जानिये उत्तर एवं पश्चिम भारत के विभिन्न हिस्सों मै कैसे मनायी जाती है होली

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
ब्रज- मथुरा-व्रदावन की होली –
मथुरा व्रन्दावन मै होली को कृष्ण और राधा के पवित्र प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है | यहाँ होली बाकी भारत के अन्य भागो में खेली जाने वाली होली से पहले खेली जाती है | होली का दिन शुरू होते ही नंदगाँव के हुरियारों की टोलियाँ बरसाने पहुँचने लगती हैं साथ ही पहुँचने लगती हैं कीर्तन मंडलियाँ |‘कान्हा बरसाने में आई जइयो बुलाए गई राधा प्यारी’ ‘फाग खेलन आए हैं नटवर नंद किशोर’और‘उड़त गुलाल लाल भए बदरा’जैसे गीतों की मस्ती से पूरा माहौल झूम उठता है | इस दौरान भाँग-ठंढई का ख़ूब इंतज़ाम होता है |बरसाने में टेसू के फूलों के विशालकाय भगोने तैयार रहते हैं | दोपहर तक घमासान लठमार होली का समाँ बंध चुका होता है |

अंगारों की होली —-मथुरा जिले की छाता तहसील में फालैन गांव का यह क्षेत्र भक्त प्रह्लाद का क्षेत्र कहलाता है और यहां पण्डा होलिका दहन के बाद अंगारों पर चलता है।

उत्तरांचल के कुमाऊं मंडल की होली— बरसाने की होली के बाद अपनी सांस्कृतिक विशेषता के लिए कुमाऊंनी होली को याद किया जाता है | फूलों के रंगों और संगीत की तानों का ये अनोखा संगम देखने लायक होता है | शाम ढलते ही कुमाऊं के घर घर में बैठक होली की सुरीली महफिलें जमने लगती है

हरियाणा—– धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है।

गोवा— शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है |

पंजाब– सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री अनन्दपुर साहिब मे होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है | कहा जाता है कि गुरु गोबिन्द सिंहजी ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। होला महल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है। इस अवसर पर भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस,पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से‘महा प्रसाद’पका कर वितरित किया जाता है। पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है।

दक्षिण गुजरात—– यहाँ के आदिवासि भील जाति के लोग होली को गोलगधेड़ों के नाम से मनाते हैं। इसमें किसी बांस या पेड़ पर नारियल और गुड़ बांध दिया जाता है उसके चारों और युवतियां घेरा बनाकर नाचती हैं। युवक को इस घेरे को तोड़कर गुड़,नारियल प्राप्त करना होता है। इस प्रक्रिया में युवतियां उस पर जबरदस्त प्रहार करती हैं। यदि वह इसमें कामयाब हो जाता है तो जिस युवती पर वह गुलाल लगाता है वह उससे विवाह करने के लिए बाध्य हो जाती है।

छत्तीसगढ़ की होरी में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है

मध्यप्रदेश—– मध्यप्रदेश की होली भील होली को भगौरिया कहते हैं। इस दिन युवक मांदल की थाप पर नृत्य करते हैं। नृत्य करते-करते जब युवक किसी युवती के मुंह पर गुलाल लगाता है और बदले में वह भी यदि गुलाल लगा देती है तो मान लिया जाता है कि दोनों विवाह के लिए सहमत हैं। यदि वह प्रत्युत्तर नहीं देती तो वह किसी और की तलाश में जुट जाता है। मालवा की होली में होली के दिन लोग एक-दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। कहते हैं कि इससे होलिका राक्षसी का अंत हो जाता है।

बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है

राजस्थान की होली—— यहाँ होली के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। बाड़मेर में पत्थर मार होली खेली जाती है तो अजमेर में कोड़ा होली। सलंबर कस्बे में आदिवासी गेर खेलकर होली मनाते हैं। इस दिन यहां के युवक हाथ में एक बांस जिस पर घूंघरू और रूमाल बंधा होता है,जिसे गेली कहा जाता है लेकर नृत्य करते हैं। इस दिन युवतियां फाग के गीत गाती हैं।

बस्तर की होली—- बस्तर में इस दिन लोग कामदेव का बुत सजाते हैं,जिसे कामुनी पेडम कहा जाता है। उस बुत के साथ एक कन्या का विवाह किया जाता है। इसके उपरांत कन्या की चुड़ियां तोड़कर,सिंदूर पौंछकर विधवा का रुप दिया जाता है। बाद में एक चिता जलाकर उसमें खोपरे भुनकर प्रसाद बांटा जाता है।

सकंलन कर्ता—डा. जे.के.गर्ग
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