज में 50000 रूपये मांगे गए। परेशान होकर चतुर्वेदी जी न्यायालय का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं। वे काफी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इसी तरह व्यापम घोटाले के ‘व्हिसिल ब्लोवर’ डॉ आनंद राय को भी धमकियां मिल रहीं हैं, पुलिस और प्रशासन सुरक्षा देने से आनाकानी कर रहा है। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर तथा अन्य शहरों में सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई कार्यकर्ता असुरक्षा की जद में हैं। जबकि महाभ्रष्ट व्यापम परीक्षा नियंत्रक-पंकज त्रिवेदी, सहयोगी भ्रष्टाचारी नितिन महिंद्रा, खनन और व्यापम माफिया- सुधीर शर्मा, पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, उच्चधिकारी- ओ इस डी शुक्ल तथा अन्य अनेक नामचीन्ह ‘सत्ता के दलाल’ मदमस्त हैं। इंवेस्टिगेशन के नाम पर एसटीएफ ने गिरफ्तारी का ड्रामा किया और ये नापाक ताकतवर लोग जेलों में भी महफूज हैं। मजामौज कर रहे हैं। ये कोई मामूली चोर नहीं हैं, बल्कि ये तो वर्तमान चुनाव प्रणाली में सत्तारूढ़ पार्टी को धन आपूर्ति के इंतजाम  अली हैं। ये तो इस व्यवस्था में चंद दलालों के नाम भर हैं। इस खेल में बड़े-बड़े ओहदेदार और भी शामिल हो सकते हैं किन्तु एसआईटी की जांच के बहाने मामला रफा दफा किये जाने के प्रयास जारी हैं। यही वजह है कि न केवल विपक्षी पार्टियाँ बल्कि सुश्री उमा भारती सहित अन्य भाजपाई भी सीबीआई जांच की मांग करने लगे हैं। लगता है कुछ खास लोग भी अब  शिवराज को ‘खो’ करने की फिराक में हैं। किन्तु इससे ‘व्यापम भ्रष्टाचार’ या पीएससी घोटाले से पीड़ितों को न्याय कैसे मिलेगा ? वास्तव में जिस तरह यूपीए के काले कारनामों को उजागर करने में उसे सत्ता से वेदखल करवाने में अदालत की भी सार्थक भूमिका रही है, उसी भाँति मध्यप्रदेश सहित देश के अभी राज्यों में चल रहे भ्रष्टाचार और घोटालों पर भी अदालत की न्यायिक सक्रियता अपेक्षित है। जनता को भी सुनिश्चित करना होगा कि ईमान की रोटी चाहिए तो संघर्ष करके अपना हक हासिल करें न कि सत्ता के दलालों को रिश्वत देकर, वोट देकर या सम्मान खोकर अपनी आत्मा को बेचने का दुष्कर्म करते रहें।

चूँकि आज न केवल मीडिया के सवालों से, न केवल जनता के विरोधी तेवर से न केवल विपक्षी कांग्रेस पार्टी के अप्रत्याशित हमलों से बल्कि खुद उन्हीं की पार्टी- भाजपा के मोदी समर्थक धड़े की वक्र दॄष्टि से शिवराज सिंह चौहान सरकार न केवल संदेह के घेरे में है बल्कि डगमगा भी रही है। यह सरकार न केवल जनता की नजरों से गिर रही है बल्कि ‘संघ परिवार’ के बुजुर्गों-चिंतकों, बौद्धिकों और ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजरों में भी उसका कोई विशेष सम्मान नहीं रह गया है। विगत दिनों मोहन खेड़ा तीर्थ में संपन्न ‘संघ’ के विशेष सम्मेलन में सीएम शिवराज सिंह को इस बाबत ‘काफी फटकार भी लग चुकी है। उनके निजाम में, उनके मुख्यमंत्रित्व में व्यापम और अन्य घोटालों की जो आंच ‘सघ’ तक पहुंची है, लगता है कि उससे संघ भी आहत है। अब यदि ‘नमो’ को लम्बी पारी खेलना है तो वे भी इस दकियानूसी पतनशील सिस्टम में थेगड़े लगाने के बजाय उसके आमूल-चूल बदलाव की बात करें। राजकोष में इजाफे के लिए, विकास-खर्चों की पूर्ति के लिए, वांछित धन को हासिल किये जाने बाबत मनमोहन सिंह की बदनाम आर्थिक नीति को कट्टरता से लागू करने के बजाय, मोदी जी आप अपनी ही पार्टी के बदनाम चेहरों से निजात पाएं। आपने जिस काले धन को स्विटजरलैंड से वापिसी का जनता से चुनावी वादा किया था वो तो कभी भी संभव नहीं है। किन्तु उससे ज्यादा पैसा तो आपको मध्य प्रदेश के भू माफियाओं, भ्रष्ट-बेईमान, अफसरों, व्यापारियों और नेताओं के पास से ही मिल सकता है। यदि इस काले धन को राजसात किया जाए तो इससे बड़ा देशभक्तिपूर्ण कार्य और क्या हो सकता है ?

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