पूर्वजों के साथ जिनका कोई नहीं उनका भी किया तर्पण

पितृ मोक्ष अमावश्या पर ब्यारमा नदी के तट पर घंटो तक चला आयोजन
2दमोह/सनातन धर्म में यज्ञ,हवन,पूजन के साथ ही तर्पण का भी विशेष महत्व बतलाया गया है। जिसमें पूर्वजों की आत्मिक शंाति एवं मुक्ति के लिये कुंवार माह में 16 दिनों तक तर्पण करने का विधान बतलाया जाता है। भादों माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर यह पर्व कुंवार माह की अमावश्या तक चलता है। नदी,सरोवर के तट पर एक विशेष विधि विधान के साथ सनातन धर्म के मानने वाले अपने पूर्वजों को कुश के साथ जल अर्पित करते हुये तर्पण करते है। पितरों की शांति एवं उनका आशीष प्राप्त करने के लिये उक्त पर्व का विशेष महत्व बतलाया जाता है। धार्मिक ग्रन्थों में इसका विशेष वर्णन मिलता है साथ ही उन स्थानों की जानकारी जहां तर्पण एवं पिंड दान किया जाता है।
सूर्य की प्रथम किरण के साथ-पितरों को तिलांजली-
ब्रम्हमुर्हत में जिले के ही ग्राम बलारपुर के समीप से निकली व्यारमा नदी के तट पर तर्पण का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। सूर्य की प्रथम किरण के साथ प्रारंभ हुये तर्पण का कार्यक्रम लगभग तीन घंटे से अधिक समय तक चला। जिले के ही विद्वान पंडित महेश पांडे ने धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित पूर्ण रीति रिवाज के साथ वेद मंत्रों के उच्चारण कर प्रारंभ करवाया। इस अवसर पर एक अलग ही अनुभूति होते देखी गयी जब जल में कभी कमर तक तो कभी नाभी तक तो कभी बैठकर,खडे होकर तर्पण किया जा रहा था। वहीं उपलों से उठती ज्वालायें एवं गुगल तथा शुद्ध देशी घी के हवन से सारा वातावरण एकदम अलग ही नजर आ रहा था। देवताओं,ऋषियों जल अर्पित के साथ पितरों का तर्पण किया गया वहीं जिनका कोई नहीं एैसी संसार की समस्त दिवंगत आत्माओं की शांति एवं मुक्ति के लिये भी प्रार्थना करते हुये तर्पण किया गया। इस अवसर पर बडी संख्या में श्रृद्धालुओं की उपस्थिति रही।

error: Content is protected !!