न्यायपालिका से टकराव उचित नहीं

_20160516_062818हने नहीं मालुम कि यह देश का सौभाग्य है या दुर्भाग्य है कि देश को एक ऐसा कानून विद वित्त मंत्री मिला है जो क़ानून का ज्ञाता होने के साथ आर्थिक समख भी रखता हो ! लेकिन देखने में यह आता है की देश में जो कानून का मंत्री है वे जनाब कभी कभी संसद में बोलते हुए दिखाई देते है ? लेकिन कानून विद वित्त मंत्री जब तब कानून की बारीकियों को समझते हुए दिखाई देही जाते है यहाँ तक कि न्यायपालिका को भी अपनी सीमाओं में रहने की चेतावनी भी दे ही देते है ? क्या यह वित्त मंत्री के रूप में अपनी नाकामियों को छुपाने और जनता में हीरो दिखने की लालसा है या पार्टी में नंबर दो बनाने की होड़ ? क्योंकि दो वर्ष का वित्त मंत्रालय का काम काज अपनी दुर्दशा का बखान स्वयं कर रहा है ? रुपया डॉलर के मुकाबले 68 तक पहुँच गया। काले धन का कोई पता नहीं ! टैक्स चोरो केनाम देश को नहीं बताये गए ? बड़ी कंपनियों बैंकों का लाखो करोड़ रुपया हजम कर के दिवालिया हो गई हैं वित्त मंत्रालय उनका नाम भी नहीं बताना चाहता? किसान बेहाल है बैंको के कर्ज न चुकाने और फसल ख़राब हो जाने के कारन आत्महत्या कर रहे है ? 9000 करोड़ का बैंको से कर्ज लेकर माल्या विदेश भाग गया ?

sohanpal singh
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एक अकेला अडानी भी 6100 करोड़ का बैंको का कर्जदार है अगर ये भी भाग गया तो सरकार क्या करेगी? उत्तराखंड में कानूनीदावपेच में मुहँ की खाने के बाद न्यायपालिका को धमकी भरे अंदाज में चेतावनी दे रहे हैं की “लक्षमण रेखा न लांघे न्यायपालिका ” क्या यह खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेने वाली बात है या यह सरकार की मंशा है न्यायपालिका को धमकाने की ? वित्त मंत्री को यह जनता के सामने स्पष्ठ करना चाहिए ? क्योंकि की हम समझते है की न्यायपालिका और कार्यपालिका प्लस विधायिका का आपसी टकराव देश हित में नहीं ? वैसे भी जो कार्य प्रधान मंत्री को करना चाहिए वह कार्य एक वित्त मंत्री करे तो लगता है की सरकार में ही कुछ शुभ नहीं है ? इसलिए न्यायपालिका के विरुद्ध वित्त मंत्री की टिप्पणी दुर्भाग्य पूर्ण है ?

एस. पी. सिंह, मेरठ।

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