26/11 मुंबई हमलों के दोषी आमिर अजमल क़साब को फांसी दिए जाने पर भारत में आमतौर पर लोग इसका स्वागत कर रहें हैं लेकिन इसके साथ ही ये सवाल भी उठने लगा है कि पाकिस्तान की जेल में मौत की सज़ा काट रहे भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह का अब क्या होगा?
बुधवार की सुबह लगभग साढ़े सात बजे पुणे की येरवडा जेल में क़साब को फांसी दे दी गई थी. सरबजीत को भी पाकिस्तान की अदालत ने लाहौर में बम धमाकों का दोषी क़रार देते हुए फांसी की सज़ा सुनाई है.
क़साब की फांसी के बाद बुधवार को एक भारतीय टेलीविज़न चैनल आईबीएन-7 से बातचीत के दौरान सलमान ख़ुर्शीद ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सरबजीत सिंह के मामले में पाकिस्तान का रवैया अलग होगा.
चैनल के एंकर ने जब सलमान ख़ुर्शीद से कहा कि एक तबक़े में डर है कि कहीं क़साब के बदले सरबजीत को कुछ न हो जाए तो इस पर ख़ुर्शीद का जवाब था, ”मुझे कोई विशेष जानकारी नहीं है कि पाकिस्तान के मन में क्या है. हम अनुमान लगा सकते हैं लेकिन आज ये कह देना कि उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी ये संभव नहीं है. हम ये उम्मीद करते हैं कि दोनों के विषय में जो तथ्य हैं दोनों में बड़ा अंतर है. हम उम्मीद करते हैं सरबजीत के मामले में पाकिस्तान का रवैया अलग होगा.”
इसी बातचीत के दौरान ख़ुर्शीद ने कहा कि भारतीय विदेश मंत्रालय इस मामले में पाकिस्तान से बात करेगा.
भारतीय मीडिया में जताई जा रही इन आशंकाओं के अलावा प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी को पत्र लिखकर सरबजीत को रिहा किए जाने की अपील की है.
काटजू ने अपना ये पत्र दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग को सौंप दिया है.
अपने पत्र में जस्टिस काटजू ने लिखा है कि क़साब और सरबजीत के केस बिल्कुल अलग हैं.
उन्होंने लिखा है कि यह सही है कि पाक न्यायालय ने सरबजीत को दोषी क़रार दिया है लेकिन सरबजीत के मामले में जो एफ़आईआर दर्ज हुई थी उसमें सरबजीत का नाम नहीं था जबकि क़साब के विषय में कोई संदेह नहीं है वह रंगे हाथों पकड़ा गया था.
जस्टिस काटजू इससे पहले भी पाकिस्तानी राष्ट्रपति को सरबजीत की रिहाई के लिए ख़त लिख चुके हैं.
इस बीच इमरान ख़ान की अध्यक्षता वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी ने बुधवार को कहा कि पाकिस्तान में चरमपंथ पर क़ाबू पाने के लिए मौत की सज़ा काट रहे सरबजीत सिंह समेत सभी भारतीय चरमपंथियों को फांसी दी जानी चाहिए.
पूरा मामला
सरबजीत सिंह को 1990 में पाकिस्तान के लाहौर और फ़ैसलाबाद में हुए चार बम धमाकों के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था.
इन धमाकों में कम से कम 10 लोग मारे गए थे. पाकिस्तान में सरबजीत सिंह को मनजीत सिंह के नाम से गिरफ़्तार किया गया था.
अपने बचाव में सरबजीत ने तर्क दिया था कि वो निर्दोष हैं और भारत के तरन तारन के किसान हैं. ग़लती से उन्होंने सीमा पार की और पाकिस्तान पहुंच गए.
लेकिन लाहौर की एक अदालत में उनपर मुक़दमा चला और 1991 में अदालत ने उनको मौत की सज़ा सुनाई.
निचली अदालत की ये सज़ा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाल रखी. सरबजीत ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दाख़िल की थी जिसे 2006 में ख़ारिज कर दिया गया.
उनकी रिहाई के लिए दोनों देश के कई मानवाधिकार कार्यकर्ता अपील कर चुके हैं. पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्व मंत्री अंसार बर्नी इस मामले में पाकिस्तान के राष्ट्रपति से गुहार लगा चुके हैं.
भारत में सरबजीत की बहन दलबीर कौर लगातार प्रयास करती रहीं हैं. हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता सलमान ख़ान ने भी सरबजीत की रिहाई के लिए प्रयास किए हैं.
सलमान ख़ान ने तो उनकी रिहाई के लिए बाज़ाबता एक ऑनलाइन अभियान चला रखा है.
इससे पहले जून के अंतिम सप्ताह में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी के प्रवक्ता फ़रहतुल्लाह बाबर के हवाले से ऐसी भी ख़बर आई थी कि सरबजीत सिंह की मौत की सज़ा उम्र क़ैद में तब्दील कर दी गई है. इसके बाद कहा जा रहा था कि अब वे रिहा किए जा सकते हैं क्योंकि उन्होंने पर्याप्त समय जेल में गुज़ार लिया है.
लेकिन चौबीस घंटे के भीतर ही पाकिस्तान की तरफ़ से इसका खंडन कर दिया गया और और कहा गया कि दरअसल एक दूसरे भारतीय कैदी सुरजीत सिंह को रिहा किया जा रहा है.
इस स्पष्टीकरण के एक दिन बाद ही 69 वर्षीय सुरजीत सिंह को पाकिस्तान की एक जेल से रिहा कर दिया गया और वे उसी दिन वाघा बॉर्डर के जारिए भारत पहुँच गए थे.