अन्ना हजारे के प्रमुख सहयोगी अरविंद केजरीवाल और उनके साथी एक ओर तो यह कह कर बहादुरी दिखाते हैं कि भले ही जान चली जाए, मगर वे व्यवस्था परिवर्तन के लिए आखिरी दम तक संघर्ष करते रहेंगे, मगर दूसरी ओर आंदोलन के दौरान गिरफ्तार होने व लाठियां पडऩे पर ऐतराज खड़ा करते हैं कि सरकार व पुलिस नाइंसाफी कर रही है। कानाफूसी है कि क्या टीम केजरीवाल के लोग यह सोच कर घर से निकले थे कि प्रदर्शन के दौरान उनको लड्डू बांटे जाएंगे।
ये तो गनीमत है कि टीम केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ भाजपा को भी निशाने पर लिया, इस कारण कांग्रेस सरकार ने पुलिस को आखिरी मजबूरी तक संयम बरतने की हिदायत दी। दिल्ली के अति सुरक्षा वाले क्षेत्रों में भी अवरोधक तोडऩे दिए। महत्वपूर्ण सीमा रेखाओं को भी पार करने दिया। जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता, वहां तक दीवारें कूद कर कार्यकर्ता अपनी बहादुरी दिखाने में कामयाब रहे। ताकि इस नौटंकी की लाइव कवरेज के दौरान कांग्रेस के साथ भाजपा के चेहरे पर भी कोयला घोटाले की कालिख पुते, वरना कार्यकर्ताओं ने जितना ऊधम किया था, उसमें तो इतनी मार खाते कि महीनों तक जख्मों को सेक रहे होते।
1 thought on “प्रदर्शन पर लड्डू थोड़े ही बंटते हैं”
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सर पर कफ़न बाँध कर क्रान्ति का बिगुल बजाने जब सब जनता सडकों पर निकली है तो ये तो सब को स्पष्ट ही है कि भ्रष्टाचारी सरकार लड्डू तो बांटने से रही……
हम अभी तक इस गुमान में थे कि लोकतान्त्रिक देश में अपने जनप्रतिनिधियों द्वारा शासित हैं हम……..
आँखें खुल गयी हैं तो क्रान्ति करने निकल पड़े……
परन्तु जब निहत्थे,शांतिपूर्ण,अहिंसक क्रांतिकारियों पर बल प्रयोग किया जाता है तो जनता ऐतराज़ तो उठाएगी ही…..
किसी के कहने मात्र से हम अब डिफेंस पर नहीं आयेंगे…….
ये किस ने कहा था कि हम कोई गलत काम का विरोध नहीं करेंगे ???