राजनीति की शतरंज पर नेता पुत्रों की बिछती बिसात

परिवारवाद के चलते कार्यकर्ताओं में कहीं खुशी कहीं गम
उठते अंदरूनी विरोध के स्वरों में समय का इंतजार
क्या दिल्ली का प्रयोग प्रदेश में भी करेगी भाजपा?

डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव
भोपाल/यह बात अलग है कि अभी लोकसभा,विधानसभा,नगरीय निकाय हों या फिर अन्य चुनाव होने में काफी समय बाकी है परन्तु नेता पुत्रों ने ताल ठोकना प्रारंभ कर दिया है। बात किसी एक दल की नहीं अपितु देखा जाये तो सभी दलों में एैसा देखा जा सकता है परन्तु परिवारवाद का आरोप लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी को भी अनेक मामलों में कांग्रेस के नक्शेकदम पर देखा जा सकता है। जिसको लेकर जिन नेता पुत्रों को मैदान में उतारा जा रहा है उनके अपने तर्क हैं, परन्तु मामला तो पार्टी के सिद्धांतों का है? प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह की बात करें या फिर पूर्व मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह की या फिर प्रदेश के कद्ावर मंत्री जयंत कुमार मलैया,गोपाल भार्गव की इन सभी के पुत्रों के साथ ही प्रदेश के अनेक मंत्री,सांसदों,विधायकों के पुत्र आगामी चुनाव में उतरने या उतारने की तैयारी मंे बतलाये जाते हैं। वैसे देखा जाये तो अनेक क्षेत्रों में तो गत विधान सभा चुनाव के बाद ही कुछ नेता पुत्रों की अचानक सक्रियता बढ गयी थी। अनेक जगहों पर तो सीधे हस्तक्षेप के साथ ही मंत्री,विधायक से कम नहीं स्वयं को आंक रहे हैं नेता पुत्र वहीं उनके उत्साह वर्धन में व्यक्ति परिक्रमा एवं चरण वंदना में लगे रहने वालों की भी जमकर चर्चा बनी हुई है?
युवराजों की फौज,कार्यकर्ता पशोपेश में-
प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चैहान के पुत्र का भी पदापर्ण राजनीति के क्षेत्र में हो चुका है। इसी क्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के पुत्र कार्तिकेय सिंह,वित्त मंत्री जयंत कुमार मलैया के पुत्र सिद्धार्थ मलैया,मंत्री गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक भार्गव दीपू,मंत्री माया सिंह के पुत्र पीतांबर सिंह, नरोत्तम मिश्रा पुत्र डॉ. सुकर्ण मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय पुत्र आकाश विजयवर्गीय, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पुत्र देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर उर्फ रामू, राज्यसभा सांसद प्रभात झा पुत्र तुष्मुल झा,जैसे प्रमुख नेता मंत्री पुत्रों के नाम बतलाये जाते हैं।

डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव
डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव
इसी क्रम में माया सिंह पुत्र पीतांबर सिंह गौरीशंकर शेजवार पुत्र मुदित शेजवार, गौरीशंकर बिसेन की पुत्री मौसम बिसेन हिरनखेड़े, पारस जैन पुत्र संदेश जैन, कुसुम मेहदलेे भतीजे पार्थ मेहदले, रामपाल सिंह पुत्र दुर्गेश राजपूत, सूर्यप्रकाश मीणा पुत्र देवेश राजनीतिक मैदान में उतरने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। बतलादें कि प्रदेश भर में आयोजित होने वाले अनेक राजनैतिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों में नेता पुत्रों के भाग लेने के साथ क्षेत्रों में दौरे करने कराने तथा उनको स्थापित करने के लिये मंत्री,नेताओं के करीबी एवं परिक्रमा वाले लोग लगे देखे जा सकते हैं। यह बात अलग है कि संगठन के लिये लगातार समय देने वाले अपना जीवन आहुत करने वाले कार्यकर्ता को आत्म चिंतन करने पर मजबूर कर दिया है जिसकी संख्या अधिक बतलायी जाती है? कहने का मतलब साफ है कि आसानी से अनेक स्थानों पर नेता पुत्रों को स्वीकार करने में समस्या आ रही है। इसके पीछे का एक बडा कारण नेता पुत्रों का सहजता की जगह अपने को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध कर आगे बढना एवं कर्मठ कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करना भी बतलाया जाता है। परिणाम वर्तमान में होने वाले सरकार एवं संगठनों के कार्यक्रमों की विफलता एवं उपस्थिति से आसानी लगाया जा सकता है?
परिवारवाद के चलते कहीं खुशी कहीं गम-
नेता पुत्रों के अचानक मैदान में आने और उनको स्थापित करने के लिये नेताओं और उनके कुछ समर्थकों के चलते कहीं खुशी कहीं गम का माहौल देखा जा सकता है? दरसल नेता पुत्रों की सिर्फ इसी बात से पहचान होना कि वह फलां नेता का पुत्र है और बने बनाये प्लेटफार्म पर आकर बैठ रहा है भी एक महत्वपूर्ण कारण कहा जा सकता है। जबकि फर्श बिछाकर विषम परिस्थिति में भी दशकों से कार्य करने वाले अनेक कार्यकर्ताओं के मन में कहीं न कहीं आत्मगिलानी या उपेक्षा का कारण बन रहा है? जिसके चलते प्रदेश में एैसे अनेक स्थानों पर परिक्रमा नहीं करने वालों के विरूद्ध पार्टी के ही चर्चितों द्वारा परेशान करने के मामले प्रकाश में आते ही रहते है? सागर संभाग की दो विधानसभा क्षेत्र की स्थितियां किसी से छिपी नहीं है जहां स्वयं क्षेत्रीय सांसद प्रहलाद सिंह पटेल कार्यकर्ता रूपी अपने साक्षात भगवान के लिये संघर्ष करते देखे जा सकते हैं। पार्टी के ही सूत्रों की माने तो प्रहलाद पटेल के हस्तक्षेप से कर्मठ कार्यकर्ताओं को काफी हद तक शक्ति मिली है और वह अपने आपको सुरक्षित महसूस करने लगे हैं? नही ंतो सोशल मीडिया के साथ ही पोस्टरवाय के रूप में चर्चितों का मामला कौन नहीं जानता जो आये दिन चर्चाओं में बना ही रहता है?
प्रदेश की राजनीति में
परिवारवाद को लेकर हमेशा आक्रामक रहने वाली भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट्र संदेश दिल्ली के नगरीय निकाय के चुनाव में देने का प्रयास किया हालांकि इसका लाभ भी उसको मिला। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में हालांकि कुछ अलग रहा लेकिन वहां पार्टी का लक्ष्य दशकों के वनवास को राजसिंहासन प्राप्त करना था। बात करें मध्यप्रदेश की तो नेताओं के युवराजों की बिछात राजनैतिक शतरंज में बिछने लगी है। सत्ता प्राप्त करने और संगठन में दबदबा बनाने के लिये पद प्राप्त करने ऐडीचोटी का जोर लगते देखा जा सकता है। राज्य के एक दर्जन से अधिक मंत्रियों के साथ अनेक नेताओं के पुत्रों को स्थापित करने के लिये उनके समर्थक लगे हुये हैं। यह बात अलग है कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेताओं को अपने परिजनों पुत्रों को टिकिट के लिये जबरन दबाब बनाने पर आपत्ति दर्ज कराते हुये एैसा न करने हेतु कहा था। प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश के सागर में 2017 की 10 एवं 11 जनवरी को सम्पन्न हुई प्रदेश कार्य समीति की बैठक में वंशवाद एवं परिवारवाद से भारतीय जनता पार्टी को मुक्त करने के लिये संकल्प प्रस्ताव भी पारित किया जा चुका है। यह बात अलग है कि कुछ नेताओं ने दबी जुबान से उक्त मामले को लेकर विरोध दर्ज कराया था। अब कितना कार्य उक्त प्रस्ताव को लेकर होगा यह तो समय की गर्त में है परन्तु इस बात से साफ हो जाता है कि अनेक नेताओं को इसकी परवाह नहीं है और वह पुत्र मोह में संगठन से उपर मानकर स्वयं को चल रहे हैं।
सोशल मीडिया,पोस्टर वाय बन सक्रियता दिखाते –
नेता पुत्रों की उपस्थिति इस समय जनता के मध्य जितनी दर्ज करायी जा रही उससे कहीं अधिक संख्या सोशल मीडिया पर बनी हुई देखी जा सकती है। वकायदा उनके समर्थक एवं परिक्रमा में लगे लोग सोशल मीडिया में उपस्थिति दर्ज कराने में लगे हुये हैं। अनेक जगहांे पर तो पार्टी का नाम और प्रोफाईल फोटो इन्हीं की देखी जा सकती है जिसमें बढ चढकर जमीनी हकीकत से दूर किन्तु अपने आप में सबसे बडे सक्रिय होने के दावे किये जाते हैं। ज्ञात हो कि मंत्री, नेताओं के पुत्र-पुत्रियों सहित उनके परिजन राजनीति में अपना स्थान बनाने में लगे हुए हैं। वहीं पोस्टर वाय के रूप में भी अधिकांश अपने नाम की चर्चा लोगों में बनाये हुये हैं जिनकी चर्चा भी जमकर बनी हुई है। ज्ञात हो कि सोशल मीडिया की तरह नगरों के प्रमुख चैराहों,तिराहों के साथ अनेक सार्वजनिक स्थानों पर बडे-बडे होर्डिंग इनके चित्रों से सुसज्जित देखे जा सकते हैं। विदित हो कि अचानक नेता,मंत्री पुत्रों की सक्रियता सोशल मीडिया पर बढने के साथ ही सार्वजनिक समारोहों में बढने लगी है। अधिकांश जगहों पर तो इनके समर्थक या इनकी छबि चमकाने में लगे परिक्रमाधारी किसी भी शासकीय,अर्धशासकीय,सामाजिक कार्यक्रमों का पता लगाकर उनमें अतिथि बनाने के लिये सक्रियता दिखलाते देखे जा सकते हैं। अधिकांश जगहों पर तो शासकीय कार्यक्रमों में प्रतिबंध के बाबजूद भी इनके फोटो बेनर में लगे देखे जा सकते हैं?
वंशवाद,सक्रिय कार्यकर्ताओं के हक पर डांका –
वंशवाद,परिवारवाद की भेंट चढते देश के अनेक राजनैतिक दलों के परिणामों से कौन परिचित नहीं है। कांग्रेस पार्टी के प्रमुख पद पर नेहरू,इंदिरा,राजीव,सोनिया और अब राहुल,प्रियंका का विरासत को संभालना वंशवाद का प्रमुख उदाहरण राजनैतिक हलकों में माना जाता है। वहीं इसी को आगे बढाते हुये कांग्रेस सहित अनेक पार्टियों के नेता पुत्रों के दखल और सियासत में सक्रियता के साथ आगे बढने बढाने के बडी संख्या में आये दिन समाचार प्राप्त होते ही रहते हैं। वहीं कांग्रेस सहित अन्य दलों पर वंशवाद का आरोप लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेता पुत्रों की राजनैतिक शतरंज पर बिछती बिसात से उसके वंशवाद के विरोध मामले को लेकर प्रश्न चिन्ह अंकित होने लगे हैं? अगर यह कहा जाये कि कांग्रेस के नक्शेकदम पर भाजपा ने अपने कदम बढाते हुये मजबूत करना प्रारंभ कर दिया है तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी? बात करें मंत्री जयंत कुमार मलैया के पुत्र सिद्धार्थ उर्फ छोना मलैया की या फिर मंत्री गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक उर्फ दीपू भार्गव की या फिर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह,गौरीशंकर बिसेन/मौसम बिसेन, मंदार और मिलिंद महाजन सुमित्रा महाजन, कार्तिकेय शिवराज सिंह चैहान, आकाश कैलाश विजयवर्गीय सहित यशोवर्द्धन चैबे विधायक अरुणोदय चैबे देवेंद्र सिंह/नरेंद्र सिंह तोमर,अक्षय राजे भंसालीयशोधराराजेसिंधिया,राजेंद्रकृष्णरामष्णकुसमारिया,मुदित/
गौरीशंकरशैजवार,सोनू/कैलाशचावला,राजकुमार/सत्यनारायणजटिया,जितेंद्र/थावरचंद गहलोत,संदीप/ कमल पटेल,पीतांबर सिंह माया सिंह,डॉ. सुकर्ण मिश्रा डॉ. नरोत्तम मिश्रा,मौसम बिसेन गौरीशंकर बिसेन, दुर्गेश राजपूत रामपाल सिंह,देवेश सूर्यप्रकाश मीणा के नाम प्रमुख बतलाये जाते हैं जिनके नामों की चर्चा बनी हुई सुनी जा सकती है? वैसे देखा जाये तो परिवारवाद,वंशवाद के दलदल में शायद ही एैसी कोई राजनैतिक पार्टी हो जो धंसती न जा रही हो?रोग के फैलने से राजनैतिक दलों के संगठनों में अपना जीवन का सर्वस्य निछावर कर देने वाले कर्मठ कार्यकताआंे में उपेक्षा का भाव जागृत होने लगा है? प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश में परिवारवाद के बढते प्रभाव में जिन नेताओं के परिजनों के नाम सामने आ रहे हैं उनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया स्व. माधवराव सिंधिया,अजय सिंह राहुल स्व. अर्जुन सिंह,अरुण यादव स्व. सुभाष यादव,डा. निशिथ पटेल श्रवण पटेल,संजय पाठक सत्येंद्र पाठक,दीपक जोशी कैलाश जोशी,विश्वास सारंग कैलाश सारंग,सुंदरलाल तिवारी श्रीनिवास तिवारी/धु्रवनारायण सिंह गोविंद नारायण सिंह,हर्ष सिंह गोविंद नारायण सिंह,शैलेंद्र शर्मा लक्ष्मीनारायण शमार्,राजेंद्र वर्मा पे्रम चंद वर्मा,सावन प्रकाश सोनकर, राघवजी पुत्री ज्योति शाह,रमेश भटेरे दिलीप भटेरे,ओमप्रकाश सखलेचा वीरेंद्र कुमार सखलेचा,राजवर्धन सिंह दत्तीगांव स्व.प्रेम सिंह,सत्यनारायण पटेल रामेश्वर पटेल,सत्यपाल सिंह सिकरवार (नीटू) पूर्व विधायक गजराज सिंह सिकरवार,हिना कावरे पूर्व मंत्री स्व लिखीराम कांवरे,कमलेश पटेल पूर्व मंत्री इंद्रजीत पटेल जैसे नेताओं के पुत्रों के नाम सामने आ रहे हैं? उक्त मामले को लेकर कर्मठ एवं पार्टी के लिये पूरा जीवन समर्पित करने वाले कार्यकर्ताओं के हक पर डाका डलते जाने की जमकर चर्चा इस समय राजनैतिक हलकों में देखी जा सकती है?अनेक मामलों में तो कार्यकर्ताओं की उपेक्षा एवं नेता पुत्रों की सार्वजनिक एवं आये दिन कहीं न कहीं न करने के मामले चर्चाओं में सुने जा सकते हैं? संगठन के शीर्ष पर बैठे नेताओं ने अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में एक बडा संकट खडा हो सकता है एैसा राजनीति के क्षेत्र के जानकार बतलाते हैं।

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