रैलियां प्रतिबन्धित और आयोजकों की ज़िम्मेदारियाँ तय हों

राजेन्द्र सिंह हीरा
राजेन्द्र सिंह हीरा
नेताओं और राजनीतिक पार्टियों को अपना दमखम और प्रभाव दिखाना होता है तो वे रैलियों का आयोजन करते हैं।
रैलियां जिसमें हज़ारों , लाखों लोग जमा होते हैं।
लोगबाग दूरदूर से चलकर या बसों से या रेलगाड़ियों से आते हैं या उन्हें लाया जाता है।
इन रैलियों में आने वाले या लाये जाने वाले अधिकांश लोग गरीब , बेरोजगार और अशिक्षित होते हैं। वैसे साक्षर और आर्थिक रूप से सक्षम लोग भी इन रैलियों की शोभा बढ़ाते हैं।
इन रैलियों में देश का भी और पार्टियों का भी लाखों – करोड़ों रुपया खर्च होता है जो कि देश के किसी सकारात्मक कार्य पर खर्च किया जा सकता है। गरीब , बेरोजगार और अशिक्षित लोग प्रलोभनवश इन रैलियों में शामिल होते हैं।
भूखे प्यासे लोग घन्टों तक अपने नेता के इंतज़ार में परेशान होते हैं क्यों ? सिर्फ यह जानने के लिये कि उनके नेता कितने ताकतवर हैं या उनके लिए इन नेताओं ने क्या क्या किया है और आगे क्या क्या करेंगे ? आज टेक्नोलॉजी का ज़माना है तो क्या घर बैठे लोगों तक यह बात नहीं पहुंचाई जा सकती ? पर हाँ ऐसा करने से लाखों लोगों के हुज़ूम को तो दर्शाया नहीं जा सकेगा। चलो रैली तक की बात तो ठीक है पर जब इन रैलियों में बदइंतजामी के चलते लोगों की दबकर , कुचलकर , दम घुटने से , प्यास से , तेज गर्मी के प्रकोप से और कभी कभी बम फटने से मौत हो जाती है तब इन निरीह मौतों की ज़िम्मेदारी किसपर आयत होगी ? इन भोलेभाले नागरिकों की गलती तो इतनी भर थी ना कि वे अपने प्रिय नेता को सुनने आये थे।
समय आ गया है कि एक कानून बने जिसके अन्तर्गत रैलियां प्रतिबन्धित हों और कुछ विशेष कारणों से अगर रैलियां हों तो आयोजकों की ज़िम्मेदारियां तय हों। रैलियों में हुई मौतों का कोई तो जवाबदेह हो ?
राजेंद्र सिंह हीरा
अजमेर।

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