
बड़ा या महान बनने के लिए त्याग, तपस्या, धीरज, उदारता और सहनशक्ति की आवश्यकता होती है। विष को अपने भीतर ही सहेजकर आश्रितों के लिए अमृत देने वाले होने से और विरोधों, विषमताओं को भी संतुलित रखते हुए एक परिवार बनाए रखने का सामर्थ्य रखने वाले शिव ही महादेव हैं। शिवजी के समीप पार्वतीजी का शेर, शिवजी का नन्दी (बैल) ,शिवजी के शरीर पर लिपटे हुए सांप , कुमार कार्तिकेय का मोर , गणेशजी का मूषक, विष की अग्नि और गंगा का जल होता है | कभी पिनाकी धनुर्धर वीर तो कभी नरमुण्डधर कपाली, कहीं अर्धनारीश्वर तो कहीं महाकाली के पैरों में लुण्ठित, कभी मृड यानी सर्वधनी तो कभी दिगम्बर, निमार्णदेव भव और संहारदेव रुद्र, कभी भूतनाथ कभी विश्वनाथ आदि सब विरोधी बातों का जिनके प्रताप से एक जगह पावन संगम होता हो, वे ही तो देवों के देव महादेव हो सकते हैं।
तीनों भुवनों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गोरी को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शिव अपने शरीर पर श्मशान की राख, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में गंगा धारण किये हुए हैं, वहीं बैल भगवान शिव का वाहन है।——
-आईये करें महादेव के इस अनोखे रूप का विश्लेषण——
आज का मानव जहाँ एक तरफ चांद व मंगल ग्रह को छूने एवं उनपर जीवन होने की सम्भावनाएं खोजने में लगा है वहीं दूसरी तरफ हमारे समाज में हिंसा, छुआछूत, भेदभाव,भूत-प्रेत, टोने-टोटके आदि कुरीतियां आज भी अपनी गहरी जड़ें जमाये हुए हैं | ऐसी विषम परिस्थिति में देवों के देव महादेव से जुड़ी कल्याणकारी शिक्षाएं अत्यंत उपयोगीसाबित हो सकती हैं | जो व्यक्ति भगवान शिव के समान स्वार्थ का परित्याग कर परमार्थ को अपनी साधना, आराधना समझेगा, वही शिवतत्व को प्राप्त कर सकेगा अर्थात शिवकी अनुकंपा उसी पर होगी | भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा से यह प्रेरणा मिलती है कि हम चौथ के चाँद के बजाय द्वितीया (दूज ) के चाँद के समान सभी को सुख-शांति एवंशीतलता प्रदान करें |
बभूतभावन भगवान शिव के परिवार में भूत-प्रेत, सर्प-बिच्छू, सांड़ और सिंह, मयूर एवं सर्प,सर्प और चूहा जैसे घोर विरोधी स्वभाव के प्राणी भी प्रेमपूर्वक साथ साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं तो क्यों नहीं हम हमारे समाज एवं देश ( भारत विभिन्न धर्मों-समुदायों एवं भिन्न –भिन्न संस्क्रतियों का देश है ) में बिना किसी भेदभाव के गिरे हुओं को, पिछड़े हुओं को , विभिन्न धर्मों के अनुयायीयो को साथ लेकर चलें, किसी से बैर-भाव नरखें तो जहाँ समाज प्रगतिशील बनेगा वहीं हमें शिव साधना का सही आनंद भी प्राप्त होगा |.
महादेव श्मशान की राख को शरीर पर मलते हैं. तात्पर्य है कि हमें भी मृत्यु को हर समय याद रखना चाहिए ताकि हम एक साफ-सुथरा निष्कलंक जीवन जी सकें. भगवान शिव नेजिस तरह अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया था. वैसे ही हमें भी स्वयं व समाज से चोरी-डकेती,लुट-कसोट,अनैतिकता, अश्लीलता और कामुकता को दूर करने काप्रयास करना चाहिए. मौजूदा दौर मे समाज काम और विषय के प्रभाव से सर्वाधिक संक्रमित है. इसके निवारण के लिए समय और समाज की वह तीसरी आंख खुलनी जरूरीहै, जो हमारे अंदर की तमाम दैहिक कामनाओं को नियंत्रित करे |
शिव मुंडों की माला पहनते हैं. यह देखकर नासमझी में थोड़ा अटपटा जरुर लगता है, पर शिव का यह रूप भयावह नहीं किन्तु कल्याणकारी रूप है | यह शिवरूप हमें यह सीखदेता है कि अपने क्रोध अंहकार-ईगो को सदैव वश में रखें | इसी तरह नशीली वस्तुएं, जैसे- आक, धतूरा, भांग आदि शिव को चढ़ाने की जो परिपाटी है, उसके पीछे यही तथ्य छिपा है कि प्रत्येक वस्तु व्यक्ति के अच्छे-बुरे दोनों पहलू होते हैं, इन नशीले व विषाक्त पदार्थों को शिव को अर्पित करने का अर्थ हुआ उनके शिव-शुभ (औषधीय गुण) कोस्वीकार कर अशुभ-व्यसन रूप का त्याग कर देना |
ऐसी ही अनेकों प्रेरणाएं शिव विग्रह के साथ भी जुड़ी हैं| महादेव के तीन नेत्र- विवेक से काम-कामुकता को खत्म करना, मस्तक पर चंद्रमा-मानसिक संतुलन की आवश्यकता का प्रतिक है वहीं गंगा–धारण – ज्ञान के सतत प्रवाह, भूत- गुजरे वक्त (भूतकाल) से विवेकपूर्ण शिक्षा ग्रहण करने की राह दिखाते हैं. भगवान शिव का केवलमृगछाल धारण करना अपरिग्रह का प्रतीक है | परिग्रह एक प्रकार का पाप है, क्योंकि किसी वस्तु का परिग्रह करने का अर्थ हुआ कि दूसरों को उस वस्तु से वंचित करना|
अपरिग्रही (जो आवश्यकता से अधिक मात्र मे धन-वस्तु का संग्रह) व्यक्ति ही समाज के अंदर वंदनीय होते हैं और उनका जीवन संसार में शांति स्थापित करने के लिएहोता है. गौरतलब है कि शिव सर्व समाज के सर्वमान्य देवता हैं |शिवरात्रि व्रत मनाने का अधिकार ब्राह्मण से लेकर चंडाल तक सभी को है| भोले बाबा के लिए सब एक समान हैं|भगवान शिव महायोगी भी कहलाते हैं, उन्होंने योग साधना के द्वारा अपने जीवन को पवित्र किया है, वे असीमित गुणों के अक्षय भंडार हैं |
महाशिवरात्रि का पावन पर्व प्रत्येक साधक को आह्वान करता है कि “ उठो, जागो और यदि अपनी और दूसरों की सुख-शांति चाहते हो तो अपरिग्रह, सादा जीवन, उच्च विचार,परोपकार, समता, परदुख कातरता,परोपकार, अहिंसा और परमात्मा के सामीप्य को ग्रहण करो, केवल अपनी उन्नति में ही संतुष्ट न रहो वरन दूसरों की, अपने समाज की तथाअपने राष्ट्र की एवं मानव मात्र की उन्नति को ही अपनी सफलता मानो “ | इन संदेशों को यदि अपने अंत:करण में स्थान दे सकें व उन्हें कार्यरूप में परिणतकर सकें तो ही हम देवों के देव महादेव के सच्चे अनुयायी-अनुचर कहलाने के अधिकारी बनेगें |
-जे.के. गर्ग
सन्दर्भ—References——-cafe Hindu.com,sadar India People patrotic Plateform-S Mathur,Poonm Negi,Vinayk Vastu Times,Web Duniya, Aajtak, India Today, Wikipediya etc etc