होली और ईद मिलन

हेमंत उपाध्याय
हेमंत उपाध्याय
पिताजी बेटे से बोले – चंदा व लकड़ी कंडे ( उपले ) मांगने होली वाले आए थे।उन्हे दो चार सो रूपए के साथ ही टूटे हुए मकान की पाँच दस लकड़ियां दे देना। गाय भैंस देखने को नहीं मिलते कंडे ( उपले) कहाँ से लाए ।बेटा बोला – चार सौ के बदले पाँच सौ रुपए दे दूँगा । लकड़ी देने की प्रथा बंद करो ।पिछले साल ही गगनचुंबी होली के कारण टीव्ही केबल व टेलीफोन के तार जल गए । धूए व ताप से पहले ही पर्यावरण खराब हो रहा है । पुरानी लकड़िया मैने रसीद चाचा ( मजदूर ) को देने के लिए रखी है ,बेचारे का सप्ताह भर का खाना पक जाएगा। गत वर्ष ईद के दिन लकड़ी के आभाव में उसने हमे खोली पर सेंवईया खाने नहीं बुलाया व बिना पकी (सुखी) सिंवईया ही अपने घर भिजवा दी ।

हेमंत उपाध्याय, व्यंग्यकार व लघु कथाकार साहित्य कुटीर पं .रामनारायण उपाध्याय वार्ड खंडवा म प्र 9425086246 / 9424949839/ 7999749125 mailto:[email protected]

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