आप भ्रष्टाचार, अपराध और हिंसा से दूर रहते हुए पनपी पार्टी है। जबकि सिद्धू हिंसा के ऐसे मामले में शामिल रहे हैं, जिसमें उनके ही शहर के एक नागरिक को जान से हाथ धोना पड़ा था। उच्च न्यायालय ने सिद्धू को उस ग़ैरइरादतन हत्या का अपराधी ठहराया। ज़िल्लत के साथ उन्हें लोकसभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। फिर सिद्धू भरोसे के राजनेता भी नहीं। उनकी अमृतसर की सीट अरुण जेटली को दे दी गई तो कहते हैं उन्होंने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार की जड़ें काटीं। हाल में पहले उन्हें राज्यसभा में लाया गया, शायद इसलिए कि पंजाब चुनाव में नुक़सान न पहुँचाएँ। तीन महीने के भीतर उन्होंने अपनी ‘माई-बाप’ पार्टी को फिर पीठ दिखा दी। ऐसा व्यक्ति ‘आप’ के लिए कैसे भरोसे का साबित होगा?
‘आप’ में अनेक नेता ऐसे हैं जिन्हें पूरा पंजाब जानता है। कँवर संधू जैसे कार्यकर्ताओं की सामाजिक ही नहीं, बौद्धिक छवि भी बड़ी है। इस मुक़ाम पर कहाँ केजरीवाल हँसोड़-लपोड़ सिद्धू के चक्कर में पड़ गए (अगर पड़ गए)!
