हुकुम का इक्का , पिट चुका है ?

sohanpal singh
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जहाँ तक बात पलायन की है हुकुम सिंह स्वयं कैराना से पलायन कर चुके है तो उनका अपना नाम पलायन कर्ताओं की सूची में क्यों नहीं है , यह सोंचने वाली बात है ? और बात जब पलायन की होती है तो उनकी पार्टी के अध्यक्ष गुजरात से दिल्ली क्या व्यापर करने आये थे या गुजरात के मुस्लिमो ने मार कर भगाया था ? अध्यक्ष ही क्यों प्रधान मंत्री भी तो राजनितिक रोटिया सेंकने के लिए गुजरात से बनारस आये थे पलायन करके ? तो क्या इन लोगो का पलायन , पलायन नहीं है ये भी तो अपनी रोजी रोटी ( राजनीती ) के लिए पलायन किये थे तो गरीब या अमीर अगर अपनी रोजी रोटी के लिये एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है तो पलायन क्योंकर हुआ ?

यह तो सर्वविदित है की 78 वर्षीय गुर्जर बिरादरी के ( हिन्दूँ गुर्जर एवं मुस्लिम गुर्जर दोनों) की साख पर पिछले 25 वर्षों से राजनीती का हलवा चाटने वाले कैराना के वर्तमान सांसद श्री हुकुम सिंह जी , कांग्रेस से सफ़र शुरू करते हुए वाया लोकदल से भगवा खेमे में आये थे । भगवा खेमेकी परम्परा के अनुसार उम्रदराज नेताओं और मुखर प्रवृति के लोगों का स्थान केवल मार्ग दर्शक मंडल बन कर दर्शक दीर्घा को शोभायमान करने के अतिरिक्त कोई और स्थान पार्टी में है ही नहीं ? सात बार के विधायक और एक बार के सांसद होते हुए भी पार्टी ने उनको वो सम्मान नहीं दिया है जिसके वे हक़दार थे । शायद इसी लिए सांसद महोदय का भगवा खेमे से मोह भंग होने वाला है क्योंकि उनसे कनिष्ठ डा. बालियां का कद छोटा होते हुए भी उन्हें मंत्री पद दिया गया ?

अब अगर मांझी की अपनी ही नैय्या डूब रही हो तो मांझी क्या करेगा, नाव में से सवारी को पहले फेकेगा फिर सामान फेकेगा कोशिस करेगा की नाव किसी किनारे लग जाय । इसी कोशिस में बेचारे हुकुम जी उत्तर प्रदेश की हुकूमत को कठघरे में खड़ा करने के चक्कर में खुद ही चक्र व्यूह में फंस गए हैं और उलजलूल टिप्पणी भी कर देते है , साम्प्रदायिकता का कार्ड खेल चुके हुकुम अब अनपना हुकुम का इक्का पिटवा चुके है । जब कहते है की”मैं किसी संप्रदाय का नाम नहीं लूंगा , लेकिन, गुंडा गर्दी करने वाले लोगों के नाम से ही स्पष्ठ हो जाता है और उनके आतंक के बाद कैराना छोड़ने वाले हिन्दू है” अब जब राजनितिक भूचाल चरम पर है , हुकुम जी मैदान छोड़ चुके है कमान उनकी पार्टी के छुटभैय्ये नेताओं के हुड़दंगी हाथो में आ गई है ? क्योंकि अपनी रणनीति के हिसाब से बीजेपी को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का फार्मूला उत्तर प्रदेश में अनुकूल नजर आता है । इसी लिए 2017 के चुनाव तक यह मुद्दा रह रह कर गरमाता रहेगा इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए ?

एस. पी. सिंह, मेरठ ।

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