हमने भी इतिहास को बनते देखा है ! 30 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने नई दिल्ली से दूर ओडिशा की एक चुनावी सभा में कहा की “मेरे शरीर के खून का एक एक कतरा भी देश की खातिर काम आएगा” और फिर अगले ही दिन 31 अक्तूबर 1984 को प्रातः काल ही उनके दो सिख अंग रक्षकों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया । लेकिन उसके बाद जो हुआ वह उससे भी भयावह था बेगुनाह सिखों का कत्ले आम चूँकि इंदिरा गांधी को मारने वाले दो सिख थे जिसका दंड पूरी सिख कौम को भुगतना पड़ा था ? लेकिन अभी जो इतिहास बनेगा उसकी नीव कुछ यूँ पड़ी , जब प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने 26 नवम्बर 2017 को 26/11 मुम्बई हमलो की बरसी के अवसर पर अपने मन की बात कार्यक्रम में कहा की “हम रहे या ना रहें लेकिन जो व्यवस्था हम देश को दे रहे है वह सुरक्षित रहेगा ” शायद देश के प्रति उनके प्रेम का यह सबसे पुख्ता प्रमाण साबित होगा लेकिन ऐसा कहते हुए वह यह याद करना भूल गए की उनके पूर्वर्ती प्रधान मंत्रियों ने भी कुछ न कुछ देश के प्रति योगदान दिया है ? शायद यह मोदी जी की हताश का पहला उढ़बोधन है क्योंकि अपने साढे तीन वर्ष के शासन काल में अपने किये गए कार्यों का देश को वांछित फल नहीं दे सके ? दूसरे उनकी अपनी कार्य शैली के कारण गुजरात के चुनाव का तनाव भी उनकी मनस्थिति को विचलित कर रहा होगा ? लेकिन इतिहास तो इतिहास है जो 2019 के बाद यथार्थ में बदलेगा ?
एस. पी. सिंह , मेरठ ।