रिश्वतखोरी का दंश

सिद्धार्थ जैन
सिद्धार्थ जैन
हाल ही दिल्ली की एक खबर से दिल दहल उठा। एक *आई ए एस* की पत्नी व जवान बेटी ने गले में फांसी का फंदा डाल कर अपनी जीवन लीला होम कर ली…! कारण ? रिश्वतखौर पति और…पिता!!! उसके घर में अब एक जवान बेटा बचा हे। वह भी बेरोजगार। प्रिन्ट मीडिया में इस खबर को अन्दर के पेजों में मामूली सी जगह मिली। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में भी बस यह मामूली सी सूचनात्मक खबर बनकर रह गई। फिर भी यह खबर कइयों के बीच अच्छी खासी चर्चा का विषय बन गई।

नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद भ्रष्टाचारियो पर लगाम कसने के अभियान को अच्छी खासी धार मिली हे। देश के कई प्रदेशों में यह धड़- पकड़ तेज की जा रही हे। विरोध करने वाले चाहे कुछ भी कहे। यह कड़वा सच हे कि इससे पहले ट्रेप होने वाले बिचारी छोटी छोटी मछलियाँ ही होती रही हे। *मगरमच्छो पर हाथ कोई नही डालते।* *जबकि सत्य यह हे कि पानी का ढ़लान ऊपर से नीचे की ओर ही होता हे।*

सरकार की नोकरी में सर्वाधिक शक्तिशाली *सिविल सर्विसेज* को ही माना जाता हे। उसमे भी *आई ए एस*! यह सच भी हे। यह आम धारणा हे कि सरकार कोई भी हो वह इसी तबके की अंगुलियों पर नृत्य करती हे। *ज्यो-ज्यो नेताओं का स्तर गिरता जा रहा हे त्यों-त्यों इस लाबी का रुतबा तेजी से बढ़ रहा हे।* *ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ व दक्ष सिविल सर्विसेज अधिकारियों की बदौलत ही देश की तरक्की का माहोल तेजी के साथ बनता हे।* अपवाद सब जगह होते ही हे।

आई ए एस बन जाने पर उसे जिन्दगी पर्यन्त पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नही होती। सब सुविधाए एशोआराम और रुतबा उसके कदमो में होता हे। मेरे कई ऐसे परिचित आत्मीय अधिकारी हे जो अपना जीवन जीने की कला में पारंगत हे। कुछ ऐसे हे जो इसे छोड़ अन्यत्र चले गये। *सरकार ही इसे इतना कुछ देती हे कि ईमानदारी से काम करते उसे इधर-उधर मुंह मारने की जरूरत ही नही पड़नी चाहिए।* मेने सिविल सर्विस अधिकारियों के कई परिवारों को नजदीकी से देखा हे। लाइन पर चलने वाले अधिकारियों का परिवार सरसब्ज और शुकून से रह रहा हे। पटरी से उतरे कई अधिकारियों की स्थिति ठीक इसके उलट हे।

*कहावत हे कि जो पकड़ा जाए वो ही चोर हे।* फिर एक ट्रेप हुए रिश्वतखौर अधिकारी के परिजनों पर क्या बीतती हे…? *जिधर से भी निकलो उसे सब की नजरो के तीर का शिकार बनना पड़ता हे। नजरे बोलती हे कि देखो चोर की पत्नी हे। बेटा-बेटी जा रहे हे। और तो और रिश्तेदारो तक को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता हे। एक फिल्म में हीरो के हाथ पर यह गोद दिया गया कि “मेरा बाप चोर हे।”* भले ही वह आरोप झूठा ही क्यों न था। याद हे…! उसका जीवन ही क्या से क्या हो गया ? दिल्ली में उस पत्नी और बेटी की वो दुखद परिणिति इसी का परिणाम हे। *भ्रष्टाचार में लिप्त ऐसे अधिकारियों को समझना चाहिए। जीवन में पैसा ही सब कुछ नही होता।*

सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राजस्थान)
094139 48333

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