आखिर इनके खून में ही व्यापार है। इच्छा तो बहुत है की गर्म जोशी से गणतंत्र दिवस की बधाई पोस्ट लिखूँ, लेकिन कैसे?? 65 साल में पहला गणतंत्र, जब लग रहा है की पूरी तरह अमेरिका निर्देशित पूँजीवाद की चाटुकारी में लगा है देश, इसका सबूत यह है की खुद प्रधान मंत्री जी ने अपने हाथ से चाय बनाकर दी क्योंकि इसमें तो कोई शक नहीं है, की उनको चाय अच्छी बनानी आती होगी, और इससे ज्यादा आश्चर्य तो तब हुआ जब ये पूँजी के मकड़ जाल में फंसा मदारी का बन्दर मीडिया सिर्फ ओबामा स्तुति में लगा है, क्या इस मीडिया ने बताया की ये जिस भाजपा सरकार ने सभी भारतीय हितों/नागरिक सुरक्षा को ताक में रख परमाणु संधि को हरी झंडी दी है वो 2008 में कम्युनिस्टों के साथ होने का ड्रामा कर इसी मुद्दे पर UPA सरकार को गिराने का पाखण्ड कर रहे थे। आश्चर्य तो तब हुआ जब खुद को सेवक बताने वाले PM श्री मोदी ने परमाणु संधि पर खुलकर बताने तक से ये कहकर इनकार कर दिया की ये हमारे और ओबामा के बीच का मसला है। आप देश के सामंत/चक्रवती राजा नहीं हैं जनाब, हद है तानाशाही की!! लेकिन मैं जहाँ तक पहुंचे बात पहुंचाने की कौशिश करूँगा। आज मैं सर्व कालिक सर्वाधिक निंदा झेले PM श्री मनमोहन की इस बात की तारीफ़ तो करूँगा की उनकी आर्थिक नीतियाँ अमेरिका परस्त होने के बाद भी खुद द्वारा आगे बढाए परमाणु समझोते के लिए देश हित को कुर्बान नहीं किया। कहाँ अटका था मामला ?? भारतीय सप्लायर जोखिम जिम्मेदारी क़ानून 2010 के मुख्य सेक्शन 17(B) और 46 के तहत, परमाणु रिएक्टर और उर्जा देने वाले सप्लायर की जिम्मेदारी है हादसे की भरपाई, और अपराधिक मामला भी बनता है। मोदी सरकार ने ये जिम्मेदारी लगभग खुद ओढ़ ली है, चाटुकारिता की हद ये है की इंश्योरेंस के जरिये ये रिस्क कवर की जायेगी और 200 मिलियन डॉलर की ये भारी राशि भारतीय सरकार वहन करेगी। इतना ही नहीं इन कंडम, कबाड़ रिएक्टर जिन्हें विश्व में कोई लगवाने को आजतक तैयार नहीं हुआ के चलते कभी भी 1 लाख करोड़ तक का भार भारत पर पड़ सकता है। क्योंकि इंश्योरेंस कम्पनियाँ भी भारतीय ही होंगी। ऐसे कामना करना अनुचित है पर एक तलवार लटकेगी भारतीय नागरिक सुरक्षा पर, इन कबाड़ के चलते फिर कोई भोपाल त्रासदी से बड़ी त्रासदी का एंडरसन कभी सजा नहीं पायेगा, ये है इन देश को विश्व गुरु बनाने वालों का सच। देश को समझना होगा किस तरह देश अमेरिकी चक्रव्यूह में फंसा दिया गया है, मीडिया, पूँजी और धार्मिक कट्टर पंथियो के समानांतर प्रचार ने। रक्षा में 50% FDI इसीलिए लाई गयी, 10 साल का रक्षा सौदा हो गया है अब अमेरिकी हथियार कंपनिया जमकर अपने कबाड़ जखीरे को बेच लाभ कमाएंगी और अब तो घोटाले भी पकड़ नहीं आयेंगे क्योंकि दलालों, बिचोलियों को कानूनी मान्यता दे दी गई है। जनता को समझना होगा की चाहे मीडिया गुमराह करे, जागरूक लोगों को देश हित में सच्चाई ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ले जानी होगी की हम एकबार फिर गुलामी की जंजीरों में जकड़ लिए गये हैं।
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