गाय को राश्ट्र माता घोशित करना क्यों है आवष्यक और कैसे होगा संभव

cowभारतीय नस्ल के गोवंष संरक्षण, सम्पोशण, संवर्धन एवं गोउत्पादों के विनियोगार्थ केन्द्रीय तथा सभी राज्यांे में स्वतन्त्र ‘‘ गोपालन मन्त्रालय ’’ के गठन से ही गोरक्षा एवं गोसेवा के वास्तविक लक्ष्यों की प्राप्ति संभव।
भारतवर्ष में धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक और व्यवहारिक दृष्टि से पूज्या गोमाता तथा उसके अखिल गोवंश को उनके उारा समष्टि प्रकट्ठति के पोषण एवं समग्र मानवकल्याणार्थ पंचगव्य की अदभुत-अनुपम महता, उपादेयता और आवश्यकता के कारण सर्वोच्य स्थान प्राप्त था। गोवंश भारतीय जीवन शैली का प्राण है। सात्विक आहार, सद्चिन्तन, सद्भाव एवं सत्संग का स्त्रोत गोवंश ही है। मानव जाति एवं सम्पूर्ण जीव-जन्तु चराचर जगत के हित गोवंश के हित में समाहित है। मानव जाति को सम्पूर्ण आरोग्य, पवित्र व मांगलिक समृद्धि तथा समाधानपरक समझ गोवंश द्वारा ही प्राप्त होती है। स्पश्ट है कि भारतवर्ष के लिए गोवंश अत्यन्त महत्वपूर्ण अमूल्य एवं अक्षय निधी है।
सभी वैदिक ग्रन्थों मेें उल्लेखित है कि ‘‘ गावो विश्वस्य मातरः ’’ अर्थात गाय विश्व की माता है और ‘‘गोस्तु माता न विधते’’ अर्थात गाय के समान इस भूमण्डल में दूसरा कोई नहीं है। भारतीय गोवंश की रक्षा तथा गोसेवा विशुद्ध धार्मिक, आध्यात्मिक एवं मानवीय प्रश्न है। गाय की उपस्थिति एवं उनका पंचगव्य मानव के भाव, मन और षरीर की पूर्ण स्वस्थता तथा समश्टि प्रकृति के पंचभूतों अग्नि, वायु, जल, पट्ठथ्वी और आकाष की सात्विक पुश्टि व सन्तुलन के लिए अमोघ है।
बहुतायात भारतीय समाज के भावपूर्ण संकल्प को पूरा करते हुए भारतीय शासन नीति में गोरक्षा-गोसेवा की महता स्थापना के रूप में अविलम्ब देष में पूर्ण ‘‘ गोहत्या प्रतिबन्ध ’’ लगाकर गोमाता को ‘‘ राश्ट्र माता ’’ घोषित करना अति आवश्यक है। तभी देश के आस्तिक, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं परमार्थ पथ के पथिक राष्ट्रभक्त तत्वों का सम्पूर्ण गोसंरक्षण, प्रत्यक्ष गोपालन, प्रभावी व प्रमाणिक गोसंवर्धन, समग्र व वृहद पंचगव्य परिष्करण व विनियोग की दिशा में संकल्प पूरा होगा तथा मानव मात्र के जीवन में पंचगव्य उपयोग की सहज सुलभता सम्भव हो सकेगी।
यह मांग धार्मिक न होकर पूर्णतयाः व्यवहारिक है और वैज्ञानिक दृश्टि से भी तर्कसंगत , तथ्यात्मक एवं प्रमाणिक है।गाय को मात्र हिन्दूओं से जोडकर देखने के कारण ही पिछले 66 वर्षों में कोई भी राजनैतिक दल ‘‘गोहत्या प्रतिबन्ध’’ की दिशा में पूरजोर प्रयास नहीं कर पाया है। जबकि सत्य में देश का कोई वर्ग, धर्म, सम्प्रदाय या पंथ गाय के विरुद्ध नहीं है। प्रत्येक भारतीय नागरिक तथा सभी राजनैतिक दलों के नेताओं के हृदय में सजग व सक्षम शासकीय गुणों से युक्त गोसेवाभाव व गोभक्ति स्वाभाविक रुप से विद्यमान है।
भारत में कुछ अपवादों व विसंगतियों को छोड दें तो मुगलकाल तक गाय को ‘‘मां’’ का दर्जा सुरक्षित रहा।अंग्रेजों ने षासकीय नीति युक्त गोहत्या प्रारम्भ की।सर्वविदित है कि अंग्रेजों को भगाने के आन्दोलन की मुख्य शक्ति एवं सींलता भी जनमानस की ‘‘गोहत्या’’ रोकने की प्रतिबीता ही रही थी तथा महात्मा गांधी के लिए आजादी का प्रथम अर्थ ही पूर्ण ‘‘गोहत्या प्रतिबन्ध’’था। आजादी पश्चात 1966 में कृपात्रजी महाराज के आन्दोलन के बाद गाय को ‘‘राष्ट्र माता’’ घोषित करवाने सहित समग्र गोकेन्द्रित समाज ,षासकीय नीति एवं गोआधरित व्यवस्थाओं की स्थापना हेतु सन 1993 से विष्व विख्यात गोसंरक्षण केन्द्र श्रीपथमेड़ा गोधाम महातीर्थ के संस्थापक एवं प्रधान संरक्षक गोऋषि स्वामी श्री दत्तशरणानन्दजी महाराज उारा विभिन्न प्रयास पूरी शक्ति से प्रारम्भ हुए। ींलतः आज देश मे गाय के विषय पर सुपरिणामकारी अनुकुलताएं बढने लगी है। स्वयं लेखक को भी अनवरत गोऋषि स्वामीजी के पावन सानिध्य में सतत, समग्र एवं सम्पूर्ण प्रयासरत रहते इसी महान कार्य में जीवन लगाने का सौभाग्य प्राप्त है।
यहां ज्वलन्त प्रश्न है कि समाज उारा जिस शासन व्यवस्था से गाय को ‘‘राष्ट्र माता’’ का दर्जा दिलवाने का प्रयास हो रहा है, उसी शासन की नीतियों के अर्न्तगत देश में प्रतिदिन लाखों गायें कत्लखानों में काटी जा रही है। अतः स्पष्ट है कि तब तक गोमाता को वैदिक काल का सम्मान दिलवा पाना असंभव है, जब तक कि गोकेन्द्रित-गोआधारित नीति-रीति युक्त व्यवस्थाओं के निर्माण तथा उस पर चलने के लिए शासक वर्ग को मजबुर न कर दिया जावे।
गोवंश के मानव जाति पर उपकारों एवं सम्पूर्ण आरोग्य हेतु उनके द्वारा पंच महाभौतिक पर्यावरण शुद्धता के महान संदर्भों को ध्यान में रखकर उपरोक्त महान सुउददेश्यों की प्राप्ति हेतु बिन्दुवार तथ्यात्मक,न्यायोचित ,तर्कसंगत, अनुभव के साथ व्यवहारपरक किए जा सकने वाली कार्य योजनाओं को शासन उारा निम्नानुसार लागू किया जाना अत्यावश्यक है।
1. केन्द्र तथा सभी राज्यों के शासन-प्रसाशन द्वारा प्रत्येक ग्राम, ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा नगरपालिका क्षैत्र के स्थानीय निराश्रित, उपेक्षित, असहाय गोवंश को पूर्व में संचालित क्षेत्रीय गोशालाओं में तथा नव गोसेवा सदनों की स्थापना करके प्रवेश दिलाया जाए। उनके भरण-पोषण हेतु निरन्तर अनुदान प्रदान किया जाए। प्रत्येक गोसेवा सदन के आसपास उपलब्ध गोचर भूमि को संरक्षण एवं विकास तथा गोचारण हेतु आरक्षित कर उपलब्ध करवायी जाए।
2. देश के समस्त गोचर,ओरण, पहाड़, नदी-नाले, वन क्षैत्र आदि भूमियों पर राष्ट्रीय नीति बनाकर सीमांकन करके समस्त जिलों में दस हजार एकड़ के आस-पास की सबसे बड़ी उपलब्ध भूमि पर ‘‘गोवंष अभ्यारण्य’’ स्थापित किये जावें।गोवंश अभ्यारण्य की स्थापना तथा संचालन का आधारभूत न पड़े। वर्तमान में समस्त नस्लवहीन नर गोवंष को सेवा-सुश्रुशा के साथ सम्पूर्ण संरक्षण प्रदान करते हुए षास्त्रीय रीतियुक्त सात्विक नर नस्लीय गो संवर्धनात्मक प्रयासों के माध्यम से नस्लहीन नर गोवंष पैदाईष एवं बढोतरी पर विराम लगाने के गंभीर प्रयास किए जाये।
7. यूरिया व पैस्टीसाईड द्वारा खेती करने वाले विषवर्धक किसानों को गोपालक किसान बनाया जाये अर्थात प्रति एक एकड़ कृषि भूमि पर एक गोवंश पालन करने, बैलों से कृषि करने तथा गोबर व गोमुत्र की खाद से कृषि उपज करने वाले गोपालक किसानों को प्रोत्साहित किया जावे। गोसेवा सदनों के कृषि योग्य बैलों को अल्प शुल्क अथवा निःशुल्क स्थानीय गोपालक किसानों को खेती व परिवहन हेतु निश्चित अवधि के लिए देने व पुनः प्रवेश दिलाने के प्रावधान किए जाए।
8. गोसेवा सदनों में निर्मित खाद, कीटनियंत्रक, बिजली तथा गैस आदि उत्पादों को उचित मूल्य पर किसानों को दिया जाए तथा उनके गोकृषि उत्पादों को अनुदानित मूल्य पर क्रय करने का प्रबन्ध हो। गोदुग्ध उत्पाद तथा गोकृषि उत्पादों को सभी प्रकार के करों से मुक्त रखते हुए सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर क्रय प्रबन्ध हेतु बाजार विकसित किया जावे।
9. भारतीय नस्ल की गायों के गव्यों से निर्मित पंचगव्य ओषधियों की खरिदी शासन द्वारा की जाए, साथ ही गोदुग्ध के पाउडर व मक्खन को प्राथमिक शालाओं में अध्यनरत बालक-बालिकाओं के सम्पूर्ण पोषणार्थ उनको मध्याहन भोजन में प्रदान किया जाए।
10. भारतीय गोवंश के संवर्धन एवं पंचगव्य अनुसंधान हेतु ‘‘गो विश्वविद्यालय’’ की स्थापना की जाए। जिसमें विद्यार्थियों को वैदिक कामधेनु विज्ञान के अनुसार विभिन्न तकनिकी व भाषायी रोजगारोन्मुखी पाठयक्रमों के अर्न्तगत शिक्षा देने का प्रबन्ध हो।
11. उपरोक्त गोसेवा के समस्त कार्यों की क्रियान्विति हेतु गोमाता को सर्वप्रथम ‘‘राष्ट्र माता’’ घोषित करते हुए केन्द्र तथा देश के सभी राज्यों में स्वतन्त्र ‘‘ गोपालन मन्त्रालय ’’ का गठन करना अत्यावश्यक माना जावे।
यह लेख मूलतः परम श्रद्धेय गोऋषि स्वामी श्री दतशरणानन्दजी महाराज के दिव्य प्रवचनों एवं चिन्तन का ही सार है। लेखक का दृढविश्वास है कि साक्षात प्रकृति स्वरूपा गाय के वैज्ञानिक व व्यवहारिक महत्व, उपादेयता एवं आवश्यकता को मानव जाति के लिए अधिक समय तक अनदेखी करना असंभव है। निश्चित ही देश में एक न एक दिन सजग, सुयोग्य, सुसंस्कारी, राष्ट्र सेवापरायण,पवित्र हृदय युक्त जागृत बुद्धि युक्त शासन व्यवस्था उभरेगी। जिससे करोड़ों गोप्रेमी, गोभक्त, गोउपासक, गोरक्षक, गोसेवक एवं गोपालक किसानों सहित सम्पूर्ण जनमानस की भावनानुसार गोमाता को ‘‘ राष्ट्र माता ’’घोषित करते हुए गोवंश के संरक्षण, सम्पोषण, संवर्धन एवं गोउत्पादों के विधिपूर्वक विनियोग हेतु शिघ्रातिशिघ्र उपरोक्त बिन्दुओं पर विशेषज्ञों के साथ गहन चिंतन-मनन करके केन्द्र एवं सभी राज्यों में स्वतन्त्र ‘‘ गोपालन मंत्रालय ’’ की स्थापना का मार्ग प्रशस्त अवश्य होगा।
( लेखक परम गोभक्त, गोसेवक एवं देष के अग्रणी गो-विशयक प्रवक्ता, प्रबुद्ध पत्रकार व साहित्यकार है। श्रीपथमेड़ा गोधाम महातीर्थ के राश्ट्रीय प्रवक्ता तथा राजस्थान व गुजरात सहित पूरे देष में षासन को आन्दोलनात्मक जगाने वाली गोसेवा समिति के संरक्षक व मार्गदर्षक स्तम्भ है। गोसेवा-गोरक्षा के विशय पर देष की सबसे बड़ी पत्रिका मासिक ‘‘कामधेनु कल्याण’’ के एवं पाक्षिक ‘‘कामधेनु गोअधिकार पत्रिका’’ संपादक तथा भारतीय जनसंघ के पूर्व राश्ट्रीय महामंत्री, प्रख्यात राश्ट्रवादी विचारक-चिन्तक, समाजसेवक एवं समसामयिक समीक्षक एवं समालोचक है।)
-पूनम राजपुरोहित ‘‘मानवताधर्मी’’
(प्रख्यात गोविषयक विचारक-चिन्तक)

error: Content is protected !!