कहाँ है विकास ?

sohanpal singh
sohanpal singh
वो
अबला नारीे , बैठी
एक लाश के पास रो रोकर
.तेरा सत्या नाश,
कमिने, जालिमं ,
बेदर्द हाकिंमं ,

मेरी ,
तेरह साल की बेटी ,
मांग रही थी भात,
मैं दे न सकी उसको
एक मुठ्ठी भर भात
मर गई ताडपकर भूख से वो
नही था मेरे पास तेरी सारकार का आधार ,
उसका
थर थर कांप रहा था गात ,
खो गया है पानी उसकीआँखो का जैसे सूख गया हो कोई ताल
खोज रही थी उसकी सूनी आंखे किसिको
वो
फिर सर उठा कर बोली , बाबू कहाँ है
विकास सुना है पागल हो गया है
मुझे ही दे दो उसे ही पाल लुंगी
अपनी बेटी समझ कर !…………..
एस.पी. सिंह

error: Content is protected !!