मूल: मृदुल कीर्ति
कटी पतंग
एक पतंग नीले आकाश में उड़ती हुई
मेरे कमरे के ठीक सामने
अचानक कट कर
खिड़की से दिखते एक पेड़ पर
अटक गयी।
नीचे कितने ही लूटने वाले आ गए
क्योंकि
पतंग की किस्मत है
कभी कट जाना
कभी लुट जाना
कभी उलझ जाना
कभी नुच जाना
कभी बच जाना
कभी छिन जाना
कभी सूखी टहनियों
पर लटक जाना।
टूट कर गिरी तो झपट कर
तार-तार कर देना।
हर हाल में लालची निगाहें
उसका पीछा करती है। कहीं वह नारी तो नहीं?
डॉ मृदुल कीर्ति
रेमंड यवन्यू रोम, जार्जिया, -अमेरिका
सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
कटियल पतंग
हिकु पतंगु नीले आकाश में उडामंदे
मुहिंजे कमरे जे बिलकुल साम्हूँ
ओचतो कटजी
दरीअ मां नज़र ईंदड़ वण ते
अटकी प्यो ।
हेठ केतरा लुटण वारा अची व्या
छाकाण जो,
पतंग जी किस्मत आहे
कडहिं कटिजी वञण
कडहिं लुटजी वञण
कडहिं उलझी वञण
कडहिं पट्जी वञण
कडहिं बची वञण
कडहिं खस्यो वञण
कडहिं सुकल टारियुन
ते लटकी वञण।
टुटी करे किरण ते झपटो पाए
तार-तार करण
हर हाल में लालची निगाहूँ
हुन जो पीछो कंद्यूँ आहिन । किथे हूअ नारी त नाहे?
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