अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में वर्ष 2007 में अक्टूबर माह में जब मुस्लिम माह रमजान के दौरान इफ्तार पार्टियां हो रही थी, तभी इफ्तारी के दौरान ही छोटे-छोटे बम ब्लास्ट हुए। इससे तीन जनों की मौत हो गई थी। तब केन्द्र में यूपीए की सरकार थी और जांच एनआईए से शुरू करवाई गई तब इस बात का प्रचार हुआ कि बम ब्लास्ट करने वालों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा वाले लोग शामिल थे, लेकिन केन्द्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद अदालत में चल रही कार्यवाही में भी बदलाव आ गया। अदालत में हुई सुनवाई का रिकार्ड बताता है कि नवम्बर 2014 से लेकर मई 2015 के 7 माह की अवधि में 13 गवाह अपने पूर्व बयानों से पलट गए हंै। बदले हुए गवाहों ने यहां तक आरोप लगाया है कि एनआईए के अधिकारियों ने दबाव डालकर बयान लिए हंै। बयान से मुकरने वाले गवाहों में रणधीर सिंह भी शामिल हंै। रणधीर सिंह ने झारखंड में विधायक का चुनाव लड़ा था। इन चुनावों में भाजपा ने अपनी सरकार बचाने के लिए रणधीर सिंह को भाजपा में शामिल कर लिया और फिर मंत्री भी बना दिया। मंत्री बनते ही रणधीर सिंह भी अपने पूर्व के बयानों से मुकर गया। सवाल उठता है कि गवाह पहले झूठ बोल रहे थे या अब। जांच एजेंसियों ने पूर्व में भी जिन लोगों को गिरफ्तार किया था उन्होंने तब भी सभी आरोपों से इंकार किया था, लेकिन तब ऐसे लोगों की एक नहीं सुनी गई। वहीं एनआईए पर आरोप लग रहा है कि जांच में गंभीरता नहीं बरती जा रही है। इसी मामले से जुड़े संघ के प्रचारक सुनील जोशी की मौत पर भी अब सवाल उठ रहे हैं। दरगाह ब्लास्ट के गवाहों के पलटने से भी कई सवाल उठ रहे हैं।
(एस.पी. मित्तल) M-09829071511