भारतीय। जान जीवन में संयम का बहुत बड़ा योग दान है ? देश की जनता ने मोदी जी की सरकार को पूरा डेढ वर्ष दिया जिसमे उनकी कोई आलोचना नहीं की गई लेकिन स्वयं बीजेपी ने मोदी की गरिमा को तार तार कर दिया जब मोदी को राज्य विधान सभाओं के चुनाव में भी स्टार प्रचारक बनाकर आरोपप्रत्यारोप की राजनीती झोंक दिया ? तथा अपनी सुपरिचित रणनीति दाम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के रास्ते पर चलकर मतों के बटवारे की चल चलना और उसके लिए वहीँ पुराने टोटके । मंदिर मस्जिद मुल्ला ! गाय और मुस्लिम जिसमे आर एस एस पूर्ण रूप से मोदी को कंधो पर उठा कर चलता है ? यह ध्रुवीकरण का ही तो टोटका है की बिहार के अंतिम दो चरणों से पहले आर एस एस झारखंड में बैठ कर इस बात की चिंता कर रहा है की देश में मुस्लिम आबादी बढ़ रही है ! अरे भाई यह बैठक यो चुनाव के बाद भी हो सकती थी या दिल्ली या किसी दूसरे प्रदेस में या अपने हेड क्वार्टर नासिक में ही कर लेते तो कौन सा नुक्सान होता ?
अपने जेटली जी फरमाते है ‘प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार भारत के विकास की रफ़्तार तेज करने का प्रयास कर रही है ! लेकिन कई ऐसे है जिन्होंने भाजपा के सत्ता में होने को बौद्धिक रूप से कभी स्वीकार ही नहीं किया !’ जेटली जी जनता की आँखों में क्यों धुल झोंकना चाहते हो जनता रफ़्तार को माइक्रोस्कोप से नहीं देखती न ही आंकड़ो की जादूगरी में उलझती है गरीब जनता केवल केवल अपनी थाली में दाल रोटी या पोटली में बंधी रोटीऔर उसके साथ एक प्याज के गांठे से ही संतुष्ठ हो जाती है ? आपके पास इसका कोई जवाब है की जब दाल की कीमत बढ़ रही थी तो आपकी प्रगतिशील सरकार कौन से देश की यात्रा में दाल खरीद रही थी या मौज कर रही थी ? अपनी ध्रुवीकरण की राजनीती को आप विकास की निति बताना छोड़ दो जनता अपने आप समझ लेगी उसे केवल दाल रोटी चाहिए ? आप गाय के मांस को विदेस में बेचकर विदेशी मुद्रा कमाओ या देस के लोगो को खिला कर खुश करो यह आप की चिंता होना चाहिए ?
इस लिए यह कहना की कुछ लोग 2002 से नरेंद्र मोदी का विरोध असहिष्णुता की सिमा तक कर रहे हैं गलत है ! यह बात सही है की 2014 में जब मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा ने जीत दर्ज की उस समय भी अधिसंख्य लोग उनके विरोधी थे क्योंकि की उन्हें केवल 31 प्रतिशत मत ही मिले थे और 69 प्रतिशत लोग विरोध में थे ? चूँकि यह चुनाव का तरीका है इस लिए वह प्रधान मंत्री बन सके । इस लिए अगर वह प्रधान मंत्री ृ होते हुए यह दर्शाने की कोसिस करेंगे की वह किसी पार्टी के प्रचारक है और इसी रूप में एक दिन में चार चार रैलियां करके पार्टी के लिए वोट मांगेगे तो वह कही न कहीं देस की जनता को गुमराह कर रहे है क्योंकि आज वह महान भारत देश के प्रधान मंत्री है किसी पार्टी के प्रचारक नहीं ? इसलिये अरुण जेटली जी को सहिष्णुता और अशहिष्णुता का राग छोड़ कर मोदी जी को एक सलाहकार के रूप में हकीकत से रुबरुह करना चाहिए की सत्ता में होते हुए भी आप अल्पमत है देश की बहुसंख्य जनता आपको पदंड नहीं करती ?
और यही कारण है बुद्धिजीवियों और कलाकारों वैज्ञानिकों द्वारा आपेक्षित सुरक्षा और सद्भाव के आभाव में अपने पुरुस्कारों को वापस करने का ?
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