राजस्थान में दलित छात्र संगठनों की आहट

aambedkarसमय के बदलाव के साथ भारत के सामाजिक परिवेश में भी बदलाव आया है| भारत मे संविधान के लागू होने के बाद दलित, पिछड़ों व वंचितों को शिक्षा,बिजली व पानी को प्राप्त करने का कानूनी हक मिला,जिसकी बदोलत आज दलित वर्ग शिक्षा के प्रति जागृत हुआ है|
मगर जन्म के साथ जुड़ी जाति व्यवस्था की जड़े उच्च शिक्षण संस्थाओ मे भी आसानी से देखी जा सकती है| कई प्रकरणों में सामने आया है कि दलित वर्ग के युवा विधार्थी जाति व्यवस्था के आधार पर प्रताड़ित होते है|
कई दलित छात्र मानते है कि भाजपा के सम्बंधित संगठन एबीवीपी व कांग्रेस के एनएसयूआई में उन्हें सीटे बढाने,पास को प्रवेश या महाविधालय की समस्या जैसी मांगो का समर्थन तो मिलता है मगर सामाजिक व जाति व्यवस्था तथा आरक्षण जैसे मसलो पर वो खामोश नजर आते है|

दलितो के मसीहा डॉ. अंबेडकर के गृहराज्य महाराष्ट्र और कभी मायावती का शासन क्षेत्र उत्तर प्रदेश मे भी दलित युवा छात्र अपने हक के लिए अम्बेडकर के नाम पर कई छात्र संगठन बनाकर अपनी आवाज बुलन्द करते हुए नजर आते थे,मगर पिछले दो वर्षो मे राजस्थान मे भी कई दलित छात्र संगठन सामने आये है, जिनमें भारत विधार्थी मोर्चा (बीवीएम), डॉ. अंबेडकर स्टुडेंट फ्रंट अॉफ इण्डिया (डीएएसएफआई) और एससी एसटी स्टुडेंट युनियन प्रमुख नाम है|

भारत विधार्थी मोर्चा बीएमपी नामक राजनैतिक पार्टी से अनुदान प्राप्त है मगर दलित छात्रों के हित में संघर्षरत है,लेकिन इसका अधिकांश प्रचार प्रसार केवल बाडमेर मे ही नजर आता है| वही डॉ राम मीणा व्दारा संचालित एससी एसटी स्टुडेंट युनियन का कार्य क्षेत्र उदयपुर में है| बीवीएम से जुड़े एक कार्यकर्ता ने बातचीत में बताया कि” हम एससी के साथ एसटी,ओबीसी व अल्पसंख्यक को साथ जोड़ते है|”

वही डॉ अंबेडकर स्टुडेंट फ्रंट ऑफ इण्डिया(डीएएसएफआई) ने आज राज्य में एक अलग पहचान बनाई है| डीएएसएफआई जयपुर, सीकर, नागौर,सिरोही व चुरू सहित कई जिलो मे कार्य कर रहा है| पिछले छात्र संघ चुनाव मे भी संगठन ने कई जिलों की मुख्य महाविधालय मे भाग लिया था| संगठन ने अपने पांच छात्र संघ अध्यक्ष निर्वाचित किये जिनमे एक समर्थित उम्मीदवार था| डीएएसएफआई से जुड़े नोरतराम लोरोली ने बताया कि “संगठन दलित छात्रों के हित की आवाज तो उठाता ही है साथ ही दलित उत्पीड़न के मामलों मे भी सक्रियता दिखाता है,हमारा मकसद छात्र संघ चुनाव जीतना नही है बल्कि समाज के युवा वर्ग के स्वाभिमान की लड़ाई जीतना है|”

छात्र राजनीति के जानकार बताते है कि दलित छात्रों के हक की लड़ाई लड़ने का दावा तो अन्य सभी छात्र संगठन करते है,मगर वास्तविकता कुछ और है| आज भी कई जिलों के महाविधालय व विश्वविधालयों मे आज तक दलित छात्र अध्यक्ष नही बन पाये है|

पिछले दो वर्षों मे दलित छात्र संगठनों की आहट का ही नतीजा हो सकता है कि छात्र संघ चुनाव 2015 मे राज्य की प्रमुख दो विश्वविधालयों मे एबीवीपी व एसएफआई ने अध्यक्ष पद पर दलित छात्रों को टिकट दी थी हांलाकि वे जीत नही पाये थे|

वक्त किस तरफ करवट लेता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा मगर छात्रों को महाविधालयों में एक विकल्प जरूर दलित छात्र संगठनों के रूप में जरूर मिलेगा|

(लेखक एक स्वंतत्र पत्रकार है.)

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