मानसूनजी हमें तुम क्यों भूले पडे?

इधर नित्य प्रति ही अखबारों में तरह तरह के विज्ञापन निकल रहे है. कोई ‘मानसून सेल’ लगाकर करोडों का माल लाखों में बेचने का दावा कर रहा है तो कोई अपने माल को ‘मानसून ऑफर’ बताकर प्रचार कर रहा हैं और तो और अब तो सरकार भी इनकी देखा देखी अगले अगस्त से संसद का मानसून सत्र करने जा रही है जबकि मजे की बात है कि मानसून का कही अता पता ही नही हैं. जब मानसून ही नही है तो कैसी ‘सेल’ और कैसा सत्र ?
कोई जमाना था जब षोडषी बालाएं सावन में, बागों उपवनों में, झूलों पर पेग लगाते हुए गाती थी
‘सावन के झूलें पडे,
सैयांजी हमें तुम क्यों भूले पडे ?’
लेकिन अब इस गीत की जगह निम्न लिखित गीत ने हथियाली लगती है
‘सावन के झूलें पडे,
मानसूनजी हमें तुम क्यों भूले पडे ?’
कही ऐसा तो नही कि मंदी के इस दौर में अमेरिका की तरह वह भी ‘ब्लैकमेल’ पर उतर आया हो क्योंकि आजकल वैसे भी ‘ब्लैक’ यानि कालों का बोलबाला हैं. मसलन कालाधन, कालें कारनामें आदि आदि.
इधर मौसम विभागवालें कभी पष्चिमी विक्षोभ को दोषी ठहराते है तो कभी हवाओं को जिम्मेवार बताते है, राम जाने क्या सच है ? परन्तु आम लोगों का कहना है कि यह विभाग जून से सितम्बर चुप्पी साधले या सरकारी खर्च खाते पर विदेष यात्रा अथवा पहाडों की सैर पर निकल जाय तो सब ठीक हो जायेगा.
उधर चार चार आर्थिक विषेषज्ञों की टीम भी ‘सात धोबों का एक पाव करने’ के अलावा और कुछ नही कर पायी है. इधर बाजार में चीजों के भाव बढ रहे है और उधर सरकारी आंकडों के मुताबिक महंगाई की दर में कमी आई है. है ना कमाल की बात ? ऐसा लगता है कि महंगाई कम करने हेतु जो कुछ करना है वह मानसून ही करेगा. इसलिए हमें उसेही बुलाना है, उसे ही उलाहना देना है ‘मानसूनजी हमें तुम क्यों भूले पडे.’
भगवान की मेहरबानी से इस बार भी प्रकृति षुभ संकेत देरही हैं. विभिन्न अंचलों से मिली खबर के अनुसार इस बार कैर के पौधों पर बहुत ही अच्छी फलावरिंग हुई है. आम की पैदावार भी अच्छी है और टिटहरी ने अंडे भी उॅचे स्थानों पर दिए हैं. चिडियां बार बार धूल में नहा रही है जिसके लिए कहा जाता है कि ‘चिडी जो न्हावे धूल में, मेहा आवण हार, जल में नहाये चिडकली, मेंह विदातिण हार. इधर गिरगिट- राजनीति वालें नही, बाग बगीचे वालें- रंग बदल रहे हैं. मक्खियां मनुष्य की देह पर चिपकने लगी हैं तो लगता है कि अच्छी वर्षा होगी. ‘गिरगिट रंग बिरंग हो, मक्खी चटके देह, मकडियां चह चह करेें, जब अतजोर मेंह. उधर पुरवइयां भी अपना रंग दिखा रही हैं ‘पवन गिरी, छूट परवाई, घर गिर छोवा इन्द्र छपाई. इन सब से उत्साहित होकर सबका मानना है कि अच्छी वर्षा होगी अवष्य चाहे देर से हो. आखिर प्रकृति का ‘आकर्षण का नियम’ अपना महत्व रखता हैं.
-शिव शंकर गोयल
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