– राहुल चौधरी – मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने सबसे करीबी सिपहसालार साँवरलाल जाट को बड़ी उम्मीदो सेदिल्ली भेजा था कि वे केन्द्र में मंत्री बनकर उनका नाम रोशन करेगे।पर मोदी की आंधी से लोकसभामें भाजपा की सीटों की झड़ी लग गयी और वसुंधरा राजे की कल्पनाओं की उड़ानो को पर नही लगपाये। फिर भी साँवर लाल जाट के राज्य में मंत्रीपद की संवैधानिकता से जुड़े मामले में राजे ने जाटका पूरा साथ दिया और अब, नसीराबाद विधानसभा के चुनावों में वसुंधरा राजे का जाट-प्रेम फिर सेजाहिर हो सकता है। पर नसीराबाद की सीट जीतने के लिए राजे को एक राजा की सोच को पीछे रख,एक राजनितिज्ञ की तरह सोचना होगा।
नसीराबाद पारंपरिक रुप से कांग्रेस का गढ़ रहा है इसका सबसे अच्छा उदाहरण ये है कि दिसम्बर2013 के विधानसभा चुनावों में महेन्द्रसिहं गुर्जर भले ही सांवरलाल जाट से 28500 वोटो से हारे हो,पर उन्होने अपने 2008 चुनावो से करीब 4000 वोट ज्यादा हासिल किये है। 2008 में गुर्जर नेसांवरलाल जाट को नसीराबाद से पराजित किया था।
ऐसे में भाजपा के सामने चुनौती निश्चित रुप से आसान नही होगी। सबसे बड़ी राजनैतिक गफलत सेखुद सांवर लाल जाट को जूझना होगा क्योकि भाजपा की राष्ट्रीय निती के अनुसार अब उनके बेटेरामस्वरुप को उनकी विरासत नही दी जा सकती। ऐसे में सांवर लाल के सामने यक्ष प्रश्न ऐसाउम्मीदवार ढ़ूढ़ने का होगा जो उनकी विरासत को अगले चार साल तक अमानत की तरह रख सके।
बेटे को टिकट नही मिलने की स्थिती में, पूर्व कांग्रेसी नेता रामचन्द्र चौधरी का नाम सांवर लाल आगेबढ़ा सकते है। परन्तु चौधरी का राजनैतिक महत्वकांशाए अजमेर जिले में किसी से छिपी नही है।ऐसे में सांवरलाल जाट का समर्थन चौधरी को मिलने की संभावनाएं ना के बराबर है। वही पिछले दोदशको में सावंर लाल जाट के अलावा इस क्षेत्र में किसी अन्य जाट नेता का दबदबा कायम नही होपाया, ऐसे में सांवरलाल अपनी राजनैतिक विरासत को किसी जाट-बंधु को सौपने से पहले भविष्यके बारे में कई बार जरुर विचार करेगे।
जाट समुदाय के बाद नसीराबाद में भाजपा को दूसरा बड़ा वोट बैंक रावत समाज है। रावत समाज से नसीराबाद से गंभीर दावेदारी के लिए तिलक सिंह रावत का नाम सामने आया है। तिलक सिंह, कद्दावर रावत रासा सिंह रावत के पुत्र है। रावत, अजमेर से पांच बार सांसद रह चुके है तथा उनकी छवि बेदाग है। चूंकि रासासिंह रावत, अभी संगठन और सरकार में किसी जिम्मेदारी पर नही है, ऐसे में बेटे को टिकिट नही देने की नीति, तिलक सिंह के केस में लागू नही होती।चूंकि रावत समुदाय ने विधानसभा औऱ लोकसभा चुनावो में खुलकर भाजपा का साथ दिया है, ऐसे में नसीराबाद से उनकी दावेदारी लाजमी है।
राजनैतिक दृष्टि से सांवरलाल जाट और रासा सिंह रावत, अजमेर जिले में दो अलग अलग धाराएं है, जिनका कभी टकराव नही हुआ है, ऐसे में तिलक सिंह रावत की दावेदारी, सांवरलाल जाट को वो आप्शन दे सकती है, जिसकी तलाश उन्हे चिराग लेकर पार्टी के हर कोने में करनी पड़ती।
अगर सांवरलाल जाट औऱ रासासिंह रावत का कोई राजनैतिक पैक्ट, वसुंधरा राजे करवा पाती है तो वह ना केवल सीट को बचाने में कामयाब हो सकती है बल्कि अजमेर जिले में अपने आप को और मजबूती से खडा रख पायेगी। ऐसा कोई गठबंधन, सचिन पायलेट जैसे मजबूत दावेदार को भी आसानी से पानी पिला सकता है। जानकारों का मानना है कि पायलेट की नजर नसीराबाद में रावत वोटो पर है तथा जाट-रावत पैक्ट होने की स्थिती में सचिन शायद ही नसीराबाद का रुख करे।
अब सांवरलाल जाट की दूरन्देशी ही नसीराबाद सीट को उनके लिए भविष्य में बचाये रख सकती है। यही नही जाट-रावत पैक्ट होने की स्थिती में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी सीधा लाभ मिलेगा। चूंकि रावत समाज राजसंमद, पाली, अजमेर औऱ भीलवाड़ा में करीब 25 विधानसभा सीटो को प्रभावित करता है, वसुंधरा राजे पर दबाव है कि तीन में से एक रावत विधायक को मंत्री पद दिया जाए। परन्तु राजे के विजन और वर्किंग स्टाइल में फिट होना तीनो के बूते से बाहर नजर आता है। ऐसे में एक और विधानसभा टिकिट दिये जाने से राजे मंत्री पद की मांग को अनसुना कर सकती है।
समीकरणों की द़ृष्टि से तो जाट-रावत पैक्ट मजबूत नजर आता है परन्तु राजनिती में रणनिती से ज्यादा कई बार अति आत्मविश्वास और गर्व को ज्यादा महत्व मिल जाता है, जिसके परिणाम बाद में भुगतने पड़ते है। ऐसे में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को नसीराबाद की सीट जीतने के लिए राजा की सोच हटकर एक राजनितिज्ञ की तरह सोच कर फैसला लेना होगा, नही तो नसीराबाद की राहे आसान नही होगी।
-राहुल चौधरी