बाड़मेर 19 जनवरी।
गुलेच्छा ग्राउण्ड में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथा व्यास महंत लक्ष्मणदास महाराज ने कहा। भगवान की कृपा से हमें जीवन मैं संत का दर्षन होता है। हमें संबंध केवल प्रभु सेही बनाना चाहिये। न नष्वर संसार से। हमे मानव का चोला मिल है। हमें किसी प्रकार का दाग नही लगाना चाहिये अगर लग गया है तो इसे हटाना कैसे चाहिये। कपड़े का दाग साबुन से साफ हो जाता है। पर मन का दाग सतसंग में ही साफ होता है। भक्ति की कोई उमर नही होती है। इसी पावन प्रसंग में धु्रव की कथा कही। जब एक पांच वर्ष का बालक भक्ति कर सकता है तो हमे भी अपने जीवनकाल में थोड़ा समय निकाल कर भजन करना चाहियें। इस प्रसंग की बड़ी सुन्दर झांकी भी सजाई गई। श्रृष्टि सरचना में लोक पर्वत व नवखण्ड की कथा कही। महाराज ने इस धरती का दोहन कर सबके इच्छित वस्तुए प्राप्त की। आगे जड़ भरत की कथा कही। जिन्होने अंत समय में एक हिरण में चित लगाया तो उन्हे अगला जन्म हरिण का मिला। अंत प्रभु कृपा से हरिण देह त्याग वापस ब्राहमण कृल में जन्म हुआ। और राजा रहुगण को सद्उपदेष दे आगें अपना देह त्याग किया। बाबुलाल माली दुर्गाषंर ने बताया कि आज की प्रसादी का लाभार्थी कांतिलाल माहेष्वरी आरती लाभार्थी जोगाराम माली चिन्तामण आचार्य ने लिया।