विजयदशमी में निहित आदर्शों को अपना कर बनायें अपनी जिन्दगी को खुशहाल

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
विजयदशमी का पावन पर्व हमें निम्न संदेश देता है—–
सत्य अविजित है क्योंकि असत्य की पराजय अनिवार्य है |
विजय हमेशा न्याय की अन्याय पर होती है चाहे आततायी एवं अन्यायी कितना ही बलशाली हो |
दशहरे का पर्व हमें बुराई में भी अच्छाई ढूँढने का संदेश देता है (रावण जब मरणासन्न था तब भगवान राम ने लक्ष्मण को महापंडित रावण के पास जाकर उनसे राजनीति सीखने एवं ज्ञान प्राप्त करने को कहा था)
अहंकारी व्यक्तियों की सफलता क्षणिक होती है क्योंकि अंत में विजय तो विनम्रता-शालीनता की ही होती है |
दुराचारी मनुष्य को अपने कर्मों का दंड भोगना ही पड़ता है, समाज में सम्मान सिर्फ सदाचारी इन्सान का ही होता है|
कर्कश एवं कटु वाणी बोलने वाले मनुष्य दूसरों के स्वाभिमान को ठेस पहुचातें हैं किन्तु वे नुकसान अपना ही करते हैं|
दैवीय गुणों के सम्मुख तमोगुण सदेव पराजित होते हैं |
अपनी दसों इंद्रियों पर नियन्त्रण करने से ही हम अच्छे इंसान बन सकते हैं |
अंतर्मुखता की बहिर्मुखता पर विजय अवश्यंभावी हे।
भोग पर योग की विजय जरुर होती है।
जीवत्व पर शिवत्व की विजय अवश्य होती है।
विजयदशमी का पुनीत अवसर हमें याद दिलाता है कि अगर हम निम्नलिखित कमजोरियों-बुराईयों का पूर्णतया त्याग कर दें तो हमारा मानव जीवन सफल होगा एवं हम अपने आपको सुखी-खुशहाल बना पायगें|
1.रावण की राम के हाथों पराजय उसके अहंकार के कारण ही हुयी थी,उसका अहंकार ही उसकी म्रत्यु का कारण बना अत: निर्विवाद रूप से अहंकार ही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है
2.क्रोध एक माचिस की तिली है जो दूसरों को जलाने से पूर्व खुद को ही जला डालती है|क्रोध में हम अपना विवेक एवं मानसिक संतुलन खो कर अपना ही नुकसान करते हैं|क्रोधित होकर हम सफलता के सभी दरवाजे बंद कर देते हैं जिससे जीवन कष्टमय बन जाता है|
3.हमारे दुर्व्यसन (यथा धूम्रपान,मिथ्या वचन,अन्य के साथ मारपीट करना,दूसरों को अपमानित करना एवं प्रताड़ित करना,शराबी बनना) हमें सन्मार्ग से हटा कर विनाश के गर्त में ढकेलते हैं जिससे हमारा जीवन नारकीय बन जाता है|
4.आलस्य आदमी को उसके कर्मों से विमुख कर देता है,उसकी बुद्धी मंद हो जाती है जिससे समाज में उसकी कोई अहमियत नहीं होती है और वह उपेक्षा का पात्र बनता है|
5.तलवार से लगे घावों को तो भरा जा सकता है किन्तु कटु-कर्कश वाणी के घावों को कभी भी नहीं भरा जा सकता है|कर्कश वाणी सिर्फ शत्रु पैदा कर सोहार्दता को समूल नष्ट करती है|
6.काम वासना योनाचार-अनाचार की जननी है,आदमी काम वासनाओं से अपने को चरित्रहीन बना लेता है एवं अनेकों अनैतिक कार्यो को कर अनेक बीमारियों को बुलावा देता है|काम वासना के वशीभूत होकर ही रावण ने ने माता सीता का बलात अपहरण किया जिसके परिणाम स्वरूप वह भगवान राम के हाथों मारा गया।
7.लोभ-लालच के वशीभूत होकर रावण ने भगवान शिवजी से अपने लिए सोने की लंका मांग ली एवं लंकापति बन स्वयं को सर्वश्रेष्ठ,शक्तिशाली मान अवांछित कार्यों में लिप्त होने लगा|हनुमानजी ने उसकी लंका को ही जला दिया।
8.रावण की इर्ष्या-डाह-जलन की प्रव्रत्ति की वजह से उसके हितेषी भी मन ही मन उससे दूरी बनाने लगे|आज भी इर्ष्या-जलन की वजह आदमी बेवजह यह सोचकर दुखी रहता है कि मेरा पड़ोसी,मेरे रिश्तेदार,मेरे दोस्त मुझसे ज्यादा सुखी कैसे हैं?उसकी ईर्ष्यालु आदत उसे ही नुकसान पहुंचाती है।
9.पीठ पीछे किसी की निंदा कर हम अपना ही अहित करते हैं और दूसरों को अपना दुश्मन बनाते है|रावण की परनिंदा की आदत भी उसकी पराजय का कारण बनी|हमकों दूसरों की निंदा करने के बजाय उनके अच्छे कामों की प्रशंसा कर पारस्परिक सोहार्द बनाये रखना चाहिये|
10.रावण का अभिमान ही उसके पतन का कारण बना|हम हमारे अभिमान-घमंड की वजह से दूसरों के स्वाभिमान को ठेंस पहुंचाते हैं| कहावत है कि घमंडी का सिर हमेशा नीचा ही रहता है|
परम्परा की अनुपालना में हम प्रति वर्ष सीता माता के अपहरणकर्ता और आसुरी प्रव्रत्तियों के प्रतीक रावण के विशालकाय पुतले को हर्षोल्लास एवं धूमधाम से जला कर खुशी-खुशी अपने घर लोट आतें हैं| दशहरे के दिन रावण दहन के समय एक क्षण के लिये हमारे मन में भगवान श्रीराम के आदर्शों को अपने जीवन में अंगीकार कर सभी प्रकार दुष्कर्मों या विनाशकारी प्रव्रत्तियों यथा काम,क्रोध,लोभ,मद,मोह,मत्सर,अहंकार,आलस्य,हिंसा एवं चोरी के परित्याग करने का विचार आता है,किन्तु हमारी यह सात्विकता से परिपूर्ण सोच क्षणिक ही होती है क्योंकि अगर हम हम इस सोच को अमली जामा पहनाते तो हमे हमारे समाज में झूठ,फरेब,धोखाधडी,लूटकचोट,चोरी-चकारी,हिंसा,मारकूट,अपहरण की विभत्स घटनायें नहीं होती|जरा सोचिये कि क्या ऐसा हो रहा है?अगर नहीं तो रावण के पुतले जलाने एवं श्रीराम की कसमें खानें का क्या औचित्य है?क्यों हमारे भीतर काम,क्रोध,लोभ,मद मोह,आलस्य अपनी जड़े जमा रहा है?क्यों हम परनिंदा करने में सबसे आगे रहते हैं?क्यों हमारी बहन-बेटियां अपहरणकर्ताओं के हाथों बेइज्जत होती है?क्यों भ्रष्टाचार का विषाणु हममें आत्मसात हो गया है?कहते हैं कि देवता वो होते हैं जो कभी भी गलती या गलतीयां नहीं करते हैं,वहीं उत्तम मनुष्य वें हैं जो दूसरों की गलतीयों से सीखकर खुद वे गलतीयां नहीं करते हैं वहीं मूढ़ व्यक्ति बार बार गलतीयों को दोहराता है और अपने को सुधारने का कोई प्रयास नहीं करता है|
अत: आज हम सभी अपने सच्चे मन से स्वयं से यह वादा करें कि अपने भारत को प्रगतिशील,उन्नत,सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने हेतु परस्पर स्नेह,सोहार्द,सामंजस्य स्थापित करने हेतुक्रोध,अभिमान,लालच- लोभ,मद,मोह,अहंकार,हिंसा चोरी-डकेती,ईर्ष्या-डाह का परित्याग कर आपस में सद्भावनापूर्ण सम्बन्ध बना कर रहेगें,एक दुसरे की मदद करेगें|बहिन बेटियोंके सम्मान की रक्षा करेगें|अगर ऐसा हो पाया तो सही अर्थों में हम श्री राम के आदर्शों को अंगीकार कर विजयदशमी के पर्व को सार्थक बना सकगें|
डा. जे.के.गर्ग
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