चालाकी को कूटनीति समझ लिया है मोदी सरकार ने

Narendra modi 04सबसे पहले प्रधानमंत्री ने ट्वीट करके दुनिया को ओबामा को भेजे गये निमंत्रण के बारे में बताया। अमेरिका इस पर कोई प्रतिक्रिया दे, उसके पहले ओबामा ने अपने सैनिक जेट विमान से ही नवाज़ शरीफ़ को फ़ोन करके उन्हें आश्वस्त किया। इसके साथ ही चीन ने पाकिस्तान में 45.6 बिलियन डालर के निवेश की घोषणा कर दी। पाकिस्तान की अर्थ-व्यवस्था के आकार को देखते हुए यह भारत में 200 बिलियन डालर के निवेश के बराबर पड़ता है। इसके अलावा भारत की आज़ादी के बाद के अब तक के इतिहास में पहली बार रूस ने पाकिस्तान के साथ सैनिक सहयोग की संधि की है।
अब आप ही कहिये, कूटनैतिक मामलों में कौन इक्कीस साबित हो रहा है।
पाकिस्तान-पाकिस्तान का रोना जितना बढ़ेगा, उसे सबक़ सिखाने का जितना तेवर दिखाया जायेगा, दुनिया में भारत का अलग-थलगपन सीधे उसी अनुपात में बढ़ता जायेगा। मोदी का भारत दुनिया की नज़रों में विश्वसनीय नहीं है, जबकि पाकिस्तान आज भी अमेरिका की कथित ‘आतंकवाद-विरोधी’ मुहिम का सहयोगी है। भारत की अदालतों में हेराफेरी जितनी संभव है, विश्व समुदाय की अदालत में उतनी ही मुश्किल। कूटनीति में सचाई से बड़ा दूसरा कोई अस्त्र नहीं होता और मोदी जी को इसी मामले में अपनी विश्वसनीयता क़ायम करनी है।
दरअसल, हमारी सरकार के कूटनैतिक लक्ष्यों में ज़रा भी स्पष्टता नहीं है। इन्होंने चालाकी को कूटनीति समझ लिया है और विश्व समुदाय को भारत का मतदाता -जो पूरी तरह से ग़लत है। इस बात को अच्छी तरह समझ लिया जाना चाहिये कि विश्व रणनीति में अमेरिका का सहयोगी बनना और अंध पाकिस्तान-विरोध, ये दोनों परस्पर-विरोधी चीज़ें हैं। अमेरिका को अपनी विश्व सामरिक रणनीति में पाकिस्तान की सख़्त ज़रूरत है। शुद्ध सामरिक रणनीति के लिये उसे भारत जैसे बड़े देश को पालने की ज़रूरत नहीं है। और किसी भी चक्कर में वह पाकिस्तान की तरह के सामरिक महत्व के स्थान को पूरी तरह चीन के सुपुर्द कर सकता है।
और जहाँ तक अपनी पूँजी के लिये भारत के क्षेत्र को हासिल करने का सवाल है, हमारे लोग भले न जानते हो, लेकिन अमेरिकी अच्छी तरह जानते हैं कि भारत ने विकास का जो रास्ता पकड़ा है, उसमें अमेरिकी पूँजी के प्रति भारत का आकर्षण कहीं ज्यादा है, न कि अमेरिकी पूँजी का भारत में जाने का। इस मामले में वह पूँजी के अपने स्वाभाविक तर्क को जानता है, भारत के पूँजीपतियों की लोलुपता को, भारतीय राज्य पर उनकी पकड़ को भी जानता है। पूँजीवाद का रास्ता होगा और अमेरिका से परहेज़ करके चला जायेगा- यह चल नहीं सकता। यही वजह है कि भारत-अमेरिका संबंधों को हमारे भाजपा के लोग जितना अधिक पाकिस्तान के संदर्भ से दूर रखेंगे, उतना ही सच्चाई के क़रीब होंगे। इस मामले में मनमोहन सिंह कहीं ज्यादा यथार्थवादी थे। वे अर्थनीति के तर्कों को समझते थे।
मोदी जी की प्रदर्शनकारी ओबामा-प्रीति ने पाकिस्तान को चारों दिशाओं का स्नेह-भांजकर बना दिया है।
जो लोग पाकिस्तान की तर्ज़ पर अमेरिका के वरद्-हस्त के लिये तरस रहे हैं और ओबामा के आगमन से आह्लादित है, पाकिस्तान उनका आदर्श हैं, हमारा नहीं। जानकार उसे फ़ेल्ड स्टेट मानते हैं, और आज की भारत सरकार उसी का अनुसरण करना चाहती है। भारत अब तक यदि ‘failed’ नहीं है तो भाजपा वालों की वजह से नहीं अब तक के रास्ते को उलट कर ज़रूर failed वाली खाई में कूदने की दिशा में बढ़ने की कोशिश हो रही है।
पाकिस्तान की भौगोलिक-राजनीतिक स्थिति, हुक्मउदूली की उसकी मजबूरी, भाड़े के टट्टुुओं के रूप में उसकी सदा-सर्वदा उपलब्धता सर्वोपरि अंग्रेज़ों की दी हुई वे सारी बातें जिन पर हम भी कभी-कभी इतराते हैं ।
अरुण माहेश्वरी
http://www.hastakshep.com/

error: Content is protected !!